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    Ground Report: आपदा के बाद किश्तवाड़ के चशोती गांव में पसरा मातम, त्रासदी में 31 लोग लापता; अपनों की तलाश में बिखरे परिवार

    Updated: Sat, 20 Sep 2025 08:26 AM (IST)

    किश्तवाड़ के चशोती गांव में त्रासदी के 36 दिन बाद भी मातम पसरा है। 14 अगस्त को बादल फटने से 66 लोगों की मौत हो गई थी और 31 अभी भी लापता हैं। अपनों की तलाश जारी है पर उम्मीदें टूट रही हैं। कई परिवार लापता सदस्यों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं।

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    किश्तवाड़ के चशोती गांव में त्रासदी के 36 दिन बाद 31 लोग लापता हैं (फोटो: जागरण)

    बलबीर सिंह जम्वाल, किश्तवाड़। त्रासदी का दर्द झेल चुका चशोती गांव आज बेहद उदास है। गांव में जेसीबी मशीनों का शोर पूरी तरह थम चुका है। प्रशासनिक अधिकारी और नेताओं के दौरे थम चुके हैं। पुलिस व अन्य बचाव दल भी अपना साजो-सामान समेटकर लौट चुके हैं। चशोती में कुछ बचा है तो मरघट सा सन्नाटा और गांव के लोगों की सिसकियां।

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    आलम यह है कि शाम को अंधेरा होने से पहले ही चशोती गांव के लोग अपने घरों के किवाड़ बंद कर लेते हैं और रात को अकेले घरों से बाहर नहीं निकलते। लोगों के दिलों में मानों अजीब सा डर बैठा हो। 14 अगस्त को मां चंड़ी की मचैल यात्रा के दौरान चशोती में बादल फटने से आई त्रासदी में 66 लोगों की मौत हो गई थी और 31 अभी भी लापता हैं।

    त्रासदी के एक माह से ज्यादा (36 दिन) बीत जाने के बाद भी कोई न कोई परिवार पत्थर व मलबे के ढेर में अपनों की तलाश करता नजर आ जाता है। उम्मीद सभी की टूट चुकी है, लेकिन दिल है कि मानने को तैयार ही नहीं। कोई किश्तवाड़ जिला प्रशासन के संपर्क में है तो कोई पुलिस को बार-बार फोन कर अपने बेटी, बेटी, पत्नी या माता-पिता के बारे में पूछता है।

    चशोती में जिस दिन बादल फटा था तो लोग वहां लगे लंगर में भोजन ग्रहण कर रहे थे, तभी सैलाब सभी को अपने साथ बहाकर ले गया। कई घर, दुकानें, स्कूल, सरकारी कार्यालय, गाड़ियों के साथ कई जिंदगियां मलबे के नीचे दब गईं। 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इस त्रासदी में चशोती के भी 11 लोग मारे गए, जिनमें चार आज भी लापता हैं। इस तरह त्रासदी में मारे गए व लापता अधिक लोग जम्मू संभाग के ही रहने वाले हैं।

    चशोती में अपनों की तलाश कर रहे कुछ लोगों ने कहा कि जब हम अधिकारियों से मिलते हैं तो उनका कहना होता है कि लापता लोगों को मृत घोषित करने की एक कानूनी प्रक्रिया होती है। इसपर एसडीएम अमित कुमार ने कहा कि इसके लिए मजिस्ट्रेटी जांच की आवश्यकता होती है, जिसके बाद लापता लोगों को मृत घोषित किया जाएगा। बता दें कि आने वाले दिनों में केंद्रीय मंत्रियों का चशोती में दौरा हो सकता है और कोई बड़ी घोषणा भी हो सकती है।

    जैंबल चौधरी l मीरां साहिब चशोती त्रासदी बुजुर्ग मंगल दास को ऐसे जख्म दे गई है, जिसका दर्द कभी नहीं मिटेगा। जम्मू के मीरां साहिब के बैनागढ़ गांव के रहने वाले मंगल दास के परिवार आठ सदस्य भी मचैल यात्रा पर गए थे। इनमें मंगल दास की पत्नी जीतो देवी, बहू ममता देवी और उसके दो बच्चे, बहू की बहन राही देवी के अलावा मंगल दास की बेटी जीनी देवी व उसके दो बच्चे शामिल थे।

    त्रासदी के बाद सिर्फ मंगल दास की बहू ममता देवी का ही शव बरामद हो पाया, बाकि सात सदस्यों का कोई भी सुराग नहीं मिला। चशोती में खुद जाकर तलाश करने के बाद भी जब कोई सुराग नहीं मिला तो मंगल दास ने उत्तरवाहिनी जाकर हिंदू रिती-रिवाज के अनुसार सातों लापता का स्मर्ण कर उनका अंतिम संस्कार किया।

    बुजुर्ग मंगल दास और उनके रिश्तेदार सोमराज, हुसन दास, बलवीर कुमार, बिन्नी कुमार व खुश दिल ने कहा कि दुखी मन से हमने लापता सात सदस्यों का अंतिम संस्कार कर दिया गया है। अब कोई चमत्कार ही उनमें से किसी को वापस ला सकता है। दुखी मन से परिजनों ने बताया कि आज भी उनको रात को नींद नहीं आती। हर समय दरवाजे की ओर टकटकी लगाए रहते हैं कि कहीं से लापता सदस्य जिंदा घर लौट आए।

    परिजनों के अनुसार सरकार की ओर से इस आपदा में अपनी जान गंवाने वालों को राहत राशि देने का भी एलान किया गया था, लेकिन आज तक उनके पास कोई नहीं पहुंचा और ना ही किसी प्रशासनिक अधिकारियों ने लापता हुए लोगों के बारे में उनसे कोई बातचीत की है।

    यह हाल है, बिश्नाह के वार्ड नंबर छह के सोनू मेहरा का, जो पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से अपनी पत्नी, बेटे व बेटी के घर लौटने की उम्मीद लेकर दरवाजे की तरफ देखते रहते हैं। 14 अगस्त को सोनू मेहरा की पत्नी जीनी देवी, बेटी पीहू व बेटा गोकुल भी चशोती के लंगर में बैठे थे, तभी वहां बादल फट गए और वे मलबे में दब गए। तब कई लोगों के शव मिले पर बिश्नाह के इस परिवार के तीन लोगों का आज तक सुराग नहीं मिला।

    सोनू कुमार ने बताया कि 14 अगस्त से लेकर आज तक कोई दिन ऐसा नहीं बीतता जब मैं अपनी पत्नी, बेटी व बेटे का घर आने का इंतजार नहीं करता। हालांकि हम जानते हैं कि वे तीनों अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन फिर भी मन मानने को तैयार नहीं। हम कई बार उनकी खबर लेने के लिए किश्तवाड़ गए पर कोई सुराग नहीं लगा। हम लगातार किश्तवाड़ प्रशासन के संपर्क में है, लेकिन अब एक महीने से ज्यादा समय बीत गया है अब तो उम्मीद टूट चुकी है।

    अब प्रशासन से उम्मीद है कि चशोती लापता लोगों को मृतक ही घोषित कर दो, ताकि मन मान ले कि अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। गोकुल व पीहू की दादी पुरो देवी ने रोते हुए बताया कि हमने अपने दिल को तसल्ली देने के लिए तीनों के पुतले बनाए व एक शवयात्रा निकाली थी और उनका संस्कार कर दिया। पुरमंडल में पिंड दान भी किया अब हरिद्वार व पेवा में उनकी आत्मा की शांति पाठ करवाएंगे।

    बिश्नाह के वार्ड नंबर छह के सोनू मेहरा का परिवार लापता जीनी देवी, पीहू व गोकुल की तस्वीर के साथ। त्रासदी के बाद से तीनों का कोई सुराग नहीं मिला है l

    किश्तवाड़ के पाडर के एसडीएम पाडर डा. अमित कुमार भगत ने कहा कि त्रासदी में जीवन के नुकसान को तो पूरा नहीं किया जा सकता, लेकिन अन्य मदद कर पीड़ितों को राहत जरूर दी जा सकती है। जो लोग मारे गए उन्हें एसडीआरएफ की तरफ से चार-चार लाख और मुख्यमंत्री राहत कोष से दो-दो लाख मिल चुके हैं।

    प्रधानमंत्री राहत कोष से भी दो-दो लाख और आ जाएंगे। जिनके मकान तबाह हुए हैं उन्हें पहले एसडीआरएफ की तरफ से एक लाख तीस हजार और मुख्यमंत्री की तरफ से एक-एक लाख रुपये दिए गए हैं। एक-एक लाख रुपये प्रधानमंत्री राहत कोष से बाद में सभी को आएगा। जिन लोगों के मकान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए हैं उन्हें घर बनाकर देने की योजना है। सामाजिक संस्थान भी लोगों की मदद कर रही हैं।

    त्रासदी में लापता हुए चशोती के साथ सटे हाको गांव के कल्याण सिंह का भी कोई सुराग नहीं मिला है। उनके दोस्त सेवानिवृत्त लेक्चरर जगदीश राज परिहार ने बताया कि कल्याण ने ही माता चंडी की आरती, लाज रख देवीये चंडी माता मेरीए, एक भद्रवाही गीत का अनुवाद करके बनाई थी। बाद में कई लोगों ने इसकी धुन पर कईं आरती गाईं। कल्याण ने शादी नहीं की थी, वह राजमाश तथा कुछ और देसी सामान बेचकर गुजारा करता था। उस दिन भी वह सामान बेचने आया था। कल्याण के दो भाई आज भी चशोती में उसकी तलाश करते हैं, ताकि शव मिलने पर संस्कार कर सकें।

    स्कूल खुला पर बच्चों के मन से अभी नहीं निकल रहा डर चशोती गांव के मिडिल स्कूल के बच्चे आज भी सहमे हुए हैं। उनके स्कूल के 30 मीटर दूर पहाड़ से जब गड़गड़ाहट के बीच बड़े-बड़े पत्थर, पेड़ बह रहे थे तो बच्चे कक्षाओं में थे। शिक्षकों ने बच्चों को वहां से सुरक्षित निकाला था। तभी से ये बच्चे स्कूल नहीं गए। अब स्कूल में फिर कक्षाएं लगने लगी हैं।

    स्कूल के शिक्षक हुकम सिंह राठौर ने बताया कि हम बहुत दिनों से इन बच्चों को इनके घर में ही जाकर पढ़ा रहे थे और इन्हें स्कूल आने के लिए तैयार कर रहे थे। स्कूल खुलने पर हम बच्चों को किसी न किसी खेल में लगा रहे हैं, ताकि उनके मन से डर निकल सके। स्कूल में बच्चों की संख्या 50 है, लेकिन अभी कम ही बच्चे स्कूल में पहुंचे हैं।

    किश्तवाड़ में मचैल यात्रा जम्मू-कश्मीर की तीसरी प्रमुख यात्राओं में से एक मानी जाती है। श्री माता वैष्णो देवी और श्री अमरनाथ यात्रा के बाद यहीं सबसे अधिक श्रद्धालु आते हैं। इसलिए प्रशासन की ओर से व्यवस्था के अलावा स्थानीय लोग टेंट व दुकानें भी लगाते हैं। 20 दिन पहले ही त्रासदी से भारी नुकसान हुआ और यात्रा रुक गई। स्थानीय दुकानदार कृष्ण शर्मा ने कहा कि त्रासदी ने सब कुछ छीन लिया। एक अनुमान के अनुसार, आपदा से 100 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है।