Jammu Kashmir: हाईकोर्ट में अस्थायी नियुक्ति को चुनौती देना पड़ा महंगा, चुकाना पड़ गया भारी जुर्माना
जम्मू कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने मुमताज अख्तर की याचिका खारिज करते हुए 50000 रुपये का जुर्माना लगाया। याचिका एसकेआईसीसी में कार्यरत जीनत राशिद की नियुक्ति को चुनौती देने के संबंध में थी। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर 2022 की योजना के प्रावधानों को छुपाया जो 1994 के नियमों से अलग है। अदालत ने याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाया क्योंकि उसने महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई और भ्रामक दावा किया।

जेएनएफ, जागरण, जम्मू। जम्मू कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने मुमताज अख्तर की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है।
याचिकाकर्ता ने एसकेआईसीसी में एसआरओ 43, 1994 के तहत कार्यालय सहायक, टाइपिस्ट के रूप में कार्यरत जीनत राशिद निवासी गोगू चेक, बडगाम की अस्थायी नियुक्ति चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी कौल ने अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर 2022 की योजना के प्रावधानों को छुपाया, जोकि 1994 के नियमों से अलग है।
प्रावधान के अनुसार, यदि कोई मामला 1994 के नियमों के तहत लंबित है, तो उसे 1994 के नियमों के तहत ही विचार किया जाएगा, न कि 2022 की योजना के तहत।
मामले के अनुसार मुमताज अख्तर ने 1994 में दैनिक वेतन भोगी के रूप में काम करना शुरू किया और 2013 में नियमित हुईं। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें पदोन्नति से वंचित रखा गया है, जबकि वे 2006 से कार्यालय सहायक के पद के लिए पात्र थीं। उसे वर्ष 2013 में डाक रनर बनाया गया था। याचिकाकर्ता का कहना था कि वह 31 वर्षों से सेवारत हैं लेकिन उसे समय पर नियमित व पदोन्नति नहीं दी गईं।
वहीं कोर्ट ने पाया कि जीनत राशिद की अस्थायी नियुक्ति 1994 के नियमों के तहत की गई थी, जिसे याचिकाकर्ता ने चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर महत्वपूर्ण जानकारी छुपाई और 2022 की योजना के प्रावधानों पर जोर दिया, जो इस मामले पर लागू नहीं होते हैं।
न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को जुर्माना लगाने का निर्णय लिया और उसे लागत के रूप में एक निश्चित राशि का भुगतान करने का निर्देश भी दिया।
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