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    केंद्र सरकार केसर क्रांति से बदलेगी कश्मीरियों की किस्मत, बनाई विशेष रणनीति

    घाटी में 3700 हेक्टेयर जमीन (3650 हेक्टेयर पुलवामा तथा बडग़ाम जिले में 50 हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती शुरू की गई) और इसमें से 95 फीसद (23 टन) केसर पुलवामा में उत्पादन होता था।

    By Rahul SharmaEdited By: Updated: Fri, 22 Nov 2019 11:20 AM (IST)
    केंद्र सरकार केसर क्रांति से बदलेगी कश्मीरियों की किस्मत, बनाई विशेष रणनीति

    श्रीनगर, रजिया नूर। कश्मीर की शान हैैं बर्फ से लदी खूबसूरत वादियां और लाल केसर की महकती क्यारियां। केंद्र सरकार केसर क्रांति के बूते कश्मीर के किसानों की किस्मत बदलने में जुटी है। साथ ही सैफरॉन मिशन के बूते अगले कुछ वर्षों में केसर का उत्पादन दोगुना करने का लक्ष्य है। इसका असर भी दिखा और इस बार पिछले दस वर्षों का रिकॉर्ड टूटने की उम्मीद जगाई जा रही थी पर मौसम ने झटका दे दिया है। नवंबर माह के आरंभ में हुई बर्फबारी ने केसर की फसल को खासा नुकसान पहुंचाया।

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    कश्मीर का केसर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसकी वजह से भारत केसर उत्पादन में ईरान के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है। बाजार में केसर की कीमत डेढ़ से तीन लाख रुपये प्रति किलो है। आतंकवाद प्रभावित इस क्षेत्र में केंद्र सरकार केसर के बूते किसानों का बेहतर भविष्य बनाने में जुटी है। प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद स्पाइसेज बोर्ड ने जम्मू कश्मीर सरकार के साथ मिलकर केसर निर्यात एवं विकास एजेंसी का गठन किया और राज्य का बागवानी विभाग भी सक्रिय हुआ।

    मिशन केसर की चुनौतियां, मौसम की बाधाः केसर के फूलों का संचय अक्टूबर-नवंबर माह में होता है और पिछले कुछ वर्षों से नवंबर माह के पहले सप्ताह में बर्फबारी हो जाती है। इससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है। किसान अगर अगस्त माह में इसका रोपाई का कार्य कर लें तो अक्टूबर माह में फूल ले सकते हैं और ऐसे में बर्फबारी से पहले अपनी फसल ले पाएंगे। पर केसर की खेती ढलान वाले क्षेत्रों में होती है और वहां पानी ठहरता नहीं। ऐसे में बारिश के बाद किसान खेती शुरू करते हैं। प्रशासन टपका प्रणाली से सिंचाई को प्रोत्साहित कर रहा है।

    घटता रकबाः 20 वर्षों में केसर के उत्पादन में कुछ कमी आई है। करीब 3700 हेक्टेयर से अधिक भूमि के लिए केसर मिशन शुरू किया गया था, लेकिन बाद में यह दायरा सिकुड़़कर 2700 हेक्टेयर तक जा पहुंचा। हालांकि एक समय में यह रकबा पांच हजार हेक्टेयर के करीब पहुंच गया पर उत्पादन गिरने पर बहुत से किसानों ने इससे किनारा कर लिया।

    2014 की बाढ़ः पहले वर्ष 2014 के सैलाब ने तबाही मचा दी। सैलाब ने सैफरान बड (कश्मीरी में कोंग मोंड) 60 फीसद तक नष्ट कर दी। सेफरान बड से 8-10 वर्षों तक केसर के फूल लिए जा सकते हैं। दो वर्षों में मौसम थोड़ा अनुकूल रहा और वक्त पर बारिश भी हुई और इससे पैदावार में फिर बढ़ोतरी की उम्मीद पैदा हो गई।

    सब मौसम पर निर्भरः केसर उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल मजीद वानी ने कहा कि समय पर बारिश होना मतलब केसर की अच्छी पैदावार। इस साल भी अच्छी फसल होने की उम्मीद थी लेकिन बफर्बारी ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया। वानी ने कहा, अगर केसर के खेतों में बोर वेल लगाए जाएं तो हम अगस्त से ही खेती शुरू कर दें और अक्टूबर तक पैदावार समेट लें।

    सूक्ष्म सिंचाई फायदेमंदः शेर-ए-कश्मीर कृषि विश्विवद्यालय के प्लांट पैथालोजी विभाग के विज्ञानी अरशद अहमद टॉक ने कहा कि कई वर्षों में समय पर बारिश न होने के चलते केसर के उत्पादन को काफी धक्का पहुंचा था। उन्होंने कहा कि सूक्ष्म सिंचाई से किसानों को केसर की मोड़ा जा सकता है।

    दक्षिण व मध्य कश्मीर में होती है काश्तः केसर की काश्त दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा और मध्य कश्मीर के बडग़ाम में अधिक की जाती है। घाटी में 3700 हेक्टेयर जमीन (3650 हेक्टेयर पुलवामा तथा बडग़ाम जिले में 50 हेक्टेयर जमीन पर केसर की खेती शुरू की गई) और इसमें से 95 फीसद (23 टन) केसर पुलवामा में उत्पादन होता था। पुलवामा में केसर उत्पादन प्रति हेक्टयेर पांच किलोग्राम के आसपास रहा है। वहीं श्रीनगर में यह दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। कश्मीर में करीब 32 हजार किसान केसर की खेती से जुड़े हैं।