Jammu Kashmir: हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों पर UAPA के तहत प्रतिबंध लगाने की संभावना
हुर्रियत कांफ्रेंस 1993 में 26 समूहों के साथ अस्तित्व में आया था।इसमें कुछ पाकिस्तान समर्थक और प्रतिबंधित संगठन जैसे जमात-ए-इस्लामी जेकेएलएफ और दुख्तारन-ए-मिल्लत शामिल थे। इसमें पीपुल्स कान्फ्रेंस और मीरवाइज उमर फारूक की अध्यक्षता वाली अवामी एक्शन कमेटी भी शामिल थी।
जम्मू, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर में पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से अलगाववादी आंदोलन की अगुवाई कर रहे अलगाववादी गुट हुर्रियत कांफ्रेंस के दोनों धड़ों पर कड़े गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून यूएपीए के तहत प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
पाकिस्तान में संस्थानों द्वारा कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस सीटें देने की हालिया जांच से संकेत मिलता है कि कुछ संगठनों द्वारा उम्मीदवारों से एकत्र किए गए धन का उपयोग केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवादी संगठनों के वित्तपोषण के लिए किया जा रहा था।यह संगठन हुर्रियत से जुड़े हुए हैं।
अधिकारियों के अनुसार हुर्रियत के दोनों गुटों पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम या यूएपीए की धारा 3 (1) के तहत प्रतिबंध लगने की संभावना है। इसके तहत यदि केंद्र सरकार की राय में कोई संघ एक गैर-कानूनी संघ बन जाता है, वह आधिकारिक राजपत्र में अधिसूसचना से गैरकानूनी घोषित हो सकता है।उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की केंद्र की नीति के अनुसार रखा गया था।
1993 में बनी थी हुर्रियत
हुर्रियत कांफ्रेंस 1993 में 26 समूहों के साथ अस्तित्व में आया था।इसमें कुछ पाकिस्तान समर्थक और प्रतिबंधित संगठन जैसे जमात-ए-इस्लामी, जेकेएलएफ और दुख्तारन-ए-मिल्लत शामिल थे। इसमें पीपुल्स कान्फ्रेंस और मीरवाइज उमर फारूक की अध्यक्षता वाली अवामी एक्शन कमेटी भी शामिल थी।
अलगाववादी समूह 2005 में दो गुटों में टूट गया। जिसमें नरमपंथी समूह मीरवाइज के नेतृत्व में था और सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व में कट्टरपंथी समूह था। अभी तक केंद्र सरकार ने जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ को यूएपीए के तहत प्रतिंबधित किया हुआ है। अधिकारियों ने कहा कि आतंकवादी गुटों के वित्त पोषण की जांच में अलगाववादी संगठनों और अलगाववादी नेताओं की कथित मिलीभगत का संकेत मिलता है। इनमें हुर्रियत कांफ्रेंस के सदस्य शामिल हैं, जो प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों हिजबुल मुजाहिदीन, दुख्तारन-ए-मिल्लत और लश्कर-ए-तैयबा के सक्रिय आतंकवादियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। अधिकारियों के अनुसार, काडर ने जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए हवाला सहित विभिन्न अवैध माध्यमों से देश और विदेश से धन जुटाया। इस फंड से कश्मीर में माहौल को खराब किया गया। सुरक्षाबलों पर पथराव, स्कूलों को जलाना, भारत के खिलाफ अघोषित युद्ध चलाना शामिल है।
प्रतिबंध के पीछे यह हैं कारण
हुर्रियत के दोनों गुटों पर प्रतिबंध लगाने के पीछे अधिकारी कई तर्क दे रहे हैं। उनका कहना है कि टेरर फंडिंग मामले की जांच कर रही एनआइए ने भी कई अलगाववादी नेताओं को हिरासत में लिया है। दोनों गुटों के कई नेता साल 2017 से ही जेल में हैं। इन नेताओं में गिलानी के दामाद अल्ताफ अहमद शाह, व्यापारी जहूर अहमद वटाली, गिलानी के करीबी एजाज अकबर, पीर सैफुल्ला, शाहिद-उल-इस्लाम, हुर्रियत के नरम गुट के प्रवक्ता मेहराजुदीन, नईम खान, फारूक अहमद डार शामिल हैं। बाद में जेकेएलएफ के चीफ यासीन मलिक, दुख्तारन-ए-मिल्लत की प्रमुख आसिया अंद्राबी, पाकिस्तान समर्थक मसर्रत आलम का भी टेरर फंडिंग के मामले में सप्लीमेंटरी चार्जशीट में नाम आया था।
एक अन्य मामला पीडीपी के युवा विंग के प्रधान वाहिद-उर-रहमान परा से जुड़ा हुआ है। उस पर आरोप है कि उसने गिलानी के दामाद को आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में माहौल खराब करने के लिए पांच करोड़ रुपये दिए थे। एनआइए ने यह भी कहा था कि साल 2016 में वानी की मौत के बाद पारा अल्ताफ अहमद शाह के संपर्क में आया था और उससे कश्मीर में हिंसा करवाने को कहा था।
सीआइडी के विंग काउंटर इंटेलिजेंस ने भी गत वर्ष जुलाई महीने में पाकिस्तान के संस्थानों में एमबीबीएस की सीटें बेचने के मामले में केस दर्ज किया था। इस मामले में हुर्रियत से जुड़े संगठन सालवेशन मूवमेंट के स्वयंभू चेयरमैन मोहम्मद अकबर भट सहित चार लोगों को हिरासत में लिया गया था। यह आरोप लगा कि हुर्रियत के नेता कश्मीरी युवाओं को इसी के आधार पर हुर्रियत से रुपये लेकर पाकिस्तान के संस्थानों में एमबीबीएस की सीटें बेचते थे। इस पैसे को आतंकवाद के लिए इस्तेमाल करते थे।