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    World Thalassemia Day 2022: 400 बच्चों की जिंदगी की डोर थामे हैं रक्तदाता, हर महीने 900 यूनिट ब्लड का प्रबंध करना आसान नहीं

    By Vikas AbrolEdited By:
    Updated: Sun, 08 May 2022 02:01 PM (IST)

    World Thalassemia Day 2022 मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर में करीब 400 थैलेसीमिया के मरीज श्री महाराजा गुलाब सिंह (एसएमजीएस) अस्पताल (एसएमजीएस) में अपना ...और पढ़ें

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    यह एक अनुवांशिक बीमारी है। इसमें हीमोग्लोबिन बनने में परेशानी आती है।आरबीसी जल्दी खत्म हो जाते हैं।

    जम्मू, रोहित जंडियाल। किसी भी मरीज के तीमारदार को एक यूनिट ब्लड का प्रबंध करना काफी मुश्किल होता है, लेकिन थैलेसीमिया बीमारी ऐसी है, जिसके मरीजों के लिए हर महीने आठ से नौ सौ यूनिट ब्लड का प्रबंध करना पड़ता है। अच्छी बात यह है कि इसके लिए कई रक्तदान करने वाले संगठन और स्वैच्छिक रूप से रक्तदान करने वाले लोग खुद ही आगे आ जाते हैं। इन्हीं के सहारे इन मरीजों, जिनमें ज्यादातर बच्चे हैं, उनकी जिंदगी चल रही है। इसमें डाक्टरों का विशेष योगदान है।

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    मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर में करीब 400 थैलेसीमिया के मरीज श्री महाराजा गुलाब सिंह (एसएमजीएस) अस्पताल (एसएमजीएस) में अपना इलाज करवा रहे हैं। इनमें ढाई सौ से अधिक बच्चे हैं। हर मरीज को महीने में दो से तीन यूनिट ब्लड की जरूरत पड़ती है, लेकिन कई रक्तदाता इन बच्चों व अन्य की जान बचाने के लिए लगातार आगे आते हैं। कोरोना काल के दौरान जरूर इन बच्चों को ब्लड के लिए जूझना पड़ा, लेकिन उनके तीमारदारों ने उस समय अहम भूमिका निभाई और रक्त का प्रबंध करते रहे। इन मरीजों ने थैलेसीमिया सोसायटी भी बना रखी है। सोसायटी के अलावा थैलेसीमिया यूनिट के प्रभारी डा. संजीव ढिंगरा भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।

    डा. संजीव ढिंगरा के अनुसार, हर महीने आठ से नौ सौ यूनिट ब्लड का प्रबंध करना आसान नहीं है, लेकिन बहुत से संगठन इसमें मदद कर रहे हैं। कई जगहों पर संगठनों के साथ मिलकर शिविर भी आयोजित किए जाते हैं। इन सभी के सहयोग से ही इन बच्चों की जिंदगी की सांसे चल रही हैं और बहुत से आज अच्छे पदों पर बैठे कर समाज की सेवा भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि कोविड के दौरान रक्तदान करने के लिए लोग कम आते थे। उस समय परेशानी आई, लेकिन अब हालात सामान्य हैं। हर बच्चे का हीमोग्लोबिन 11 से 12 रखना पड़ता है।

    थैलेसीमिया में नहीं बनता खून

    यह एक अनुवांशिक बीमारी है। इसमें हीमोग्लोबिन बनने में परेशानी आती है। आरबीसी जल्दी खत्म हो जाते हैं। इस कारण शरीर में खून की कमी रहती है। इस कारण हर पंद्रह दिन के बाद खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। जम्मू में ज्यादातर मरीज बीटा थैलीसीमिया के हैं।

    डा. संजीव ढिंगरा का कहना है कि थैलेसीमिया के मरीज तीन प्रकार के हैं। मेजर, माइनर और मीडियम। जरूरी नहीं है कि थैलेसीमिया के सभी मरीजों को ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़े। मेजर थैलेसीमिया वालों को ही इसकी जरूरत पड़ती है और सबसे अधिक यही हैं। अन्य में रक्त सात से नौ ग्राम के बीच में रहता है। मेजर थैलेसीमिया उन्हीं बच्चों को होता है, जिनके माता-पिता दोनों ही थैलेसीमिया से पीडि़त हो।

    जम्मू संभाग में ही हैं ज्यादातर मरीज : थैलेसीमिया यूनिट के प्रभारी डा. ढिंगरा के अनुसार, जम्मू संभाग में ही अधिक मरीज हैं। कश्मीर में अभी पंद्रह से बीस मरीजों की ही पहचान हो पाई है। जम्मू संभाग के जम्मू, राजौरी, कठुआ और ऊधमपुर जिलों में अधिक मरीज हैं। समुदाय के भीतर ही शादी करने से इस बीमारी के होने की अधिक आशंका रहती है। अगर कोई महिला कैरियर है और वह दूसरे कैरियर के शादी करती है तो पच्चीस प्रतिशत संभावना बच्चे के भी थैलेसीमिया पीडि़त होने की रहती है।

    शादी से पहले करवाएं जांच : डा. ढिंगरा का कहना है कि अगर इस बीमारी को पूरी तरह से खत्म करना है तो शादी से पहले लड़के और लड़की दोनों को अपनी जांच करवानी चाहिए। अगर दोनो थैलीसीमिया कैरियर है तो उन्हें आपस में शादी नहीं करनी चाहिए। वहीं गर्भावस्था के दौरान महिला को एंटीनेटल जांच करवानी चाहिए। इससे भी बच्चे के बीमारी से पीडि़त होने का पता चल जाता है। इस समय जम्मू के एसएमजीएस अस्पताल में हर दिन आठ से दस महिलाएं अपनी जांच करवा रही हैं।

    यह हैं लक्षण : इसमें बच्चे का चेहरा लगातार सूखता जाता है। उसका वजन नहीं बढ़ता, लगातार बीमार रहता है और शरीर भी सफेद पडऩा शुरू हो जाता है। अगर बच्चे में यह लक्षण हो तो तुरंत जांच करवानी चाहिए।