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    Jammu Kashmir : जम्‍मू कश्‍मीर में गोवंश के वध पर रोक का आदेश, विवाद बढ़ने पर अधिकारी बोले-यह सिर्फ पशु क्रूरता रोकने का अनुरोध

    By Lokesh Chandra MishraEdited By:
    Updated: Fri, 16 Jul 2021 07:40 PM (IST)

    जम्मू कश्मीर में बकरीद पर गाेवंश के वध पर रोक लगाने संबंधी पशु एवं भेड़ पालने विभाग के निदेशक का आदेश शुक्रवार को विवादों में घिर गया। इस पर अधिकारी ने सफाई दी कि यह आदेश नहीं केवल पशु क्रूरता रोकने के लिए अनुरोध किया गया है।

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    जम्मू-कश्मीर में पहली बार सरकार ने बकरीद के मौके पर गोमांस पर प्रतिबंध लगाया है।

    श्रीनगर, राज्‍य ब्‍यूरो :  जम्मू कश्मीर में बकरीद पर गोवंश के वध पर रोक लगाने संबंधी पशु एवं भेड़ पालन विभाग के निदेशक का आदेश शुक्रवार शाम तक विवादों में घिर गया। विवाद बढ़ता देख अधिकारी ने सफाई दी कि यह आदेश नहीं केवल पशु क्रूरता रोकने के लिए अनुरोध है। यहां बता दें कि गुरुवार को विभाग के निदेशक ने मंडल आयुक्त और पुलिस महानिरीक्षक को पत्र लिखकर बकरीद पर गोवंश की दी जाने वाली बलि पर रोक लगाने को कहा था। साथ ही उन्होंने ऊंट एवं अन्य जानवरों की गैरकानूनी ढंग से दी जाने वाली बलि पर रोक लगाने को कहा था। शुक्रवार को इंटरनेट मीडिया पर यह पत्र वायरल होते ही कश्मीर के कुछ संगठनों ने विरोध जताया था।

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    जम्मू कश्मीर में पहली बार ईद से पूर्व जानवरों की कुर्बानी से संबंधित मुद्दे पर पहली बार इस तरह का कोई आदेश अथवा पत्र सरकारी स्तर पर जारी किया गया है। बता दें कि घाटी में बीते कुछ सालों से ऊंट व गोवंश के वध की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी है।

    दरअसल, 21 से 23 जुलाई के बीच बकरीद का त्योहार है। इस मौके पर जम्मू कश्मीर में बड़ी संख्या में पशुओं की कुर्बानी दी जाती है। गोवंश और निर्दोश पशुओं की संभावित हत्या को लेकर एनिमल वेलफेयर बोर्ड ने प्रदेश प्रशासन को समय रहते उचित कदम उठाने और उस पर सख्ती से अमल करने को कहा। एनिमल वेलफेयर बोर्ड ने कहा पशु सुरक्षा कानून 1960, ट्रांसपोर्ट आफ एनिमल वेलफेयर कानून 1978 और पशु सुरक्षा से जुड़े अन्य कानून का लागू करने की अनुशंसा की।

    पत्र में दिए गए निर्देश :

    पशु एवं भेड़पालन और मछली विभाग के योजना निदेशक जीएल शर्मा ने 15 जुलाई को आइजी कश्मीर और मंडलायुक्त कश्मीर को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने बकरीद के मौके पर वादी में गोवंश व अन्य जानवरों का गैर कानूनी तरीके से वध करने पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए कहा। ऐसा न करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए भी कहा गया। उन्होंने इन जानवरों को गैरकानूनी ढंग से एक जगह से दूसरी जगह ले जाने पर भी रोक लगाने को कहा है।

    पत्र में इन नियमों को प्रभावी बनाने पर जोर :

    निदेशक जीएल शर्मा ने पशु कल्याण बोर्ड के एक पत्र का हवाला देते हुए कहा कि बकरीद का त्योहार संभवत: 21 से 23 जुलाई 2021 को है और इस दौरान जम्मू कश्मीर में बड़े पैमाने पर जानवरों को कुर्बान किया जाएगा। इसलिए पशु कल्याण से संबंधित सभी नियम और कानून पशुओं के प्रति क्रूरता रोकथाम अधिनियम 1960, पशुओं को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने संबंधित पशु कल्याण बोर्ड नियम 1978, बूचडख़ाना नियम 2001, म्यूनिसिपल ला एंड फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया द्वारा पशुओं का वध किए जाने संबंधी नियमों को पूरी तरह प्रभावी बनाया जाए।

    मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा ने जताया कड़ा एतराज :

    पत्र के वायरल होने के साथ ही वादी में तनाव पैदा हो गया। कश्मीर में विभिन्न इस्लामिक संगठनों के साझा मंच मुत्तहिदा मजलिस-ए-उलेमा (एमएमयू) के बैनर तले कश्मीर के विभिन्न इस्लामिक संगठनों की एक बैठक हुई। बैठक के बाद एमएमयू ने एक बयान जारी कर बकरीद पर सरकार के इस आदेश-निर्देश को आपत्तिजनक और मजहबी मामलों में हस्तक्षेप बताया। उन्‍होंने सरकार को अपना यह आदेश वापस लेने और लोगों को अपने मजहबी तौर तरीकों से ईद मनााने पर किसी तरह रोक टोक नहीं होनी चाहिए।

    प्रशासन ने शाम को जारी किया स्पष्टीकरण :

    मामले को तूल पकड़ते देख प्रशासन ने भी इस मुद्दे पर शाम को स्पष्टीकरण जारी कर दिया। पशु एवं भेड़पालन और मछली विभाग के योजना निदेशक जीएल शर्मा ने कहा कि किसी भी जानवर को कुर्बान करने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है। जिस आदेश की बात की जा रही है, वह कोई आदेेश नहीं है, वह एक पत्र है, जिसमें कानून लागू करने वाली संस्थाओं से आग्रह किया गया है वह पशु कल्याण बोर्ड के नियमों को लागू करते हुए जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकें।

    जम्‍मू कश्‍मीर के पुनर्गठन से पहले भी था प्रतिबंध

    जम्‍मू कश्‍मीर के पुनर्गठन से पूर्व यहां रणबीर पैनल कोड (आरपीसी) की धारा 298 ए के मुताबिक गोवंश का वध एक गैर जमानती दंडनीय अपराध था। ऐसा करने वाले को कम से कम 10 वर्षी की सजा और जुर्माने का प्रावधान था। इसके अलावा 298बी के तहत गोवंश का मांस रखने पर एक साल की सजा का प्रावधान था।

    यह कानून डोगरा शाासक महाराजा रणबीर सिंह ने 1862 में लागू किया था। उन्होंने पूरे प्रदेश में बीफ पर पूरी तरह पाबंदी लगाई थी। करीब 157 साल तक यह कानून बना रहा। जम्मू कश्मीर की अलग संविधान और कानून समाप्त होने के साथ ही यह कानून भी समाप्त हो गया है।

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