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    '6 माह में होंगे सभी मुद्दों का समाधान', आरक्षण नीति को लेकर धरना प्रदर्शन पर CM उमर अब्दुल्ला ने दिया आश्वासन

    Updated: Mon, 23 Dec 2024 09:35 PM (IST)

    नेशनल कान्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता और सांसद आगा सैयद रुहुल्ल मेहदी ने कहा कि मौजूदा आरक्षण नीति एक विशेष समुदाय के लिए ही है। इससे नीति से सामान्य वर्ग औ ...और पढ़ें

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    प्रदर्शन कर रहे छात्रों से मिले उमर अब्दुल्ला।

    राज्य ब्यूराे, जम्मू। घाटी में चिल्ले कलां के आगमन के साथ शुरू हुई हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बीच आरक्षण नीति के मुद्दे पर राजनीतिक वातावरण पूरी तरह गर्म हो रहा है। आरक्षण नीति को लेकर पनप रहा आक्रोश सोमवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के निवास के बाहर ही नहीं, भीतर भी पहुंच गया।

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    फिलहाल, उमर अब्दुल्ला ने धरने में शामिल लोगों द्वारा नामित एक छात्र प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत में छह माह में सभी मुद्दों के समाधान का यकीन दिलाकर स्थिति को संभाल लिया है, लेकिन जिस तरह से दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता व कार्यकर्ताें के अलावा समाज के विभिन्न वर्गाें के लाेग धरने में शामिल हुए हैं, उससे आभास हो गया है कि आरक्षण नीति को न्याय संगत बनाने में देरी उनके लिए भारी हो सकती है।

    हमें अपनी बात कहने का अधिकार

    धरने का एलान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के सहयोगी और सांसद आगा सैयद रुहुल्ला ने किया था, जिसमें पीडीपी की इल्तिजा मुफ्ती और वहीद उर रहमान परा, अवामी इत्तिहाद पार्टी के इनाम उन नबी और हुर्रियत कान्फ्रेंस के चेयरमैन मीरवाइज मौलवी उमर फारूक के प्रतिनिधि एडवोकेट नासिर भी शामिल हुए।

    आरक्षण नीति के विरोध में धरने में शामिल छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ हुई बातचीत को लेकर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कहा कि मैंने आज ओपन मेरिट स्टूडेंट्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से मुलाकात की।

    लोकतंत्र की खूबसूरती यह है कि इसमें हमें अपनी बात कहने का अधिकार है और आपसी सहयोग की भावना से संवाद करना है। मैंने उनसे कुछ अनुरोध किए हैं और उन्हें कई आश्वासन दिए हैं। संवाद का यह चैनल बिना किसी बिचौलिए या पिछलग्गू के खुला रहेगा।

    'आरक्षण का लाभ एक बार होना चाहिए'

    मुख्यमंत्री से बातचीत में शामिल रहे एक छात्र ने कहा लगभग 30 मिनट तक हमारी बातचीत हुई है। मुख्यमंत्री ने हमसे छह माह का समय मांगा है और कहा कि उन्होंने जो कैबिनेट उपसमिति बनाई है, वह अपना काम पूरा कर लेगी।

    उक्त छात्र ने कहा कि मुख्यमंत्री ने कहा कि यह मुद्दा अदालत में भी है, इसके कानूनी पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा, लेकिन किसी के साथ अन्याय न हो, यह उनकी प्राथमिकता है। हमने कहा है कि आरक्षण का लाभ एक बार होना चाहिए, मेरिट को आरक्षण की भेंट नहीं चढ़ाया जाए।

    'छात्रों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए यहां आए हैं'

    दोपहर दो बजे मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के गुपकार स्थित सरकारी निवास के बाहर आगा सैयद रुहुल्ला के नेतृत्व में बड़ संख्या में छात्र आरक्षण नीति के खिलाफ नारेबाजी करते हुए जमा हुए। रिजर्वेशन पॉलिसी मंजूर नहीं मंजूर नहीं, इसे वापस लो वापस लो, की जोरदार नारेबाजी से गुपकार मार्ग की शांति भंग हो गई।

    पीडीपी नेता भी अपने समर्थकों संग वहां पहुंच गए। पीडीपी की युवा इकाई के प्रधान और विधायक वहीद उर रहमान परा ने कहा कि हम छात्रों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए यहां आए हैं।

    सभी दलों को इस न्यायसंगत विषयों पर एकजुट होना चाहिए। आरक्षण नीति व्यावहारिक होनी चाहिए। सामान्यवर्ग के लिए नौकिरयों और शिक्षा में अवसर लगातार घटते जा रहे हैं। मेरिट का गला नहीं घोंटा जाना चाहिए।

    यह गंभीर शिकायतों को दूर करने और यह सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण क्षण है कि हमारी नीतियां समावेशी युवा अनुकूल हैं। इस बीच मुख्यमंत्री ने प्रदर्शन में शामिल लोगों को अपना एक प्रतिनिधिमंडल बातचीत के लिए अपने घर के भीतर भेजने को कहा। इसके बाद छह छात्रों का एक दल जिनमें से कुछ मेडिकल छात्र हैं, मुख्यमत्री से मिलने गए।

    सभी वर्गों के हितों की रक्षा करनी चाहिए

    जब मुख्यमंत्री के घर के बाहर आरक्षण के मुद्दे पर नारेबाजी हो रही थी तो उस समय अपने घर में कथित तौर पर नजरबंद मीरवाइज मौलवी उमर फारूक ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा कि आरक्षण के मुद्दे को न्याय और निष्पक्षता के आधार पर हल किया जाना चाहिए।

    समाज के सभी वर्गों के हितों की रक्षा करनी चाहिए। मीरवाइज ने छात्रों को अपने समर्थन का यकीन दिलात हुए आगे लिखा कि "आरक्षण की वर्तमान स्थिति सामान्य/ओपन मेरिट श्रेणी के हितों को कम करती है। उन्होंने कहा कि वह नजरबंद होने के कारण इस प्रदर्शन में शामिल नहीं हो पा रहे हैं,लेकिन उनका एक प्रतिनिधिमंडल शामिल होगा और कुछ ही देर बाद एडवोकेट नासिर अपने साथियों संग गुपकार पहुंच गए।

    नेशनल कान्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता और सांसद आगा सैयद रुहुल्ल मेहदी ने कहा कि मौजूदा आरक्षण नीति एक विशेष समुदाय के लिए ही है। इससे नीति से सामान्य वर्ग और ओपन मेरिट के हजारों नहीं बल्कि लाखों नौजवानों, छात्रों का भविष्य दांव पर लग गया है।

    जम्मू कश्मीर में सामान्य वर्ग की आबादी 80 प्रतिशत है,लेकिन उसके लिए सरकारी रोजगार और सरकारी शिक्षण संस्थानों में अवसर 35-40 प्रतिशत तक सीमित हो गएहैं। मुख्यमंत्री और छात्रों के बीच बातीचत हुई है,अगर छात्र संतुष्ट हैं तो मैं भी संतुष्ट हूं।

    यह गंभीर शिकायतों को दूर करने और यह सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण क्षण है कि हमारी नीतियां समावेशी युवा अनुकूल हैं।उन्होंने कहा कि मैने पहले ही कहा था कि 22 दिसंबर तक अगर इस मुद्दे को हल नहीं किया गया तो मैं मुख्यमंत्री के घर के बाहर धरने पर बैठूंगा।

    उन्होंने कहा कि आज का धरना कोई सरकार के खिलाफ रोष प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह जनता की सभा है, जो एक बड़े गंभीर मुद्दे के समाधान के लिए है। इसे आप राजनीति से मत जोड़े।

    क्या है विवाद

    जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम,2005 के मुताबिक, जम्मू कश्मीर में आरक्षित वर्गाें के लिए 43 प्रतिशत अवसर सरकारी रोजगार और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षित रहते थे। सामान्य वर्ग के लिए 57 प्रतिशत अवसर उपलब्ध थे।

    जून 2018 में जम्मू कश्मीर में निर्वाचित सरकार भंग होने के बाद आरक्षण नियमों में बदलाव की प्रक्रिया शुरु हुई और मार्च 2024 तक आरक्षित वर्गाें के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण हो गया था।

    इसके मुताबिक, मार्च 2024 से पहले यह थी व्यवस्था मार्च 2024 से पहले तक सरकारी विभागों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण कोटे के मुताबिक एससी के लिए आठ, एसटी के लिए 10, कमजोर व अन्य सामाजिक जातियां एवं वंचित वर्ग के लिए चार, एएलसी आइबी के लिए चार, आरबीए के लिए 10, पहाड़ी भाषी समुदाय के लिए चार, ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत का आरक्षण था। तब सामान्य वर्ग के लिए 50 प्रतिशत अवसर उपलब्ध रहते थे।

    मार्च 2024 में जम्मू कश्मीर में पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने और अन्य सामाजिक जातियों को ओबीसी में परिभाषित करने के बाद जम्मू कश्मीर में एससी के लिए आठ, एसटी-1 के लिए 10, एसटी-2 के लिए 10, ओबीसी के लिए आठ, एएलसी आइबी के लिए चार, आरबीए और ईडब्ल्यूएस के लिए 10-10 प्रतिशत आरक्षण हो गया और सामान्य वर्ग के लिए 40 प्रतिशत स्थान रह गए।

    साथ ही सैन्यकर्मियों औरपुलिसकर्मियों के बच्चों के अलावा दिव्यांगों और खिलाड़ियों के लिए आरक्षण कोटे की सुविधा के बाद सामान्य वर्ग के लिए अवसर और घट गए हैं। इससे जममू कश्मीर में सामान्य वर्ग के लोगों में रोष पैदा हो गया है। जम्मू स्थित विभिन्न राजनीतिक दलों क ेनेता भी आरक्षण नीति को व्यावहारिक बनाए जाने की मांग करते हैं,लेकिन जम्मू प्रांत में अनुसूचित जाति औरअनुसूचित जनजाति मं अपने वोट बैंक के खिसकने के डर से वह ज्यादा मुखर नहीं हैं।

    सरकार तलाश रही समाधान

    जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आरक्षण नीति के मुद्दे पर विभिन्न समुदायों की आशंकाओं के समाधान और उनके हितों के संरक्षण को सुनिश्चित बनाते हुए,आरक्षण नीति को पूरी तरह व्यावहारिक बनाने के लिए एक केेबिनेट उपसमिति का गठन किया है।

    समिति की अध्यक्षता समाज कल्याण मंत्री सकीना इट्टू कर रही हैं जबकि उनके साथ जलशक्ति मंत्री जावेद अहमद राणा और युवा सेवा एवं खेल मामलों क मंत्री सतीश शर्मा इसमें सदस्य हैं। समिति समाज के विभिन्न वर्गाें के साथबातचीत के जरिए इस मामले को हल करने का प्रयास कर रही है। सरकार का प्रयास है कि सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देशानुसार, आरक्षण को किसी तरह 50 प्रतिशत तक ही सीमित रखा जाए।