गुणों से होता है साधु की पहचान : देवकीनंदन
जागरण संवाददाता, जम्मू : सच्चे साधु की पहचान उसके गुणों से होती है न कि वेशभूषा से। अगर वेशभूषा बदलने से लोग साधु हो जाएं तो हम रावण को भी साधु ही समझेंगे। रावण असाधु है, साधु का वेशधारण कर सीता जी का हरण किया। शुक्रदेव जी दिगंबर वेश में भी साधु हैं, जिन्होंने परीक्षित महाराज को भागवत कथा सुनाकर उनका उद्धार किया।
यह विचार ग्रीन बेल्ट पार्क स्थित गोकुल सभा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दौरान स्वामी देवकीनंदन ने व्यक्त किए। भगवान श्री कपित देव ने श्रीमद्भागवत में अपनी माता देवहूति को सच्चे साधु के लक्षण बताते हुए कहा था कि जिसकी सद्वस्तु भगवान में अनन्य भाव से प्रीति है वह साधु है। चाहे वह ब्रह्माचारी, गृहस्थी, वानप्रस्थी अथवा सन्यासी ही क्यों न हो या फिर ब्राह्माण, क्षत्रिय, वैश्य या शुद्र हो। यहां तक कि पशु, पक्षी व कीट-पतंग भी साधु की क्षेणी में आते हैं। जैसे हनुमान जी वानर जन्म में हैं, जामवंत जी भालू जन्म में हैं। गुरुड़ जी पक्षी जन्म में हैं। ऐसे जन्म को पाकर भी ये परम संत हैं। इनकी कृपा हो जाए तो साक्षात श्री हरि मिल जाएं। स्वामी देवकीनंदन ने सबको सावधान करते हुए समझाया कि हमें ढोंगी साधुओं से सावधान रहना चाहिए।
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