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    552 लोगों ने गंवाई जान, कहीं फटा बादल तो कहीं लैंडस्लाइड... जम्मू-कश्मीर में किसी आफत से कम नहीं थे पिछले 12 साल

    Updated: Sun, 17 Aug 2025 03:03 PM (IST)

    किश्तवाड़ में बादल फटने के बाद एक नए अध्ययन से पता चला है कि जम्मू-कश्मीर में 2010 से 2022 के बीच 2863 चरम मौसमी घटनाएं हुईं जिनमें 552 लोगों की मौत हो गई। बिजली गिरने की घटनाएं सबसे आम थीं लेकिन भारी बर्फबारी सबसे घातक साबित हुई। कुपवाड़ा बांडीपोरा और अन्य जिले हिमपात से ज्यादा प्रभावित थे।

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    जम्मू-कश्मीर में 12 सालों में 2,863 बड़ी मौसमी घटनाओं में 552 मौतें हुई हैं। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, जम्मू। किश्तवाड़ में बादल फटने की हालिया घटना के बीच एक नए अध्ययन ने जम्मू-कश्मीर में चरम मौसमी घटनाओं के भयावह असर को उजागर किया है।

    मौसम विज्ञान विभाग की त्रैमासिक पत्रिका ’मौसम’ में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार, वर्ष 2010 से 2022 के बीच प्रदेश में 2,863 चरम मौसमी घटनाएं हुईं, जिनमें 552 लोगों की मौत हुई।

    अध्ययन में पाया गया कि बिजली गिरना सबसे अधिक बार हुआ खतरा रहा। जिसके 1,942 मामले दर्ज हुए। इसके बाद भारी बारिश के 409, फ्लैश फ्लड के 168 और 42 बार भारी हिमपात की घटनाएं दर्ज की गईं। हालांकि संख्या में कम होने के बावजूद भारी हिमपात सबसे घातक साबित हुआ।

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    जिसने 182 लोगों की जान ली, यानी औसतन हर घटना में 4 से अधिक मौतें हुईं। इसके अलावा फ्लैश फ्लड से 119, भारी बारिश से 111 और भूस्खलन से 71 लोगों की मौत हुई। जिला स्तर पर, कुपवाड़ा, बांड़ीपोरा, बारामुला और गांदरबल में हिमपात से सबसे ज्यादा मौतें हुईं, जबकि किश्तवाड़, अनंतनाग, गांदरबल और डोडा फ्लैश फ्लड से सबसे ज्यादा प्रभावित रहे।

    शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी क्षेत्र में इस तरह की आपदाएं तेजी से बढ़ रही हैं। अध्ययन करने वाली टीम में के वैज्ञानिक मुख्तार अहमद, सोनम लोटस, फारूक अहमद भट, आमिर हसन किचलू, शिविंदर सिंह और बप्पा दास शामिल रहे।

    रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि जम्मू-कश्मीर सहित पूरा हिमालयी क्षेत्र जलवायु अनुकूलन उपायों की तत्काल आवश्यकता महसूस कर रहा है, क्योंकि यह इलाका लगातार चरम मौसमी घटनाओं का सबसे बड़ा खामियाजा भुगत रहा है।