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    भारत अनेक संस्कृतियों व परंपराओं का देश

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    Updated: Tue, 15 Sep 2015 04:59 PM (IST)

    अगर भारत की पहचान अनेकता में एकता वाले बहु-सांस्कृतिक समुदाय की बन पाई है तो इसका पूरा श्रेय देश

    अगर भारत की पहचान अनेकता में एकता वाले बहु-सांस्कृतिक समुदाय की बन पाई है तो इसका पूरा श्रेय देश की उद्धात व सहिष्णु परंपरा को जाता है। भारत अनेक संस्कृतियों और परंपराओं का देश है। यहां हर धर्म और संप्रदाय सैकड़ों वर्षो से अपने ढंग से पल्लवित और पुष्पित होते आए हैं। यह ऐसा देश है, जहां धार्मिक विविधता व सहिष्णुता को समाज व कानून दोनों से मान्यता प्राप्त है। धार्मिक सहिष्णुता का अर्थ सहनशीलता अथवा सहिष्णु होने की अवस्था, गुण या भाव होता है। भारत के इतिहास में प्राचीन काल से ही धर्म का यहां की संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कई शताब्दियों तक द्रविड़ परंपरा से आर्य परंपरा का सुंदर संयोग हुआ है। इसके बाद भी अनेक जातियों से सांस्कृतिक सम्मेलन की प्रक्रिया जारी रही। इसकी सुंदर अभिव्यक्ति वैदिक रचनाओं में मिलती है। वसुधैव कुटुम्बकम इसका प्रमुख लक्ष्य है।

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    भारत के साम्राज्य की स्थापना के पीछे चाणक्य की योजना थी। चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य को चेहरा बनाकर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक अर्थ शास्त्र के सिद्धांतों पर चलते हुए मौर्य समाज की ठोस नींव रखी। चंद्रगुप्त के बाद बिंदुसार इस महान साम्राज्य के सम्राट बने। उनके दरबार को आजीवक भिक्षु सुशोभित करते थे। भारत के महान सम्राट अशोक आरंभ में शिव के उपासक थे और कलिंग युद्ध के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म को अपना लिया। इसके बाद अशोक ने जीवन धम्म का प्रचार किया। उनका धम्म किसी खास संप्रदाय के विचारों तक सीमित नहीं था। अपितु यह एक नैतिक जीवन शैली थी। अशोक ने जो अभिलेख जारी किए थे, वह एक सम्राट के रूप में थे। इनमें अशोक बार-बार सभी संप्रदायों के बीच सहिष्णुता की बात करते हैं। सहिष्णुता की यह परंपरा केवल उत्तर भारत में ही नहीं, दक्षिण भारत में भी दिखती हैं। दो घटनाएं बताती हैं कि दक्षिण में किस तरह की सांस्कृतिक सहिष्णुता थी। पहला तो केरल के मुजरिस में रोमन राजा ऑगस्टस का मंदिर और दूसरा सेंट टॉम्स की भारत यात्रा। ईसा के बारह शिष्यों में से एक सेंट टॉम्स ने ईसाई मत का प्रचार करने के लिए फिलीस्तीन से केरल तक कठिन यात्रा की। प्राचीन भारत के अंतिम हिंदू सम्राट कहे जाने वाले हर्षव‌र्द्धन ने भी व्यापक धार्मिक सहिष्णुता बरती थी और हिदू व बौद्ध धर्म को बराबर महत्व दिया था। उस समय भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने तत्कालीन भारतीय समाज की धार्मिक सहिष्णुता की खुले दिल से तारीफ की थी।

    भारत विश्व के चार प्रमुख धार्मिक परंपराओं का जन्म स्थान है। ये चार परंपराएं हैं। हिंदू, जैन, बौद्ध व सिख धर्म। इसके अलावा भारत में कई धर्म फले-फूले व पोषित हुए हैं। यहां धार्मिक विभिन्नता व धार्मिक विविधता की कोई कमी नहीं है। संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र घोषित किया गया है। यहां कोई भी नागरिक स्वतंत्र रूप से किसी भी धर्म को अपना सकता है। उसका पालन, पोषण व प्रचार प्रसार कर सकता है। भारतीय नागरिक आमतौर पर हर धर्म के प्रति काफी सहिष्णुता दर्शाते हैं और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण बनाए रखते हैं।

    वर्तमान में धार्मिक सहिष्णुता की आवश्यकता है। धर्म चाहे कोई भी हो, सभी धर्म समान हैं। इसी आस्था के चलते देश में शांति, स्थिरता और सहिष्णुता का वातावरण बना रह सकता है।

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