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    तलाक पर तकरार

    By Babita kashyapEdited By:
    Updated: Sat, 05 Nov 2016 03:28 PM (IST)

    तीन तलाक की लटकती तलवार से निजात पाने के लिए लड़ रही तमाम महिलाएं मजहब पर राजनीति और समान नागरिक संहिता को इस मुद्दे के साथ जोड़े जाने के खिलाफ हैं। इन संघर्षरत महिलाओं और पीडि़तों से बात कर हमने जानने की कोशिश की उनकी तर्कपूर्ण सोच और कष्टों की बानगी...

    तलाक को बना दिया मजाक

    जकिया सोमन, संस्थापक, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन

    खाना पसंद नहीं आया तो तलाक देता हूं। मुझे बिना बताए मायके गई तो तलाक देता हूं।

    फोन पर किससे बात कर रही थी? वो कौन था? जा मैं तुझे तलाक देता हूं। इस तरह से तलाक हो रहे हैं मुस्लिम समाज में। लगता है जैसे तलाक को मजाक बना दिया गया है। शादी एक गंभीर रिश्ता है। उसे एक घड़ी में एकतरफा तरीके से कैसे खत्म कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर पाबंदी की याचिका में हमने दलील

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    दी है कि कुरान में हम बराबर की मुसलमान हैं। हमारे अधिकारों का हनन हो रहा है। कुरान में तीन तलाक का कहीं कोई जिक्र नहीं है।फिर भी हमारी जिंदगी में यह जहर घोल रहा है। हमने अपनी याचिका में कुरान की वे आयतें लिखी हैं, जिनसे महिलाओं की समानता का पता चलता है। कुरान में हमें जो अधिकार मिले हैं, वे हमारी जिंदगी में हकीकत में तब्दील नहीं हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक में महिलाओं की याचिकाएं लगी हैं। तलाक, बहुपत्नीत्व और मेहर को लेकर चर्चा हो रही है। मजहब कीआड़ में राजनीति हो रही है। आम मुसलमान महिला चाहती है कि तीन तलाक पर पाबंदी लगे।

    मुस्लिम फैमिली लॉ का कोडिफिकेशन हो

    नूरजहां सफिया नियाज, सह-संस्थापक, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन

    जब से भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की शुरुआत हुई है, तब से हम मांग रहे हैं कि मुस्लिम फैमिली लॉ का कोडिफिकेशन होना चाहिए। जैसे हिंदू मैरिज एक्ट है, वैसे ही मुस्लिम विवाह अधिनियम भी बने और यह संसद से पारित हो। हम सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ का कोडिफिकेशन चाहते हैं जो कुरान पर आधारित हो और संविधान के सिद्धांतों, क्वालिटी व जस्टिस के अनुरूप हो। हम मुस्लिम औरतों का हक चाहते हैं। इसे समान नागरिक संहिता से जोडऩे का कोई औचित्य नहीं है। इस बहस में मुस्लिम औरतों की जरूरतें कहीं पर गुम हो जाती हैं। हमें तुरंत एक कानून ऐसा चाहिए, जिससे तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं पर पाबंदी

    लगाई जा सके। आज मुस्लिम महिलाएं अपने हकके बारे में खुलकर बातें कर रही हैं। इस बदलाव का सम्मान किया जाना चाहिए और मसले का हल निकलना चाहिए। हलाला और मुताह मैरिज, जिसमें कुछ महीनों तक के लिए निकाह होता है और तय महीनों के बाद अपने आप तलाक हो जाता है, जैसी कुरीतियां खत्म होनी चाहिए। हम हक की बात कर रहे हैं, जो मजहब में लिखा है, वही मांग रहे हैं और जो मांग रहे हैं वह नया नहीं है। दुनिया के करीब 22 मुल्कों में तीन तलाक पर पाबंदी है। पाकिस्तान और बांग्लादेश तक में ऐसा हो चुका है।

    हथियार न बने

    डॉ. हिना जहीर नकवी, महिला काजी

    कुरान कहता है कि हम तलाक को पसंद नहीं करते हैं, लेकिन किसी पर संबंधों का दबाव भी नहीं डाला जा सकता। यह मानवीयता केविरुद्ध होगा। यह एक मौका है, लेकिन किसी की जिंदगी बर्बाद करने के लिए हथियार के रूप में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। आपसी संबंधों में विश्वास की जरूरत है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को कहीं न कहीं यह लग रहा है कि आज तलाक के मुद्दे को लेकर किया जा रहा दखल कहीं बढ़ न जाए और मुस्लिम पर्सनल लॉ को कुरान के विरुद्ध न कर दिया जाए। वे पजेसिव हैं, लेकिन अगर मानवीयता के

    आधार पर देखें और सोचें कि हम भी किसी के पिता, भाई हैं तो सही होगा। सीधी बात यह है कि कुरान का अनुसरण किया जाना चाहिए। कोड ऑफ कंडक्ट कुरान है। किसी सोशल मीडिया द्वारा तलाक नहीं होना चाहिए। औरत को तीन महीने उसी घर में रहना चाहिए ताकि समझौते की गुंजाइश हो। मौखिक तीन तलाक व्यवस्था में सुधार किए जाने की जरूरत है। इसे कुरान की प्रक्रिया के अनुरूप किया जाना चाहिए। कुरान में तलाक तब माना जाता है, जब औरत पीरियड्स में न हो। अगर महिला के गर्भवती होने का अंदेशा है तो गर्भ की पुष्टि होने तक तलाक नहीं हो सकता। इसमें तीन महीने दिए जाने की बात है।

    कुरान की भावना के खिलाफ

    शाइस्ता अंबर, अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम

    महिला पर्सनल लॉ बोर्ड तलाक की दहशत है। आज एसएमएस, इंटरनेट और बाई पोस्ट तलाक दिए जा रहे हैं। मौलाना इसे मान भी लेते हैं। यह कुरान शरीफ की भावनाओं व कानून के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट में हमने कहा है कि निकाह को रजिस्टर कराया जाए। तीन तलाक को असंवैधानिक माना जाए। दूसरी शादी में न्याय नहीं होता, इसलिए इसे रोका जाना चाहिए। हलाला निकाह हराम है, इसलिए इसे बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। मेरी लड़ाई 2005 से चल रही है। 2009 में हजारों महिलाओं के हस्ताक्षर के साथ हमने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से गुजारिश की थी कि हिंदू मैरिज एक्ट की तरह मुस्लिम मैरिज एक्ट भी संसद में पारित किया जाए।

    सजा औरत क्यों भुगते

    नाजनीन अंसारी, अध्यक्ष, मुस्लिम महिला फाउंडेशन

    आदमी गुस्से और नशे जैसी हालत में तीन तलाक दे देता है और बाद में जब उसी बीवी के साथ रहना चाहता है तो हलाला निकाह के लिए कहता है। मर्द के इस गुनाह की सजा औरत क्यों भुगते? हम पूरे देश में हस्ताक्षर अभियान चला रहे हैं और तीन तलाक पर पाबंदी की मांग कर रहे हैं। जो इनका विरोध कर रहे हैं, उनसे हम कहना चाहते हैं कि अगर वे शरीयत के अनुसार तीन तलाक का कानून लागू करना चाह रहे हैं तो चोरी, हत्या, रेप जैसे अपराधों पर भी शरीयत का कानून लागू करें।

    जिस महिला ने तलाक का दर्द झेला है, उसका दर्द कोई भी नहीं समझ पाएगा। एक ही झटके में उसकी पूरी जिंदगी खत्म हो जाती है। न तो इन्हें कोई गुजारा भत्ता मिलता है और न ही इनके पास कोई सहारा होता है। मुस्लिम समाज में आमतौर पर लड़कियां कम पढ़ी-लिखी होती हैं। कलम की ताकत के बिना कुछ भी संभव नहीं। अगर महिलाएं शिक्षित होंगी तो जागरूक होंगी और आगे आएंगी। हमारी महिला कचहरी लगती है, जिसमें हर तरह की पीडि़त महिलाएं आती हैं, जो हम अपने स्तर पर सुलझा सकते हैं, उसे सुलझाते हैं। हम जिस देश में रहते हैं, हमें उस देश के कानून को लागू करना होगा।

    मुझे तलाक क्यों दिया गया

    सायरा शेख, पीडि़त, बांद्रा, मुंबई

    आदमी को क्या हक है कि वह तीन-चार शादियां करे? ठोस कारण है तो तलाक दो, लेकिन ऐसे कई सारी शादियां करना कहां तक जायज है? 14 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई। बच्चे भी हो गए और पहला पति छोड़कर चला गया। वह शादी के समय से ही किसी और को पसंद करता था। तेरह साल अकेले रहकर बच्चे पाले। बच्चे जब बड़े हो गए तो एक अखबार में शादी का इश्तेहार

    देखकर पिता ने कहा कि अब तुम शादी कर

    लो और मैंने एक बार फिर जिंदगी की ओर कदम बढ़ाया, पर मुझे क्या पता था कि मेरा शौहर चौधरी मुनीर हुसैन शादी करने और तलाक देने में माहिर है। उसकी एक बीवी पहले से थी और दूसरी के तलाक के कागज मुझे दिखाई दे गए। मैं कुछ दिन के लिए मायके क्या आई पीछे-पीछे तलाकनामा आ गया। जिंदगी में दूसरी बार धोखा खाया मैंने। मैं जानना चाहती हूं कि आखिर मुझे दिए गए तलाक का कारण क्या है? क्यों मेरी मर्जी नहीं पूछी गई? पता नहीं मुझे इंसाफ मिलेगा या नहीं। अभी भी मुनीर ने फिर से शादी रचाने के लिए इश्तेहार दिया है।

    दुनिया समझ रही, अपने नहीं

    लुबना चौधरी, सामाजिक कार्यकर्ता

    मैं पिछले दस साल से लड़ रही हूं। जो बात दुनिया समझ रही है, वह अपने ही नहीं समझ रहे। इन्हें अफसोस क्यों नहीं हो रहा है? जब मुझे तलाक दिया गया, उस समय मैं मात्र बीस साल की थी। गोद में छोटा बच्चा था। मेरा बच्चा बहुत बीमार था। मैंने इस बारे में पति को मैसेज किए तो उसने घर आकर मुझे मारना शुरू कर दिया और कहा कि तुमने मुझे डिस्टर्ब किया है, जाओ मैं तुम्हें तलाक देता हूं । दरअसल वे मौका ढूंढ़ रहे थे मुझे तलाक देने का। लेकिन मैंने कहा कि तुम तीन बार बोलो या तीस बार, मैं नहीं जाऊंगी। उनका एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर हो गया तो उन्होंने मुझे जाने के लिए कहा। मुझे बंद कमरे में रॉड से मारा। होश आया तो मैं अस्पताल में थी। केस

    किया तो जमात के लोग घर आए अम्मी को बोलने कि आपने ऐसा क्यों किया? मैंने उनसे सवाल किया कि कौन सी शरीयत और कौन सा इस्लाम इस बात की इजाजत देता है कि एक लड़की को बेरहमी से मार कर बाहर निकाल दिया जाए? हमारी जमात में कोई लड़की कोर्ट चली जाए तो बेशर्म कहकर उसका बहिष्कार कर दिया जाता है। लोगों ने इस्लाम को ऐसा फोबिया बना रखा है कि कोई इस बारे में कुछ बोल ही नहीं सकता है। मुझे मम्मी के पास भेज दिया गया। मम्मी मुझे मौलवी के पास लेकर गईं, लेकिन उन्होंने कहा कि तलाक हो चुका है

    और अब इसका समाधान हलाला है। तब तक मैंने हलाला शब्द नहीं सुना था तो उन्होंने बताया कि हम हलाला का भी प्रबंध करते हैं। उसकी प्रक्रिया बताई तो मैं वहां से गुस्से में उठकर चली आई। भारत में इस्लाम में बहुत भ्रम डाल दिए गए हैं। निकाहनामे को नोटरी से एप्रूव करवाना होता है, लेकिन तलाक बिना किसी दस्तावेज,

    एप्रूवल और कारण के हो जाता है।

    यशा माथुर