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    पैसे की तकरार में खो न जाए प्यार

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    Updated: Wed, 22 May 2013 12:39 PM (IST)

    पत्नी को पैसा छुपाने की जरूरत क्यों पड़ती है? यह सवाल जितना पुराना है, उतना ही पुराना इसका जवाब भी है-'संकट की घड़ी में यह सात तालों में बंद पैसा ही काम आता है'। फिर क्यों, कब और कैसे यही पैसा पति-पत्नी के रिश्ते में दरार डालने लगता है?

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    पत्नी को पैसा छुपाने की जरूरत क्यों पड़ती है? यह सवाल जितना पुराना है, उतना ही पुराना इसका जवाब भी है-'संकट की घड़ी में यह सात तालों में बंद पैसा ही काम आता है'। फिर क्यों, कब और कैसे यही पैसा पति-पत्नी के रिश्ते में दरार डालने लगता है?

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    एक सर्वे के मुताबिक, 67 प्रतिशत दंपती शादी के पहले साल में ही पैसे को लेकर झगड़ने लगते हैं। 'उसका पैसा-मेरा पैसा' मिलकर 'हमारा पैसा' क्यों नहीं बन पाता, सवाल यह सोचने का है। यह झगड़ा कई बार शादी से पहले ही शुरू हो जाता है। शादी में किस पक्ष को कितना खर्च करना होगा, शादी के बाद घर या गाड़ी खरीदने के लिए किसे जेब ढीली करनी होगी, घरेलू जिम्मेदारियां निभाने में किसकाबैंक बैलेंस कम होगा.., ये बहसें शादी से पहले या इसके तुरंत बाद होने लगती हैं।

    दोनों थोड़ा समझौता कर लें तो ठीक है, लेकिन कोई एक ऐसा न कर पाए तो बात बढ़ जाती है और फिर मामला कचहरी तक भी पहुंच जाता है।

    द नेशनल डाइरेक्टरी ऑफ मैरिज एंड फेमिली काउंसलिंग के अनुसार अमेरिका में 80 के दशक में होने वाले तलाक के 50 फीसदी मामलों में पैसा मुख्य कारण था। हालांकि शोध ये भी बताते हैं कि प्रीमैरिटल फाइनेंशियल काउंसलिंग से इनमें 30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।

    पैसा जब आड़े आने लगे

    परंपरागत तौर पर मध्यवर्गीय माता-पिता बेटी की शादी उसी घर में करना चाहते हैं जहां वर पक्ष आर्थिक रूप से समृद्ध हो। इसके बावजूद अमूमन दंपती पैसे को लेकर झगड़ते नजर आते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि मनी मैटर इसलिए भी बहस का मुद्दा हो गया है, क्योंकि स्त्रियां भी पुरुष की तरह कमाने लगी है। आर्थिक आत्मनिर्भरता उन्हें पैसे पर नियंत्रण रखने को प्रेरित कर रही है। कई बार अतिरिक्त सजग स्त्रियां अपने पर्स के साथ ही पति के वॉलेट पर भी पूरा नियंत्रण चाहती हैं। इसी तरह कई पुरुष भी पत्नी की कमाई पर अधिकार चाहते हैं। पुरुष प्रॉपर्टी या कार खरीदने के लिए पैसा बचाना चाहते हैं तो स्त्रियां कपड़ों, ज्यूलरी और एक्सेसरीज के लिए अपने पैसे बचाना चाहती हैं। पुरुष मानते हैं कि स्त्रियां अधिक खर्चीली हैं तो स्त्रियों को लगता है कि पुरुष ज्यादा खर्च करते हैं। स्त्रियों का यह भी कहना है कि पैसा परिवार की भलाई के लिए ही छिपाती हैं, पति की जरूरत में उसकी मदद भी करती हैं। पुरुष खर्चीला है या स्त्री, यह एक अलग मुद्दा है। कुछ लोग स्वभाव से ही खर्चीले होते हैं तो कुछ पर पारिवारिक जिम्मेदारियां अधिक होती हैं। कुछ के पास पैसे कम हैं और वे जरूरतें पूरी न होने के कारण परेशान हैं तो कुछ आयकर की मार तले निवेश कर-करके परेशान हैं।

    'बेहतर है, पैसे से जुड़े प्रमुख पहलुओं पर शादी से पहले लड़का-लड़की खुलकर बात करें।' यह कहना है काउंसलर अनु गोयल का। वह आगे कहती हैं, 'संकट के लिए कुछ पैसा सीक्रेट पर्स में बचाकर रखना अच्छी बात है, लेकिन पार्टनर से छिपाकर सीक्रेट सेविंग अकाउंट रखना गंभीर मुद्दा है। यह भविष्य में बड़े झगड़े का कारण बन सकता है। ऐसा न हो, इसके लिए शुरुआत से ही रिश्ते में पारदर्शिता बनाए रखें। यदि शादी से पहले अपनी देनदारियों, बैंक लोन और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बारे में पार्टनर को बता देंगे तो शादी के बाद झगड़ने से बच सकेंगे।'

    पैसे को लेकर रहस्य क्यों

    स्तरीय व मनचाही जीवनशैली के लिए पैसा जरूरी है, इसमें दो राय नहीं। लेकिन इसे इतना महत्व क्यों दिया जाए कि दांपत्य में दरार पैदा हो जाए! पैसा व्यावहारिक, किंतु संवेदनशील मुद्दा है। इसके साथ स्वतंत्रता, सुरक्षा व जीवन स्तर भी जुड़ा है। कई हिंदी फिल्मों में ऐसे दृश्य कई बार आते हैं जब अमीर युवा लड़की किसी गरीब लड़के के प्यार में पड़कर उससे शादी कर लेती है। शादी के बाद अचानक वह नींद से जाग उठती है और आटे-दाल का भाव मालूम होते ही उसे सुविधा-संपन्न मायका याद आने लगता है। दांपत्य में दरार पड़ने लगती है।

    अधिवक्ता हेमा साहू कहती हैं, 'पैसा एक निजी मसला हो सकता है, लेकिन पति-पत्नी को एक-दूसरे के पैसे व सेविंग्स के बारे में जानकारी होना भी जरूरी है। कई बार तो मैं यह देखकर चकित होती हूं कि उनका कोई जॉइंट अकाउंट नहीं होता और उन्हें यह भी मालूम नहीं होता कि पार्टनर पर कितना कर्ज है या उसने कितना निवेश किया है। ऐसे में अचानक किसी आपात स्थिति में कई तरह की व्यावहारिक दि़क्कतें आने लगती हैं। हालांकि ऐसे मामलों में जहां दहेज उत्पीड़न या प्रताड़ना हो, वहां यदि लड़कियां सेविंग छिपाती हैं तो यह गलत नहीं है।'

    अनु गोयल कहती हैं, 'नवविवाहित जोड़े मनी मैटर्स पर बात न करके गलती करते हैं। होम लोन, कार लोन, बिजनेस, एजुकेशन या पर्सनल लोन के बारे में शादी से पहले पार्टनर को बताना जरूरी है, ताकि वह मानसिक तौर पर इन खर्चो के लिए तैयार हो सके। मान लें, नौकरी या बिजनेस में कोई परेशानी चल रही हो और यह बात शादी तय होते समय न बताई जाए। लेकिन यही बात शादी के बाद पार्टनर को पता चलेगी तो वह आहत होगा, उसे लगेगा कि उससे यह बात छिपाई गई।'

    भारत में आमतौर पर शादी के समय कपल्स का करियर शुरुआती दौर में होता है। इच्छाएं बहुत होती हैं लेकिन पैसा सीमित होता है। अगर पहले से मनी मैनेजमेंट करें और इस पहलू पर खुलकर बातचीत करें तो समस्या नहीं आएगी। शादी के बाद पैसे से जुड़ा कोई भी फैसला अकेले नहीं, बल्कि पार्टनर की सहमति व राय से लिया जाना चाहिए।

    झगड़े की मुख्य वजहें

    खर्चा अगर आमदनी से अधिक हो तो झगड़ा होता है।

    क्या करें : अगर मौजूदा काम में आपकी बुनियादी जरूरतें पूरी न हो रही हों तो किसी अन्य जगह काम तलाशें। संभव हो तो घर के बड़े-बुजुर्गो या माता-पिता से मदद लें। हालांकि यह मदद 'एक निश्चित समय के लिए' ही होनी चाहिए, ताकि किसी पर बोझ न बनें।

    कर्ज या लोन : लोन या देनदारियां भी रिश्ते को प्रभावित करती हैं।

    क्या करें: लोन लेते समय ध्यान रखें कि यह आपकी कुल आमदनी का चौथाई हिस्सा ही हो, ताकि घरेलू व अन्य खर्चो पर इसका असर न पड़े। याद रखें, पति-पत्नी का रिश्ता तभी मधुर रह सकता है, जब उनका मन रुपये-पैसे की झंझटों से थोड़ा मुक्त हो।

    समझौते से इनकार: अपने पैसे को ज्यादा महत्व देना और पार्टनर की पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना।

    क्या करें : शादी की सफलता के लिए दोनों को प्रयास करना चाहिए। पति-पत्नी का हर फैसला संयुक्त होना चाहिए। इसी तरह जिम्मेदारियां भी मिलकर निभानी चाहिए। अगर पैसे से जुड़ी पार्टनर की कोई समस्या है और दूसरा अपने खर्च सीमित करने को तैयार न हो तो झगड़ा होगा। वैवाहिक जीवन की शांति के लिए त्याग व समझौता अनिवार्य है।

    आक्रामक रवैया: शादीशुदा दंपती में कोई एक बहुत हिसाब-किताब रखने वाला हो और दूसरे से हर खर्च का ब्यौरा चाहे।

    क्या करें: सुखी भविष्य के लिए बचत जरूरी है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि पार्टनर से पाई-पाई का हिसाब मांगें। जिंदगी में छोटी-छोटी खुशियां भी जरूरी हैं। पैसे को लेकर आक्रामक रवैया खतरनाक हो सकता है। इससे बचा जाना चाहिए। रिश्ते में थोड़ा स्पेस तो जरूरी है।

    सुखी वैवाहिक जीवन की रेसिपी

    1. पति-पत्नी मिलकर घरेलू बजट तैयार करें और तय करें कि हर महीने बुनियादी जरूरतों के लिए कितना पैसा चाहिए। अगर किसी मद में ज्यादा खर्च हो रहा हो तो दूसरे किसी मद में अपना खर्च कम करने की कोशिश करें।

    2. आमदनी व खर्च का ब्यौरा तैयार करने के बाद तय करें कि कितनी बचत करेंगे। जिसकी आमदनी ज्यादा है, उसका खर्च या बचत भी अधिक हो सकती है। इसे लेकर व्यर्थ विवाद न खड़ा करें।

    3. बचत के अलावा आकस्मिक खर्च का मद भी अवश्य रखें, ताकि कभी संकट में उसका उपयोग किया जा सके।

    4. एक-दूसरे को इतनी स्वतंत्रता दें कि वह खुद पर कुछ खर्च कर सके और इस पर कोई सवाल न खड़ा किया जाए। सभी की कुछ निजी जरूरतें होती हैं। बेहतर है इन्हें लेकर बहस न करें और न एक-दूसरे से कोई सवाल करें। 5. 'मैं सही-तुम गलत..' इस अंदाज में पार्टनर से बात न करें। अपना स्वर ऐसा रखें कि दूसरे को यह न लगे कि आप उस पर हावी होना चाहते हैं। पैसे को लेकर आक्रामक होने से बचें।

    6. पारिवारिक शांति के लिए थोड़ा समझौता करना सीखें। अगर पति या पत्नी में से कोई एक ज्यादा खर्चीला हो तो उसे नियंत्रित करने के बजाय शांत ढंग से इस दिशा में काम करें कि कैसे बिना उसे आहत किए उसके खर्च घटाए जा सकते हैं।

    7. बैंक अकाउंट्स, निवेश या मेडिक्लेम पॉलिसीज के बारे में जानकारी पति-पत्‍‌नी दोनों को होनी चाहिए, ताकि किसी संकट की घड़ी में परेशानी से बचा जा सके।

    8. परिवार में शादी, बीमारी या अन्य मौकों पर खर्च की संभावना हो तो हाथ खड़े करने के बजाय मदद कैसे की जाए, इस बारे में सोचें। सभी जिम्मेदारियां मिल-जुलकर निभाएं।

    9. रिश्ते में इतनी पारदर्शिता हो कि एक-दूसरे से रुपये-पैसे के बारे में कुछ छिपाने की जरूरत न पड़े।दांपत्य भरोसे पर ही टिकता है।

    इंदिरा राठौर

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