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    विवाहेतर संबंध क्यों, कैसे और किसलिए

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    Updated: Thu, 17 Jan 2013 03:28 PM (IST)

    आदिकाल से ही हमारे यहां एक पत्नी/पति की प्रथा, जिसे मोनोगेमि कहते है, चली आ रही है। वक्त के साथ लोगों ने इस प्रथा का महत्व जाना और बिना किसी लिखित आदेश के यह प्रथा हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण नॉर्म बन गई।

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    आदिकाल से ही हमारे यहां एक पत्नी/पति की प्रथा, जिसे मोनोगेमि कहते है, चली आ रही है। वक्त के साथ लोगों ने इस प्रथा का महत्व जाना और बिना किसी लिखित आदेश के यह प्रथा हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण नॉर्म बन गई। सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्तर पर इसका महत्व हम सभी मानते चले आ रहे है, फिर भी आश्चर्य की बात यह है कि इस नॉर्म के बावजूद बहुत पहले से हमारी सोसाइटी में विवाहेतर संबंध पनप रहे है। लेकिन हाल के वर्षो में फर्क यह आया है कि ऐसे संबंध जहां पहले इक्का-दुक्का, चोरी-छुपे ही देखने में आते थे, आज उनकी संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि वे एक तरह से हमारे समाज की रवायत-से बनते जा रहे है और अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, उन्हे किसी न किसी स्तर पर समाज स्वीकार भी करने लगा है।

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    बहुत से विचारकों और मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रथा एक मिथ है, जिसे हमने अपनी सहूलियत और सुरक्षा के लिए बना लिया है। चूंकि शादी के बाद पति-पत्नी एक-दूसरे से अपने संबंधों की सुरक्षा चाहते है, इसी के चलते मोनोगेमि का प्रचलन चल पड़ा। मोनोगेमि का मिथक होना या न होना बहस का मुद्दा हो सकता है, पर बढ़ते हुए विवाहेतर संबंधों ने इस प्रथा के कमजोर होते जाने का सबूत जरूर दिया है। आज जिस तेजी से हमारी सोसाइटी में विवाहेतर संबंधों का फैशन बढ़ रहा है, उसने तो विवाह संस्था पर ही सवालिया निशान लगा दिया है।

    शायद परंपराएं और रवायतें ऐसे ही बनती है। समाज विज्ञानियों के अनुसार जीने का हर नया अंदाज दबे पांव इंसान की प्रबल इच्छापूर्ति की आड़ में समाज में आता है। समाज अगर उसे जीने की खुली जगह देता है, तब यह परंपरा या रिवाज के रूप में समाज में पैर जमा लेता है।

    क्यों पनपते है ऐसे संबंध

    सवाल उठता है कि विवाहेतर संबंध क्यों पनपते है? रिसर्च से पता चलता है कि अलग-अलग लोगों में इन संबंधों के अलग-अलग कारण है। दांपत्य जीवन में उकताहट, किसी से भावनात्मक जुड़ाव, सेक्स लाइफ से असंतुष्टि, सेक्स से जुड़े कुछ नए अनुभव लेने की लालसा, वक्त के साथ आपसी संबंधों में प्रेम का अभाव, अपने पार्टनर की किसी आदत से तंग होना और एक-दूसरे को जलाने के लिए ऐसा करना। इसके अलावा भी यह फेहरिस्त काफी लंबी है क्योंकि हर व्यक्ति के कारण अलग हो सकते है, किंतु मोटे तौर पर विवाहेतर संबंधों के लिए निमन् कारण जिम्मेदार होते है।

    1. घरेलू समस्याएं, पार्टनर की कमजोरियां/आदतें, सेक्स लाइफ।

    2. नए संबंधों के प्रति जिज्ञासा, रिलेशंस में एडवेंचर की इच्छा या फिर वाकई किसी के प्रति प्यार महसूस करना।

    3. हमारी सोसाइटी भी एक हद तक इसके लिए जिम्मेदार है। एक तो हमारे यहां युवावस्था में लड़के-लड़कियों को आपस में घुलने-मिलने नहीं दिया जाता। दूसरे, सेक्स शिक्षा का प्रचलन अभी भी हमारी सोसाइटी में नहीं हो पाया है। नतीजतन संबंधों एवं सेक्स की अधकचरी जानकारी के साथ जब वे दांपत्य जीवन की शुरुआत करते है तो कई बार ऐसे संबंध नाकाम हो जाते है। तब वे अपनी भावनाओं को बाहर तृप्त करना चाहते है। अगर हम शादी से पहले लड़के-लड़कियों को आपस में समझने-जानने का अवसर दें, तो संभव है कि वे एक-दूसरे को बेहतर ढंग से जान पाएंगे।

    बदलाव भी स्वाभाविक

    बत्रा हॉस्पिटल और सफदरजंग में क्लीनिकल साइकैट्रिस्ट रह चुकीं डॉ. सुजाता शर्मा का मानना है, 'आमतौर पर कोई भी चीज लंबे समय तक एक जैसी नहीं रह सकती है। उसमें बदलाव जरूर आता है। यही बात संबंधों पर भी लागू होती है। खासतौर पर पति-पत्नी के संबंधों पर। बरसों से जो बंधन अटूट माना जाता रहा, अब उस संबंध में लोगों की आस्था वैसी नहीं रह गई है तो यह कोई ताज्जुब की बात नहीं। फिर आज फ्री मिक्सिंग के अवसर भी ज्यादा है, जिससे वैचारिक धरातल और फिर रूमानी धरातल पर जुड़ने की तमाम संभावनाएं बनती है। ऐसे में दो लोग किसी ऐसे संबंध में इन्वॉल्व हो जाएं तो आश्चर्य क्या! होता क्या है, शादी के आरंभिक सालों में दोनों एक-दूसरे के प्रति जो खिंचाव महसूस करते हैं, वह समय के साथ खत्म होता जाता है और तब शुरू होती है रिश्तों में उकताहट। इस उकताहट को बढ़ावा मिलता है आर्थिक समस्याओं, बच्चों की परेशानियों से। फिर इस उकताहट को दूर करने के लिए पति-पत्नी बाहर कहीं सुकून तलाशते है जहां उन्हे फिर से अपने वैवाहिक जीवन के आरंभिक वर्षो का रोमांच महसूस हो। यहीं से विवाहेतर संबंधों की शुरुआत होती है। मनचाहे पार्टनर या अपने जैसे विचारों वाले साथी को पाना अब उतना मुश्किल भी नहीं रहा।'

    सेक्सुअल डिजायर

    वैसे आमतौर पर लोगों का मानना है कि ऐसे संबंधों की शुरुआत का सबसे बड़ा कारण होता है- सेक्सुअल डिजायर। कई बार लोग अपने पार्टनर के साथ सेक्स लाइफ को एंज्वाय नहीं कर पाते या यूं कहे कि एक लंबे समय के बाद उन संबंधों में नीरसता आ जाती है तो उसे दूर करने के लिए ऐसे संबंध बनाए जाते है। कई दंपतियों का मानना है कि अपनी मैरिड लाइफ में कुछ चेंज लाने के लिए ऐसे संबंध बनाए जाते है। पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह कारण एकदम निराधार है। ऐसे कई लोग है जो अपनी सेक्स लाइफ से पूरी तरह संतुष्ट होने के बावजूद बाहर भी संबंध बनाए हुए है।

    भावनात्मक असुरक्षा

    पति-पत्नी के संबंधों में 'प्रेम' बहुत मायने रखता है-प्रेम जो शारीरिक-मानसिक दोनों स्तर पर हो। जब इस प्रेम का अहसास दोनों के बीच से मिटने लगता है तब दोनों में भावनात्मक स्तर पर असुरक्षा की भावना आ जाती है। मनोवैज्ञानिकों का विश्लेषण कहता है कि विवाहेतर संबंधों का कारण सेक्स नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच भावनात्मक स्तर पर जुड़ाव या लगाव का अभाव होना है। इसी अभाव की पूर्ति के लिए पति या पत्नी बाहर संबंध बनाते है जो पहले तो भावनात्मक स्तर पर होते है लेकिन कभी-कभी सेक्सुअल इंटीमेंसी में बदल जाते है। बदले की भावना

    कुछ लोगों से बातचीत के बाद पाया गया कि कई बार दंपती अपने पार्टनर को जलाने या सबक सिखाने के लिए विवाहेतर संबंध बना लेते है जिनमें न कोई सेक्सुअल डिजायर होती है, न प्रेम, केवल बदले की भावना होती है। यह एक ऐसा एंगल है जो सुनने में जरूर विचित्र लगता है पर यह सत्य है।

    नये अंदाज का रोमांस

    डॉ. सुजाता बताती है, 'आजकल मैट्रो कल्चर में नए तरह का रोमांस भी पनप रहा है-ऑफिस रोमांस। एक ही ऑफिस में, एक ही फील्ड में काम करने वाले स्त्री-पुरुष काम के मामले में एक-दूसरे के संपर्क में आते है, कई बार साथ-साथ आफिस टूर पर जाते है तो उनमें संबंध बन जाते है- कभी इमोशनल तो कभी उससे आगे बढ़कर फिजिकल भी। सबसे गौरतलब बात है कि आजकल ऐसे रिलेशंस में विवाहित महिलाएं भी इन्वॉल्व होने लगी है।'

    एक दृष्टिकोण यह भी

    यह भी शायद बरसों से चली आ रही वर्जनाओं को तोड़ने का ही प्रयास है। जिसके लिए लोग तर्क भी गढ़ लेते है कि जिंदगी उनकी है, चाहे वे जैसे जिएं। दिल्ली की अंजू अरुन एक स्कूल आध्यापिका है, पढ़ने का शौक है, विदेश में भी रह चुकी है। वह कहती है, 'आजकल फ्री जमाना है। किसी की निजी जिंदगी में दखलंदाजी करना ठीक नहीं। हमें किसी की जिंदगी पर टिप्पणी करने का क्या हक है।' लेकिन दूसरों की ऐसी जिंदगी, जिसकी बुनियाद अनैतिक सोच पर कायम हो, जिसके कारण दूसरों की जिंदगी पर कुप्रभाव पड़ने की संभावना हो, उसके बारे में सोचना, चर्चा करना तो गलत न होगा। जो व्यवहार समाज के मानक तोड़ता हो उसका सीधा नाता हमसे है, यह एक भावुक वाक्य नहीं, वैज्ञानिक सत्य है और इसे दखलंदाजी कहना भी सही नहीं होगा।

    सभी है समाज का हिस्सा

    'कोई भी घर समाज से अलग नहीं,' कहती है शिक्षा विज्ञान की लेक्चरार व सोशल साइकोलॉजिस्ट उमा शर्मा, 'यह भी सच है कि इंसानी फितरत, जो गलत है, जो मना है, उसकी ओर आकृष्ट होती है। मनमाने ढंग से जीना बड़ा आकर्षक लगता है। धीरे-धीरे ढंग, दबंग हो जाता है और समाज के हर तबके में कैंसर की भांति फैल जाता है। इसकी सबसे बड़ी सजा भुगतते है बच्चे। उनका विकास कुंठित व अस्वाभाविक हो जाता है। बच्चों की लॉयल्टी अपने घर से टूट जाती है। वे अपने में खुद को बहुत अकेला महसूस करते है व असुरक्षित महसूस करने लगते है। उनका व्यवहार एक ओढ़ा हुआ व्यवहार बन जाता है। सच-झूठ, अच्छा-बुरा परिस्थिति के हिसाब से सोचते है। अपने को अन्य बच्चों से अलग मानते हुए वे एक असामाजिक तत्वों की जमीन स्वयं बन जाते है। माता-पिता के प्रति दबी हुई शिकायत मन में घर कर लेती है। हवस की आग में कोमल भावनाएं समाप्त होने लगती है। यही बच्चे अधिकतर जुर्म करने, माता-पिता के प्रति असंवेदनशील व्यवहार करने और किसी भी तरह अपना स्वार्थ पूरा करने के आदी हो जाते है।'

    विदेशी विचारकों का दृष्टिकोण

    भूतपूर्व अमेरिकी प्रेसिडेट जॉन एफ. कैनेडी का कहना था, 'जब परिवार टूटते है तो समाज में असभ्य व्यवहार एवं देश में अराजकता फैल जाती है।'

    'अनैतिक व्यवहार सामाजिक संस्कृति के खिलाफ एक गुनाह है,' कहते है अमेरिका के ही समाजशास्त्री मक्रग्रेगर, 'ऐसा व्यवहार बड़े तरीके से पहले मान्यताओं को तोड़ता है, मान्यताओं के टूटने से परिवार टूटते है और फिर समाज की सोच बिलकुल भ्रमित हो जाती है। नैतिक क्या है व अनैतिक क्या है, इसका निर्णय अपनी संस्कृति पर आधारित तर्को पर ही किया जा सकता है।'

    यूं तो पति-पत्नी में से अगर कोई भी बाहर संबंध रखता है तो यह उसके परिवार के लिए अच्छा नहीं है, किंतु पुरुष के मुकाबले स्त्री का बाहर इन्वॉल्व होना परिवार के लिए ज्यादा घातक है क्योंकि स्त्री ज्यादातर इमोशनली किसी से जुड़ती है। ऐसे में उसकी सारी संवेदनाएं, भावनाएं परिवार की अपेक्षा बाहरी व्यक्ति को समर्पित हो जाती हैं।

    ऐसी स्थिति आने पर

    डा. सुजाता कहती है कि, 'आमतौर पर ऐसे संबंधों के बावजूद पति-पत्नी साथ रहते है। लेकिन बेहद असहज। एक पार्टनर तो बेहद तनावग्रस्त और डिप्रेस्ड। लेकिन होना यह चाहिए कि उस दौरान उनके बीच जो गलतफहमियां है उन्हे दूर करना चाहिए, जो गैप उनके संबंधों में आ गया है उसे पाटने की कोशिश करनी चाहिए।' डा. सुजाता ने बताया कि जब उनके क्लीनिक में ऐसा कोई केस आता है चाहे पत्नी की तरफ से या पति की तरफ से तो वह पहले यह पता लगाती हैं कि ये संबंध किस गहराई तक हैं और क्या उन्हे खत्म कर वैवाहिक जीवन को रिवाइव किया जा सकता है। अगर इसकी जरा भी गुंजाइश होती है तो वह ऐसा ही करती हैं अन्यथा तलाक ही इसका विकल्प बचता है।

    विशेषज्ञों का मानना है कि विवाहेतर संबंध पति-पत्नी दोनों में से किसी भी एक की व्यक्तिगत असफलता नहीं है। इसीलिए दुख, क्षोभ, अहं, घृणा सब भुलाकर पार्टनर से सहजता से बातचीत करनी चाहिए। आत्म मूल्यांकन भी करना चाहिए कि गलती कहां हुई। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि यदि पति-पत्नी आपस में संवाद रखें, समय-समय पर अपने संबंधों का मूल्यांकन करे, सेक्स लाइफ को स्पाइसी बनाएं तो इस तरह के संबंधों से बचा जा सकता है।

    ध्यान दें

    इसके लिए मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। अगर आपसी रिश्तों की गर्माहट कम हो गई है तो पुराने रिश्तों को पुराने कपड़े की तरह निकाल कर नए कपड़ों की तरह नए रिश्ते नहीं बनाए जा सकते है। पार्टनर को समझाने के कई तरीके है। उससे बातचीत करे, जो समस्या है उसे सुलझाएं, सेक्स के नए तरीके ईजाद करे, क्योंकि इस बात की क्या गारंटी है कि जो नया संबंध आपने बनाया है उसकी गर्माहट हमेशा बनी रहेगी?

    1. कभी इस खुशफहमी में न रहे कि आपके पार्टनर के कभी बाहर संबंध नहीं हो सकते। इसलिए अपने संबंधों में ऊष्मा कम न होने दें।

    2. याद रखें कोई भी व्यक्ति कभी भी कहीं भी किसी से जुड़ाव महसूस कर सकता है। ऐसा होते ही तुरंत अपने पार्टनर को विश्वास में लेकर उसे सारी स्थिति से अवगत कराएं। कई बार संवाद से कई समस्याएं हल हो जाती है।

    3. जहां तक हो सके मोनोगेमि में विश्वास रखें। यह तभी संभव है जब दोनों पक्ष, भले ही किसी और के प्रति आकर्षित हों, एक-दूसरे के प्रति ईमानदार रहे।

    विवाहेतर संबंध काफी उलझा हुआ विषय है जिस पर कई कहानियां लिखी गई है, बॉलीवुड की फिल्मों में 'लव ट्रायएंगल' का काफी प्रयोग होता है। कई बार ऐसी फिल्मों का अंत सुखद दिखाया जाता है, किंतु सच तो यह है कि ऐसे संबंधों में अंतत: सभी संबंधित लोगों के हिस्से में दुख, ग्लानि ही आती है।

    जागरण सखी

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