Move to Jagran APP

National sports day: कैसे ध्यान सिंह बन गए मेजर ध्यानचंद, चांदनी रात से था कैसा रिश्ता

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 में उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद जिसे अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है में हुआ था।

By Viplove KumarEdited By: Published: Sat, 29 Aug 2020 08:09 AM (IST)Updated: Sat, 29 Aug 2020 08:53 AM (IST)
National sports day: कैसे ध्यान सिंह बन गए मेजर ध्यानचंद, चांदनी रात से था कैसा रिश्ता
National sports day: कैसे ध्यान सिंह बन गए मेजर ध्यानचंद, चांदनी रात से था कैसा रिश्ता

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारतीय हॉकी के सबसे बड़े नायक मेजर ध्यानचंद का नाम पूरी दुनिया में हॉकी के जादूगर के नाम से मशहूर है। हॉकी स्टीक और मेजर के बीच कुछ ऐसा रिश्ता था जिसने उनके खेल देखने वालों के दीवाना बना दिया। जिस किसी ने भी इस भारतीय धुरंधर का खेल एक बार देखा वो उनके खेल का कायल हो गया। जर्मनी के तानाशाह हिटलर हो या फिर ऑस्ट्रेलियन दिग्गज डॉन ब्रैडमैन। 29 अगस्त को भारत में हॉकी के इस महानायक के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है।

loksabha election banner

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 में उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद जिसे अब प्रयागराज के नाम से जाना जाता है, में हुआ था। ध्यानचंद के बारे में यह मशहूर था कि जब वह गेंद लेकर मैदान पर दौड़ते थे तो ऐसा लगता था जैसे मानों गेंद उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। भारत के स्वर्णित हॉकी इतिहास के महानायक ने साल 1928, 1932 और 1936 ओलंपिक गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया। तीनों ही ओलंपिक में भारत ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।

ध्यान सिंह कैसे बन गए ध्यान चंद

मेजर की रैंक हासिल करने वाले ध्यानचंद महज 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हो गए थे। मेजर साहब का असली नाम ध्यानचंद नहीं बल्कि ध्यान सिंह था। खेल के प्रति जुनून ने ध्यान सिंह को ध्यानचंद का नाम दिलाया। अपने खेल को सुधारने के लिए वह सिर्फ और सिर्फ प्रैक्टिस करने के मौके तलाशते थे। यहां तक की वह अक्सर चंद की रौशनी में प्रैक्टिस करते नजर आते थे। चांद की रौशनी में प्रैक्टिस करता देख उनके दोस्तों ने नाम के साथ ‘चांद’ जोड़ दिया जो ‘चंद’ हो गया।

हॉकी के 'जादूगर' का मिला नाम

ध्यानचंद का खेल कुछ ऐसा था कि एक बार जो गेंद उनके पास आ जाती तो विरोधियों को इसे हासिल करने में पसीने छूट जाते थे। उनसे गेंद को छीनना बेहद मुश्किल था। एम्सटर्डम में साल 1928 में हुए ओलंपिक में ध्यानचंद सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी रहे थे। यहां उन्होंने कुल 14 गोल कर टीम को गोल्ड मेडल दिलवाया था। उनके इस प्रदर्शन के बाद एक स्थानीय पत्रकार ने कहा था, जिस तरह से ध्यानचंद खेलते हैं वो जादू है। उनका खेल हॉकी नहीं बल्कि 'जादू' है, और वो हॉकी के 'जादूगर'।

ध्यानचंद के हॉकी स्टीक की नीदरलैंड्स में हुई थी जांच

मेजर गेंद मिलने के बाद जिस तरह से उसपर लंबे समय तक कब्जा बनाए रखते थे लोगों को शक होता था। ध्यानचंद की इस प्रतिभा पर नीदरलैंड्स को शक हुआ और ध्यानचंद की हॉकी स्टिक तोड़कर इस बात की तसल्ली की गई, कहीं वह चुंबक लगाकर तो नहीं खेलते हैं।

सर डॉन ब्रैडमैन भी थे कायल

क्रिकेट इतिहास से सबसे बड़े बल्लेबाज ऑस्ट्रेलिया के सर डॉन ब्रैडमैन भी भारतीय हॉकी के महानायक के फैन थे। मेजर की टीम ने साल 1935 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का दौरा किया था। यहां उन्होंने 48 मैच खेले थे जिसमें कुल 201 गोल किए। ब्रैडमैन भी ध्यानचंद का एक मैच देखने आए और जब उन्होंने उनका खेल देखा तो दंग रह गए। ब्रैडमैन ने मैच के बाद कहा था, यह हॉकी में ऐसे गोल करते हैं, जैसे हम क्रिकेट में रन बनाते हैं।

ध्यानचंद ने ठुकरा दिया था हिटलर का ऑफर

अपने देश से प्यार करने वाले ध्यानचंत ने देशभक्ति की बड़ी मिसाल दी थी। साल 1936 में बर्लिन ओलंपिक के दौरान ध्यानचंद का जादू छाया रह था। भारतीय टीम ने पहला स्थान हासिल करते हुए गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। ध्यानचंद का खेल देख जर्मनी के तानाशाह हिटलर इतने प्रभावित हुए कि उनको अपने देश की तरफ से खेलने का ऑफर तक दे दिया। उनको सेना में बड़े पद पर बहाल किए जाने की बात भी कही थी लेकिन हॉकी के इस जादूगर ने भारतीय कहलाना ज्यादा बेहतर समझा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.