एशियन गेम्स 1966: हॉकी के हीरो हरबिंदर सिंह की जुबानी, फाइनल में कैसा था पाकिस्तान के खिलाफ माहौल
1966 एशियन गेम्स में भारतीय हॉकी टीम ने पाकिस्तान से पिछले दो आयोजन के फाइनल में मिली हार का बदला लिया और स्वर्ण पदक हासिल किया था।
नई दिल्ली, विकास पांड्या। 1966 एशियन गेम्स में भारतीय हॉकी टीम ने पाकिस्तान से पिछले दो आयोजन के फाइनल में मिली हार का बदला लिया और स्वर्ण पदक हासिल किया था। उस एशियन गेम्स में कई ऐसे खिलाड़ी थे जिनकी बदौलत भारत ने पहली बार एशियन गेम्स में सुनहरी सफलता हासिल की थी। उन्हें में से एक थे हरबिंदर सिंह।
1964 टोक्यो ओलंपिक और 1966 एशियन गेम्स में भारत की स्वर्णिम सफलता के गवाह रहे इस पूर्व भारतीय खिलाड़ी से विकास पांडेय ने विशेष बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश-
1966 में पहली बार भारत ने एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक हासिल किया था। क्या आज भी उसकी यादें आपको रोमांचित करती हैं?
मैं पहली बार एशियन गेम्स में खेल रहा था। तब भारत दो बार पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में हार चुका था लेकिन 1964 टोक्यो ओलंपिक के बाद भारतीय टीम ने एशियन गेम्स में भी स्वर्ण पदक जीता। टीम की कमान गोलकीपर शंकर लक्ष्मण के हाथों में थी जो टोक्यो ओलंपिक मे भी भारतीय दल की अगुआई कर चुके थे। हम बस जीतने आए थे और जीते। यकीनन वह एक खास पल था जिसकी यादें आज भी जेहन में हैं।
पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल कितना तनावपूर्ण था ?
भारत और पाकिस्तान का मुकाबला एक अलग ही स्तर का होता है। टोक्यो ओलंपिक में मिली शिकस्त का बदला लेने के लिए पाकिस्तान की टीम बेकरार थी। मुकाबला काफी संघर्षपूर्ण रहा। भारत के लिए तीन बलबीर सिंह उस मुकाबले में खेल रहे थे। तीनों को पहचानना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में इन तीनों को उनके राज्य के नाम के साथ पुकारा जाता था।
फाइनल में रेलवे के बलबीर सिंह शुरुआती मिनटों में ही चोटिल हो गए और भारत 10 खिलाडि़यों तक सीमित हो गया। तब चोटिल खिलाडि़यों को बदलने का कोई नियम नहीं था।
फुल टाइम तक मुकाबला गोलरहित बराबरी पर। अतिरिक्त समय का पहले साढे़ सात मिनट में भी कोई गोल नहीं हो सका लेकिन दूसरे हाफ में अपने साथी खिलाडि़यों के उत्साहवर्धन के बीच पट्टी बांधे बलबीर सिंह मैदान पर उतरे और पाकिस्तान के गोलकीपर को छकाकर उन्होंने निर्णायक गोल दागा और भारत को विजयी बनाया।
एशियन गेम्स में स्वर्ण जीतने के बाद भारत ने आप सभी का कैसे स्वागत हुआ?
तब टीवी की दुनिया नहीं थी। रेडियो पर लोग खबरें और कमेंट्री सुनते थे। एशियन गेम्स से जब हम स्वर्ण पदक जीतकर आए तो 26 जनवरी को इंडिया गेट की परेड में पूरी हॉकी टीम को आमंत्रित किया गया। बड़े गर्व की बात है कि हमें इतना सम्मान मिला।
आप एक हॉकी खिलाड़ी के अलावा राष्ट्रीय स्तर के धावक भी रहे हैं। आपको किसमें ज्यादा मजा आया ?
मेरा पहला प्यार हॉकी ही था। कॉलेज के दिनों में मेरा चयन हॉकी में हुआ था लेकिन एथलेटिक्स के कोच ने मेरी गति देखकर मुझे 100 मीटर और 200 मीटर की रेस में भाग लेने के लिए कहा। पंजाब यूनिवर्सिटी की ओर से मैंने दो स्वर्ण पदक भी हासिल किए। हॉकी मेरा जुनून था और एथलेटिक्स भगवान द्वारा दिया गया उपहार। हॉकी में उस गति का फायदा मिला।
2018 एशियन गेम्स में भारत से हॉकी में कितनी उम्मीदें है?
भारतीय टीम की तैयारियां अच्छी हैं। हालिया प्रदर्शन को देखें तो चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय पुरुष टीम ने दमदार प्रदर्शन किया और रजत पदक हासिल किया। फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से पेनल्टी शूटआउट में हारे लेकिन मुझे पूरी उम्मीद है कि हम इंडोनेशिया में इस बार अपने स्वर्ण पदक की रक्षा जरूर करेंगे।
महिला टीम ने भी लंदन में हाल ही में खत्म हुए विश्व कप में अच्छा प्रदर्शन किया और क्वार्टर फाइनल में जगह बनाई। भारतीय टीम उस टूर्नामेंट के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने वाली इकलौती एशियन टीम थी। हालांकि अभी भी टीम में कुछ खामियां हैं जिन पर उसे काम करना होगा।