ऊना: जसवां-प्रागपुर में बारिश के मलबे में उम्मीद की किरण, कैप्टन संजय पराशर ने बाढ़ पीड़ितों को गले लगाया; आर्थिक मदद के साथ बंधाया ढांढस
जसवां-प्रागपुर में बारिश से पीड़ित परिवारों को कैप्टन संजय पराशर ने सहारा दिया। मूंही पंचायत में धर्मपाल सिंह और राज कुमार के क्षतिग्रस्त घरों पर पहुंचकर उन्होंने आर्थिक मदद की और ढांढस बंधाया। स्थानीय लोगों ने पराशर की संवेदनशीलता और मदद करने के स्वभाव की सराहना की। उन्होंने कहा कि पराशर हमेशा क्षेत्र के लोगों के सुख-दुख में साथ खड़े रहते हैं और मानवता का परिचय देते हैं।

संवाद सहयोगी, चिंतपूर्णी। बरसात की बेरहम बूंदों ने इस बार जसवां-प्रागपुर क्षेत्र को गहरे जख्म दिए हैं। कल तक जिन घरों की दीवारें कल तक हंसी-खुशी की गवाह थीं, वे आज टूटे मलबे में अपने अस्तित्व की तलाश कर रही हैं। लेकिन इसी अंधेरे समय में कैप्टन संजय पराशर ने भी उम्मीद का दीप जलाया है।
बीते एक महीने से कैप्टन संजय पराशर जसवां-प्रागपुर में कहीं किसी पीड़ित परिवार के आंसू पोंछ रहे हैं, तो कहीं टूटी छत के नीचे खड़े होकर ढांढस बंधा रहे हैं कि ‘हिम्मत मत हारो, मैं हूं ना।’ उनकी उपस्थिति मात्र से लोगों में जो आत्मविश्वास और अपनापन लौट आता है, वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है।
बरसात का कहर थम तो गया है, पर उसका दर्द अब भी कई घरों के भीतर है। मूंही पंचायत का गांव इस पीड़ा का साक्षी है, जहां धर्मपाल सिंह और राज कुमार के मकान इस बरसात में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। इन्हीं हालात में कैप्टन संजय पराशर गांव पहुंचे। उन्होंने न कोई औपचारिकता निभाई और सीधे पीड़ित परिवारों के बीच बैठ गए।
उन्होंने धर्मपाल सिंह से कहा कि यह संकट का समय है, लेकिन आप अकेले नहीं हैं। गांव के ही राज कुमार से भी उन्होंने दुख साझा किया और साथ ही उन्होंने दोनों परिवारों को आर्थिक सहयोग भी दिया। स्थानीय वासी अश्वनी धीमान और सुखदेव सेठी और का कहना है कि कैप्टन पराशर का यह व्यवहार कोई नई बात नहीं है।
जब भी क्षेत्र में कोई संकट आया है, चाहे कोरोना महामारी हो या किसी परिवार को इलाज की जरूरत पड़ी हो, वह हमेशा सबसे पहले पहुंचते हैं। उनकी संवेदना दिखावे से परे है, उसमें अपनापन और आत्मीयता का भाव है। वे मदद करते हैं तो केवल मानवता के नाते, बिना किसी स्वार्थ या चर्चा की चाह के।
वहीं, अशुंल राणा, राज कुमार व रंजीत ने कहा कि आज जब विकास की दौड़ में संवेदनाएं अकसर पीछे छूट जाती हैं, तब संजय पराशर यह याद दिलाते हैं कि मदद का असली अर्थ है कि किसी के दुख में सहभागी बनना। उन्होंने साबित किया है कि सच्चा नेतृत्व वही है जो जनता के सुख-दुख में बराबर खड़ा हो।
सतपाल शर्मा और अनिल कुमार ने कहा कि जसवां-प्रागपुर की बरसाती चोटें शायद जल्द न भरें, लेकिन संजय पराशर इस क्षेत्र की आत्मा में एक नया विश्वास भर रहे हैं। टूटी दीवारों के बीच से अब भी उम्मीद की किरण झांक रही है क्योंकि जब तक ऐसे संवेदनशील दिल इस धरती पर हैं, तब तक कोई भी आपदा मानवता को नहीं हरा सकती।
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