माता लक्ष्मी के अंश हैं राधा और रुकमणी
फोटो कैप्शन :- 1 व 2 : श्रीकृष्ण व रुकमणी विवाह की झांकी। भागवत कथा सुनती श्रद्धालु। संवाद सह
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1 व 2 : श्रीकृष्ण व रुकमणी विवाह की झांकी।
भागवत कथा सुनती श्रद्धालु।
संवाद सहयोगी, ऊना : सलोह कुटिया में भागवत कथा में कथा वाचिका कृष्णा भारद्वाज ने शुक्रवार को छठे दिन श्रीकृष्ण व रूकमणी के विवाह का प्रसंग सुनाकर श्रद्धालुओं को विभोर कर दिया। उन्होंने कहा कि भागवत पुराण में वर्णन है कि देवी रूकमणी का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्री कृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थी। राधा जी के जन्म में और देवी रूकमणी के जन्म में एक अन्तर यह है कि देवी रूकमणी का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधा जी का शुक्ल पक्ष में। राधा जी को नारद जी के श्राप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रूकमणी से कृष्ण जी की शादी हुई। राधा और रूकमणी यूं तो दो हैं परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं। भगवान विष्णु ने नारद का काम पर विजय का अंहकार तोड़ा था और अपनी वानर काया उन्हें स्वयंवर के लिए दी थी। इससे दुखी नारद ने भगवान विष्णु को श्राप दिया था।
राधा जी को नारद मुनि का श्राप कैसे लगा यह प्रसंग भी कथावाचिका ने सुनाया। नारद जी के इस श्राप की वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्र जी को सीता का और कृष्णावतार में देवी राधा का वियोग सहना पड़ा था।
कथावाचिका ने कथा में आगे बताया कि विदर्भ के राजा भीष्मक की कन्या रूकमणी थी। रूकमणी के भाई थे रूक्म। रूक्म अपनी बहन की शादी शिशुपाल से करना चाहता था परंतु देवी रूकमणी अपने मन में श्री कृष्ण को पति मान चुकी थी। अत: देवी रूकमणी ने श्रीकृष्ण को एक पत्र लिखा। पत्र प्राप्त कर श्री कृष्ण विदर्भ पहुंचे और स्वयंवर के दिन रूकमणी को लेकर अपने साथ चल दिए। रूकमणी के हरण की बात जानकर शिशुपाल इससे रूकमणी की शादी होने वाली थी वह तथा उसका भाई रूक्म अपनी अपनी सेना लेकर कृष्ण को सजा देने के लिए आगे आए, लेकिन श्री कृष्ण ने सभी को पराजित कर दिया और रूकमणी सहित अपने राज्य को लौट आए जहां राक्षस विधि से कृष्ण और रूकमणी का विवाह संपन्न हुआ।
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