ब्लड शुगर को काबू में रखेगी मिल्की मशरूम, 30 से 35 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान में होती है खेती
खुंब अनुसंधान निदेशालय सोलन ने मिल्की मशरूम की नई प्रजाति खोजी है जो ब्लड शुगर को काबू करने में सहायक है। यह सफेद रंग की होती है और कड़वी नहीं है। किसानों के लिए भी यह फायदेमंद है क्योंकि इसका उत्पादन अन्य किस्मों से 10% अधिक होगा। यह मशरूम खाद्य और औषधीय दोनों रूपों में उपयोगी है प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।
मनमोहन वशिष्ठ, सोलन। ब्लड शुगर को काबू में रखना चाहते हैं तो मशरूम की नई प्रजाति खोज ली गई है। आपने अब तक कई प्रकार के मशरूम खाए होंगे... कभी आयस्टर, कभी वाइट बटन तो कभी शिटाके मशरूम। सब अच्छी हैं, लेकिन अब आई है मिल्की मशरूम।
नाम इसलिए दूधिया है क्योंकि यह वाइट बटन मशरूम से भी सफेद है। मशरूम कोई हो, उसमें 90 प्रतिशत पानी ही होता है। इस मशरूम की विशेषता यह है कि यह कड़वी नहीं है। मरीज तो मरीज, किसानों के लिए भी दावा है कि इसका उत्पादन परंपरागत किस्मों की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक होगा। यह सफल प्रयोग किया है, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सोलन स्थित खुंब अनुसंधान निदेशालय ने जिसे सब डीएमआर कहते हैं।
मिल्की मशरूम पर शोध विज्ञानियों को डीएमआर मिल्की 321 मिल्की मशरूम तक ले आया है। मिल्की मशरूम का उपयोग खाद्य और औषधीय दोनों ही रूप में होता है। इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। यह प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। इसमें फाइबर और बायोएक्टिव कंपाउंड्स ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में सहायक हो सकते हैं। दावा यह भी है कि इसके सेवन से व्यक्ति जवान रहेगा।
यह शाकाहारी लोगों के लिए प्लांट बेस्ड प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत है। मिल्की मशरूम विटामिन व प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत है। वहीं, कोलेस्ट्रोल, मधुमेह व पित्त के रोगों के लिए लाभकारी है। इसका सबसे ज्यादा उत्पादन दक्षिण भारत में होता है, लेकिन अन्य राज्यों में भी इसे उगाया जाता है। इसे एक महीने में तैयार किया जा सकता है।
डीएमआर के देशभर में स्थित 32 केंद्रों पर तीन वर्ष तक चले परीक्षण में विज्ञानियों ने यह सफलता पाई है। डीएमआर के विज्ञानियों ने इस किस्म के अलावा इस वर्ष मिल्की मशरूम की दूसरी नई किस्म डीएमआर मिल्की 299 भी विकसित की है, वह भी अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पैदावार देगी। मिल्की मशरूम की खेती भारत में 30-35 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान में होती है।
अन्य मशरूम की अपेक्षा मिल्की मशरूम सात से आठ दिन तक खराब नहीं होती। इसे तैयार करने में खाद की जरूरत नहीं पड़ती। भूसे में बीज डालकर तैयार किया जाता है। इसका अचार भी बनता है। डीएमआर संस्थान मांग के अनुसार इसका बीज 15 दिन में तैयार कर उत्पादकों को मुहैया करवा देता है।
मशरूम के विशेष बिंदु
मशरूम उत्पादन में भारत का स्थान विश्व में तीसरा है। चीन और जापान क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर हैं। भारत में जिस गति से मशरूम में काम रहा है, वह जापान को अगले दो वर्षों में पीछे छोड़ देगा।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के एग्रो इक्नामिक रिसर्च सेंटर में सीएस वैद्या, एमएल शर्मा और एनके शर्मा के 2000 के एक अध्ययन के अनुसार एक साधारण 100 ग्राम मशरूम में विटामिन सी सर्वाधिक 8.60 मिलीग्राम जबकि विटामिन बी 3 या नाइसिन 5.85 मिलीग्राम होता है।
नाइसिन ही भोजन को ऊर्जा में बदलता है। एशिया में मशरूम का आरंभ चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान से हुआ था। भारत में इसका आरंभ कोयंबटूर से माना जाता है।
सोलन में है देश का एकमात्र खुंब अनुसंधान निदेशालय
सोलन में खुंब अनुसंधान निदेशालय देश का एकमात्र निदेशालय है। 22 राज्यों में इसके 32 केंद्र हैं, जो डीएमआर के अंतर्गत विभिन्न मशरूम पर अनुसंधान करते हैं। कोयंबटूर, केरल, भुवनेश्वर, तिरुपति, जम्मू, लुधियाना, रायपुर, मेरठ, पंतनगर, मुरथल, पुणे सहित अन्य केंद्रों पर डीएमआर सोलन के अंतर्गत मशरूम की नई किस्म पर शोध चलता है।
मिल्की मशरूम की डीएमआर-321 किस्म पर शोध भी तीन वर्ष तक सभी केंद्रों पर किया। इसके बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) दिल्ली से जून में इस किस्म को रिलीज किया गया।
हमने मिल्की मशरूम की दो नई किस्में डीएमआर मिल्की 299 व डीएमआर मिल्की 321 विकसित की हैं। दोनों ही किस्में 10 प्रतिशत से अधिक उपज देंगी। मिल्की 321 खाने में भी कड़वाहट नहीं देगी। तीन साल तक चले शोध के बाद यह किस्म जारी की गई है। - डॉ. मनोज नाथ, विज्ञानी डीएमआर सोलन।
मिल्की मशरूम की डीएमआर-321 किस्म विकसित की है। यह स्वदेशी मशरूम है, जो भारत में ही पाई जाती है। अन्य मशरूमों से यह ज्यादा लाभकारी है। 30-35 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसे उगाया जाता है। बिना खाद के भूसे में ही इसे उगाया जाता है। - डॉ. वीपी शर्मा, निदेशक आईसीएआर-डीएमआर चंबाघाट (सोलन)
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