खुशवंत सिंह लिटफेस्ट: पूर्व रा प्रमुख दुलत ने बताया भारत-पाक संबंध में क्या है बाधा, जेन जी आंदोलन पर भी कही बड़ी बात
कसौली में खुशवंत सिंह लिटफेस्ट में पूर्व रा प्रमुख एएस दुलत ने भारत-पाक संबंधों पर बात की। उन्होंने राजनीति और सेना को संबंधों में बाधा बताया, लेकिन बातचीत की वकालत की। दुलत ने भारत में जेन जी आंदोलन की आशंका को खारिज किया। उन्होंने सीमा पर संवाद को महत्वपूर्ण बताया और वाजपेयी के संवाद प्रेम की सराहना की।

खुशवंत सिंह लिटफेस्ट में पहुंचे पूर्व रा प्रमुख एएस दुलत व र्काक्रम में मौजूद लोग। जागरण
मनमोहन वशिष्ठ, सोलन। हिमाचल प्रदेश के कसौली में शुक्रवार से 14वें तीन दिवसीय खुशवंत सिंह लिटफेस्ट का आगाज हो गया है। लिटफेस्ट में चर्चा के लिए पहुंचे पूर्व रा प्रमुख एएस दुलत ने कई मुद्दों पर बात की। उन्होंने जेन जी आंदोलन और भारत पाकिस्तान के संबंधों को लेकर पत्रकारों से बातचीत की।
क्या भारत में भी बांग्लादेश या नेपाल की तरह जेन जी आंदोलन हो सकता है, पूर्व रा प्रमुख एएस दुलत ने ऐसी किसी भी आशंका से इन्कार कर दिया है। दुलत ने पत्रकारों से कहा कि लद्दाख का घटनाक्रम बेशक चेतावनी है पर कुछ पड़ोसी देशों में जैसे आंदोलन हुए, वैसा भारत में नहीं हो सकता। शनिवार को प्रस्तावित सत्र में वह ज्योति मल्होत्रा के साथ 'स्पाई क्रानिकल्स' पर चर्चा करेंगे।
भारत-पाकिस्तान संबंधों में राजनीति और सेना बाधा
दुलत ने भारत-पाक संबंधों में राजनीति और सेना को बाधा बताते हुए, चुनौतियों के बावजूद, पाकिस्तान के साथ वार्ता की पैरवी की है। उनका कहना है कि भारत, पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलना चाहता तो न खेले, लेकिन जब खेल रहे हैं तो हाथ मिलाने से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।
पहलगाम के बाद ऑपरेशन सिंदूर हुआ, फिर भी दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला जारी रहना चाहिए। तनाव रहने से संबंध नहीं सुधर सकते। दुलत को लगता है कि जब भी सीमा पार से बातचीत हुई, आतंकी घटनाओं का खतरा कम रहा है।
सीमा पर बातचीत जारी रहनी चाहिए
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाक सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाने से दोनों देशों के बीच संवाद कैसे होगा? इस पर दुलत ने कहा कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख के रूप में जनरल मुशर्रफ ही कारगिल घुसपैठ के मास्टरमाइंड थे, लेकिन कारगिल युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जनरल मुशर्रफ को बतौर पाक राष्ट्रपति आगरा में बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। इसलिए सीमा पार बातचीत जारी रहनी चाहिए, भले ही इसमें चुनौतियां हों।
वह किसी को भी किसी पद पर बिठाएं या हम अपने यहां, लेकिन संवाद अहम है। उन्होंने कहा, वाजपेयी संवाद प्रेमी थे, जिस कारण उन्हें आज भी याद किया जाता है।
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