Himachal: कागजों में चेतावनी, खड्डों, नदियों व नालों के किनारे बना दिए हैं टूरिस्ट स्पाट, उद्योग व कालोनियां
Himachal Pradesh Disaster हिमाचल प्रदेश में नदी और नालों के किनारे निर्माण से तबाही का खतरा बढ़ गया है। मंडी कुल्लू शिमला समेत कई जिलों में बादल फटने से भारी नुकसान हुआ है। बद्दी बरोटीवाला नालागढ़ और परवाणू में नदियों के किनारे होटल उद्योग और कालोनियां बनाने से खतरा बढ़ गया है। पहाड़ों में नदियों के किनारे निर्माण पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ता है और आपदाओं को न्योता देता है।
सुनील शर्मा, सोलन। मंडी, कुल्लू, शिमला जिले समेत कई स्थानों पर बादल फटने से नदी, नालों और खड्डों के किनारे हुए निर्माण को काफी नुकसान पहुंचा है। जिले के औद्योगिक शहर बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ व परवाणू सहित कंडाघाट व सोलन जिला मुख्यालय में भी अनेक लोगों ने चंद पैसे कमाने के लिए नदियों, खड्डों और नालों के किनारे होटल, उद्योग, कालोनियां और हट्स बनाकर लोगों की जान को खतरे में डाल दिया है।
जिले में ऐसे अनेक स्थल हैं जहां पानी कभी भी कहर बरपा सकता है। शिमला से निकल कर सोलन और निचले इलाकों की ओर बहने वाली अश्वनी खड्ड, कंडाघाट-चायल मार्ग के साधुपुल क्षेत्र में बड़ी संख्या में होटल व हट्स बनाए हैं। यहां पर्यटक अकसर नदी के बीच बैठकर तस्वीरें खिंचवाने और पिकनिक मनाने के लिए पहुंच जाते हैं।
हिमाचल सहित उत्तराखंड के धराली और जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में बादल फटने से तबाही हुई है, जिससे लोगों को सबक लेने की आवश्यकता है। बद्दी व परवाणू में औद्योगिकीकरण के बाद लोगों ने किराये की आमदनी के लिए जगह-जगह नालों, खड्डों व पहाड़ियों पर निर्माण कर दिए हैं। नालों व नदियों के बीच तक निर्माण कर लिया है। कंडाघाट क्षेत्र में होटल और हट्स के अलावा एक उद्योग भी स्थापित किया गया है।
पर्यटन विभाग ने पुल के पास ही एक वाटर पार्क विकसित किया है, जिसे बरसात एक बार अपने रौद्र रूप का अहसास करवा चुकी है। बरसात में यह पार्क बह गया था, लेकिन फिर से इसे शुरू करवा दिया। स्थानीय लोगों के अनुसार हर बरसात में यहां का पानी होटल व हट्स को नुकसान पहुंचाता है, लेकिन कारोबारी हर बार मरम्मत कर लेते हैं।
लोगों का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्रों में नदियों और खड्डों के किनारे पक्का निर्माण न केवल पर्यावरणीय संतुलन बिगाड़ता है, बल्कि बरसात में बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं को भी न्योता देता है। यही हालात जिले के अन्य स्थानों के भी हैं। पहाड़ों में अकसर वर्षा होने के बाद निचले क्षेत्र बद्दी, बरोटीवाला व नालागढ़ की नदियां अचानक उफान पर आ जाती हैं। ऐसे में नदियों के किनारों पर बने उद्योग, कालोनियां व लोगों के घर कभी भी चपेट में आ सकते हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ व अधिकारी
कंडाघाट की अश्वनी नदी दो पंचायत क्षेत्रों में आती है। हमारी पंचायत के तहत कुछ हट्स बने हैं, जिनके मालिकों को कई बार सुरक्षा के प्रति सतर्क रहने को कहा है। हालांकि बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य सुकोड़ी पंचायत क्षेत्र में हो रहा है।
- चित्रलेखा, पंचायत प्रधान तुंदल (कंडाघाट)
पंचायत ने कई बार इन लोगों को चेतावनी दी है, लेकिन ये लोग निजी भूमि का हवाला देकर निर्माण जारी रखते हैं। निर्माण लगातार बढ़ रहा है और खतरा भी। लोगों को पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखकर निर्माण करना चाहिए।
- सुरेश कुमार, पंचायत प्रधान सुकोड़ी।
लोग निजी भूमि में निर्माण कर रहे हैं। बरसात में हर साल प्रशासन चेतावनी बोर्ड लगाता है कि लोग नदी से दूर रहें। नदी किनारे नए निर्माण को लेकर जल्द अधिकारियों के साथ चर्चा कर लोगों को नदी से दूरी बनाए रखने की सलाह देंगे। बरसात में नदी के बीच गतिविधियों पर रोक है।
- गोपाल चंद शर्मा, एसडीएम कंडाघाट।
नदियों के किनारे निर्माण को लेकर अलग-अलग नियम निर्धारित हैं। निर्माण के आकार व नदी के आकार के मुताबिक 10 से 50 मीटर तक की दूरी निर्धारित की गई है। इस दूरी के तहत निजी भूमि पर भी निर्माण को लेकर मनाही है। इसके बावजूद कोई निर्माण करता है तो उन्हें नोटिस देकर आगाह किया जाता है और फिर कार्रवाई का प्रविधान भी है।
- गणेश लाल, टाउन कंट्री प्लानर बद्दी, बीबीएनडीए।
नदियों के किनारे भवन निर्माण को लेकर नियम निर्धारित हैं। पांच से 25 मीटर तक निर्माण के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेना अनिवार्य है। ऐसा न करने पर निर्माणाधीन भवन मालिक पर कार्रवाई की जा सकती है। इसके लिए जल शक्ति विभाग भी एनओसी जारी करता है।
- रमेश भारद्वाज, टाउन कंट्री प्लानर सोलन।
ये हैं खड्डों व नालों किनारे भवन बनाने के नियम
खड्डों, नालों व नदियों के किनारे भवन निर्माण को लेकर अलग-अलग नियम हैं। अभी तक भवन निर्माण के लिए नाले से दूरी पांच, खड्ड से सात व नदी से 25 मीटर निर्धारित है। नदियों के निकट निर्माण के लिए जल शक्ति विभाग से एनओसी लेनी आवश्यक है। इसके बाद भवन का नक्शा नगर एवं नियोजन विभाग के पास पहुंचता है। जल शक्ति विभाग नदी के अंतिम छोर देखने के बाद तय दूरी को नापता है और उसके बाद एनओसी जारी करता है। यदि किसी की भूमि होगी तो उन्हें इन नियमों का पालन करना होगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।