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    शिरगुल देवता मंदिर के प्राचीन मंदिर में चढ़ा सिर्फ दो लाख रुपये चढ़ावा, यह रहा कारण

    By Jagran NewsEdited By: Virender Kumar
    Updated: Sun, 13 Nov 2022 10:05 PM (IST)

    Shirgul Devta Temple दिवाली पर्व के उपरांत रविवार को शिरगुल देवता के प्राचीन मंदिर शाया में रखे गए दान पात्र को खोला गया जिसमें दो लाख की राशि चढ़ावे के रूप में प्राप्त हुई। मंदिर की आय की गणना हर माह की जाती है ।

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    शिरगुल देवता के प्राचीन मंदिर में चढ़ावे की गणना करते गणकदल।

    राजगढ़, संवाद सूत्र। Shirgul Devta Temple, दिवाली पर्व के उपरांत रविवार को शिरगुल देवता के प्राचीन मंदिर शाया में रखे गए दान पात्र को खोला गया जिसमें दो लाख की राशि चढ़ावे के रूप में प्राप्त हुई। शिरगुल देवता मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी शेरजंग चौहान ने बताया कि मंदिर की आय की गणना हर माह की जाती है तथा इस बार दिवाली पर्व होने के कारण मंदिर में बीते वर्ष की अपेक्षा कम चढ़ावा प्राप्त हुआ है । इसमें प्रमुख कारण पड़वा अर्थात अमावस्या को ग्रहण लगना बताया गया है।

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    दिवाली पर्व पर 15 हजार ने टेका था माथा

    उन्होंने बताया कि मंदिर में एकत्रित राशि बैंक में जमा की जाती है जिसका उपयोग मंदिर के निर्माण व अन्य विकास कार्यों के लिए किया जाता है। मंदिर की शिवस्वी समिति के अध्यक्ष अमर सिंह की अध्यक्षता में गणना का कार्य आरंभ किया गया  जिसमें उपाध्यक्ष मुकेश, कोषाध्यक्ष संजीव, सचिव अनिल कुमार, सदस्य प्रताप सिंह के अतिरिक्त पुजारी पुनीत कुमार शामिल हुए थे । दिवाली के पर्व पर मंदिर में आयोजित दो दिवसीय मेले के दौरान करीब 15 हजार श्रद्धालुओं द्वारा शिरगुल देवता का आशीर्वाद प्राप्त किया जिसमें दिवाली और भैयादूज को मंदिर खुला रहा। गोवर्धन पूजा अर्थात पड़ेई को ग्रहण के कारण बंद रहा। इस मौके पर करीब सात क्विंटल चावल और डेढ़ क्विंटल अखरोट श्रद्धालुओं द्वारा शिरगुल देवता को भेंट किए गए।

    चावल व अखरोट भेंट करने की परंपरा

    शेरजंग चैहान ने बताया कि शिरगुल देवता की जन्मस्थली शाया  और तपस्थली चूड़धार मानी जाती है। इन दोनों मंदिरों में वर्ष में पड़ने वाले चार बड़े साजे अर्थात दिवाली, बैशाखी, हरियाली और मकर संक्रांति को देवता के दर्शन करने का विशेष महत्व होता है । वर्ष में पड़ने वाले चार साजे के अतिरिक्त हर माह को पड़ने वाली संक्रांति को समिति द्वारा श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का आयोजन भी किया जाता है । क्षेत्र में आराध्य देव शिरगुल को चावल और अखरोट की भेंट अर्पित करने की परंपरा सदियों पुरानी है। अब लोगों द्वारा पैसा चढ़ाना भी शुरू कर दिया है । शिरगुल देवता का इस गांव में प्रादुर्भाव हुआ था। इस कारण इस मंदिर में अब बाहरी क्षेत्रों से लोगों और पर्यटकों का दर्शन करने के लिए आना भी प्रारंभ हो गया है । शिरगुल देवता की शिमला, सिरमौर और सोलन के नौ क्षेत्रों में अपने कुलदेवता के रूप में पूजा की जाती है जिसे स्थानीय भाषा में नोतबीन कहा जाता है ।

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