जानिये डॉक्टर क्यों देते हैं कीवी खाने की सलाह, कौन से रोगों में है फायदेमंद
भारती आम व नारियल की खेती के लिए मशहूर है ये तो सब जानते हैं लेकिन अब हिमाचल में विदेशी फल कीवी की भी खेती की जा रही है।
नाहन, राजन पुंडीर। फलों की बात की जाए तो आम व नारियल की खेती के लिए भारत मशहूर है। लेकिन अब हिमाचल में भी विदेशी फल इतना पसंद आ रहा है कि बागवान अब किवी की खेती की तरफ मुड़ गए हैं। पहले न्यूजीलैड व इटली किवी के लिए मशहूर होते थे। आजकल दोनों देशों की किवी को पछाड़कर हिमाचली किवी ने देशभर में विशेष पहचान बना ली है। किवी के पौधे को हिमाचल की जलवायु रास आ गई है।
भारत में हिमाचल के अतिरिक्त किवी का उत्पादन जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों, सिक्किम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक व केरल में भी होता है। हिमाचल में किसानों व बागवानों ने आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए किवी को नए नकदी फल के रूप में विकसित करने के विकल्प को चुना है। सिरमौर, कुल्लू, सोलन, मंडी व शिमला जिले के मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में किवी की खेती के लिए उपयुक्त है। हिमाचल में किवी की हेवर्ड, एबॉट, एलीसन, मोंटी, टुमयूरी और ब्रुनो नाम की किस्में उगाई जा रही हैं। बाजार में हेवर्ड किस्म की सबसे ज्यादा मांग रहती है।
बडे़ शहरों में हिमाचली किवी का मूल्य 100 रुपये से लेकर 350 रुपये प्रतिकिलो मिल रहा है। प्रदेश में 15 सितंबर से 15 नवंबर तक किवी का तुड़ान किया जाता है। सिरमौर के नारग, राजगढ़ व मानगढ़ के बागवान
किवी का तुड़ान कर दिल्ली, लुधिायाना व महाराष्ट्र की मंडियों में भेज रहे हैं।
देश में क्यों बढ़ रही किवी की मांग
पांच साल से देश के महानगरों व बड़े शहरों में किवी की मांग बढ़ रही है। किवी के कई औषधीय फायदे हैं। डेंगू, स्क्रब टायफस, हृदय रोगियों को डॉक्टर किवी खाने की सलाह देते हैं। किवी में भारी मात्रा में विटामिन सी होती है। किवी के सेवन से पाचन, गर्भावस्था में महिलाओं को रोगों से लड़ने में ऊर्जा मिलती है।
उच्च किस्म के नहीं मिल रहे पौधे
किसानों व बागवानों का कहना है कि डॉ. वाईएस परमार वानिकी एवं बागवानी यूनिवर्सिटी नौणी तीन साल से किवी के पौधों की मांग को पूरा नहीं कर पाई है। सिरमौर जिले की थलेड़ी की बैड के किवी के मुख्य
बागवान रिंकू पंवार ने बताया कि सेब के पौधे तो आसानी से मिल रहे हैं, मगर किवी के पौधे मांग के बावजूद नहीं मिल रहे हैं।
कैसे तैयार होता है किवी का बगीचा
हिमाचल में किवी का पौधा जनवरी फरवरी के महीने में लगाया जाता है। पौधा पांच साल में फल देना शुरू कर देता है। मई माह में किवी के पोलीनेशन का कार्य किया जाता है। किवी में पोलीनेशन का मुख्य काम होता है, इसमें मेल व फीमेल फूल को टच कराकर फल तैयार किया जाता है। बागवानों द्वारा मेल व फीमेल किस्म के पौधे अलग-अलग खेतों में लगाए जाते हैं। पोलीनेशन के बाद जुलाई-अगस्त में किवी का फल तैयार होता है।
2003 में शुरू हुआ था उत्पादन
हिमाचल में 2003 में किसानों ने ट्रायल के तौर पर किवी का उत्पादन शुरू किया था। उस समय फल एवं सब्जी मंडियों का कोई खरीदार नहीं था। अब 15 साल के बाद हिमाचली किवी की मांग दिल्ली, पंजाब, मुंबई, चेन्नई सहित कई दक्षिण राज्यों में है।