आखिर क्यों फटते हैं बादल, जिसके कारण कठुआ में 7 लोगों की हुई मौत, जानिए इसके पीछे का साइंस
हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि हो रही है जिसका मुख्य कारण भौगोलिक परिस्थिति और जलवायु परिवर्तन है। इस साल अब तक 36 बादल फटने की घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें 35 लोगों की जान गई है और 2173 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। मंडी कुल्लू चंबा शिमला और किन्नौर जिलों में बादल फटने की घटनाएं अधिक होती हैं।

यादवेन्द्र शर्मा, शिमला। हिमाचल प्रदेश में बरसात के मौसम में भौगोलिक परिस्थिति और जलवायु परिवर्तन के कारण बादल फटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। ऊंचे पहाड़ बादलों की राह में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं, जबकि गर्म हवाओं का प्रभाव इन घटनाओं को और बढ़ा रहा है।
हर वर्ष 40 से 50 बादल फटने की घटनाएं होती हैं, जो जान-माल को भारी नुकसान पहुंचाती हैं। इसी संदर्भ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर बहु-क्षेत्रीय केंद्रीय टीम ने जांच की थी। प्रदेश में इस वर्ष अब तक बादल फटने की 36 घटनाएं हुई हैं। अचानक बाढ़ की 74 घटनाएं और भूस्खलन की 66 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें 35 लोगों की जान चली गई है।
मंडी, कुल्लू, चंबा, शिमला और किन्नौर में बादल फटने की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं, जबकि जनजातीय जिले लाहुल स्पीति में भी ऐसी घटनाएं पहली बार देखी गई हैं। हिमाचल में हर साल मानसून के दौरान नमी से भरे बादल उत्तर की ओर बढ़ते हैं, जिससे हिमालय पर्वत एक बड़ा अवरोधक बन जाता है।
जब गर्म हवा का झोंका इन बादलों से टकराता है, तो बादल फटने की संभावना बढ़ जाती है। इस प्रक्रिया से होने वाली वर्षा की दर लगभग 100 मिलीमीटर प्रति घंटा होती है।
क्यों फटते हैं बादल
जम्मू-कश्मीर के कठुआ में बादल फटने से अब तक 7 लोगों की मौत हो गई है। आखिर बादल क्यों फटते हैं आइए जानते हैं। मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, जब बादल भारी मात्रा में आर्द्रता लेकर आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं।
इस स्थिति में संघनन तेजी से होता है, जिससे एक सीमित क्षेत्र में लाखों लीटर पानी एक साथ गिरता है, जिसके परिणामस्वरूप तेज बहाव वाली बाढ़ आती है। इस बाढ़ के कारण क्षेत्र में आने वाली हर वस्तु क्षतिग्रस्त हो जाती है।
अभी तक 2173 करोड़ रुपये का नुकसान
इस वर्ष 20 जून से अब तक प्रदेश में 2173 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। बादल फटने, भूस्खलन और अन्य कारणों से 136 लोगों की जान जा चुकी है। प्रदेश में 581 मकान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, जबकि 1875 मकानों, 361 दुकानों, 2201 गौशालाओं को नुकसान हुआ।
1970 में हुई थी पहली घटना दर्ज
हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, जो जान-माल के लिए गंभीर खतरा बन चुकी हैं। पहली बार 1970 में मंडी जिले के बरोट में वैज्ञानिक रूप से बादल फटने की घटना दर्ज की। 15 अगस्त, 1997 को शिमला जिले के चिड़गांव में बादल फटने से 1500 लोग प्रभावित हुए थे।
बादलों की श्रेणी
बादलों की विभिन्न श्रेणियां उनकी आकृति और ऊंचाई पर आधारित होती हैं। इनमें कपासी (क्युमुलस), गरजने वाले काले (क्यूमलोनिंबस), निचाई वाले बादल (लगभग 2.5 किलोमीटर ऊंचाई), मध्य ऊंचाई वाले बादल (2.5 से चार किलोमीटर) और उच्च मेध (चार किलोमीटर से अधिक) शामिल हैं।
वर्तमान में, प्रदेश में बादल फटने की 36 घटनाएं हो चुकी हैं, जो भारी नुकसान का कारण बन रही हैं। जब बादलों को रास्ता नहीं मिलता या वे आपस में टकराते हैं, तब मूसलधार वर्षा होती है, जिससे नालों में बाढ़ आ जाती है और व्यापक नुकसान होता है। -डीसी राणा, विशेष सचिव आपदा प्रबंधन।
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