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    सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हिमाचल प्रदेश में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों का कानून रद्द

    Updated: Tue, 14 Oct 2025 07:41 PM (IST)

    उच्चतम न्यायालय ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने वाले कानून को रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश भू राजस्व अधिनियम की धारा 163A को रद्द करने के उच्च न्यायालय के फैसले पर यह आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे पंचायत द्वारा कानूनी रूप से जमीन पट्टे पर दी गई है।

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    सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों का कानून रद्द किया (प्रतीकात्मक फोटो)

    विधि संवाददाता, शिमला। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने से जुड़े कानून को रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं।

    न्यायाधीश विक्रम नाथ व संदीप मेहता की पीठ ने त्रिलोचन सिंह v स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश व अन्य में हिमाचल प्रदेश के हाइकोर्ट के फैसले में यथास्थिति बनाए रखने के आदेश जारी किए। हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश भू राजस्व अधिनियम की धारा 163A को मनमाना और असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया था ।

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    इसलिए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को यह आदेश दिया गया था कि सरकारी जमीन पर जो अतिक्रमणकारियों ने अवैध कब्जे किए हैं उन्हें 28/02/2026 से पहले हटाया जाए। याचिकाकर्ता (धर्मशाला निवासी) की ओर से अधिवक्ता डॉ विनोद शर्मा व गौरव कुमार और प्रतिवादी की और से अधिवक्ता जॉर्ज थॉमस कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत हुए।

    मामले के अनुसार भू राजस्व अधिनियम में 29/05/2000 को धारा 163A जोड़ी गई थी ताकि वन टाइम सेटलमेंट के तहत सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित किया जा सके। इस कानून के तहत एक नोटिफिकेशन जारी कर प्रभावितों से आवेदन पत्र शपथपत्र के माध्यम से मांगे गए थे।

    आवेदन की कट ऑफ डेट 15/08/2002 रखी गई थी और याचिकाकर्ता ने कट ऑफ डेट से पहले यानी 08/08/2002 को ही आवेदन कर दिया था। इस तरह से 1,67,339 आवेदन सरकार ने प्राप्त किए थे जिसमें इन अवैध अतिक्रमणकारियों ने 24,198 हेक्टेयर ज़मीन पर कब्जा किया हुआ था। उसमें से एक याचिका कर्ता भी था।

    याचिकाकर्ता का यह कहना था कि वह एक अतिक्रमणकारी नहीं हैं और उन्हें यह जमीन गांव पंचायत द्वारा कानूनी तरीके से पट्टे पर दी गई है और जिस छोटे से जमीन के टुकड़े पर वह सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए घर बनाकर पिछले पांच दशकों से रह रहे हैं और खेती बाड़ी कर रहे है किन्तु उन्हें अपना पक्ष तक रखने का मौका नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकारते हुए आगे की कार्यवाही के लिए यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए।