हिमाचल में सुक्खू की मजबूत सरकार में मंत्रियों ने क्यों बनाया दबाव, क्या है राजनीतिक औचित्य?
हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की मजबूत सरकार के बावजूद मंत्रियों द्वारा दबाव की राजनीति करने का क्या औचित्य है? उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री और विक्रमादित्य सिंह के संकेतों से असंतोष झलकता है जबकि सरकार बहुमत में है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी पर नियंत्रण पाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है खासकर आर्थिक चुनौतियों से निपटने के मुख्यमंत्री के प्रयासों के बीच।

प्रकाश भारद्वाज, शिमला। देश के तीन राज्यों में से एक हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है। मजबूत जनसमर्थन और जनाधार होने के बावजूद मंत्री धूल भरा बवंडर खड़ा करने का प्रयास करते आ रहे हैं। असंतोष की तस्वीर दिखाने के लिए उप-मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री और लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने गूढ़ सियासी शब्दों का सहारा लिया।
लेकिन दोनों ये भूल गए कि सरकार चालीस विधायकों के प्रचंड बहुमत के साथ सत्तासीन है। अब सरकार में बैठे मंत्री चाहे राजनीति आकाश पर कुछ भी लिखने का प्रयास कर लें, असंतोष की अग्नि सुलगना संभव नहीं है। पूरे घटनाक्रम को अधर में लटकी कांग्रेस कार्यकारिणी के संबंध में देखना जरूरी है। दबाव की तीव्रता इतनी बढ़ाने के पीछे लक्ष्य प्रदेश कार्यकारिणी में कब्जा स्थापित करना है।
राजनीतिक पटल से अलग हटकर ये भी देखना होगा कि वित्तीय चक्रव्यूह में घिरे प्रदेश को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वो प्रयोग करने का साहस जुटाया, जिन्हें वीरभद्र सिंह जैसे धाकड़ नेता भी नहीं कर पाए थे। सुक्खू ने हिमाचल हितों की बात करके साधारण आमजन के दिलों में गहरी छाप छोड़ने का प्रयास किया है।
मुकेश अग्निहोत्री को सीएम न बनने की टीस?
ये कटु सत्य है कि मुकेश अग्निहोत्री के दिल में मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की टीस रहेगी और ये स्वभाविक भी है। लेकिन उसके बावजूद उनकी पसंद के या फिर चहेते विधायकों भवानी सिंह पठानिया, विनय कुमार को मुकेश अग्निहोत्री की इच्छानुसार पद दिया गया।
कानूनी प्रक्रिया के तहत मुख्य संसदीय पद से आशीष बुटेल को हटना पड़ा था, ये भी मुकेश के करीबी हैं। इससे बढ़कर राज्य अभूतपूर्व आर्थिक संकट से दो-चार हो रहा है मगर हरोली विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक विकास आंखों को दिख रहा है।
जबकि, अन्य 67 विधानसभा क्षेत्र विकास की दौड़ में हरोली से पीछे हैं। ऐसे में साजिशों का दौर कम दबाव की राजनीति का अधिक लगता है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉ. आस्था जोकि मुकेश की बेटी है ने हारमोनियम थामकर शिव कैलाशो के वासी धौलीधरों के राजा शंकर संकट हरना, भजन गाकर राजनीतिज्ञ पिता के सुर में सुर मिलाया है।
प्रदेश की सत्ता में होली लाज का रूतबा विक्रमादित्य सिंह के कैबिनेट मंत्री से सुशोभित है। इससे आगे प्रतिभा सिंह प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर विराजमान हैं।
यदि नंद लाल, मोहन लाल ब्राक्टा और यशवंत छाजटा का नाम भी होली लाज की छत्रछाया के साथ जोड़ लिया जाए तो गलत नहीं होगा। ये भी सत्य का प्रमाण है कि वीरभद्र सिंह का स्कूल आफ थाट जिंदा है और इंटरनेट मीडिया पर एक पोस्ट का तीन हजार तक चले जाना कांग्रेस के लिए सुखद भी है।
राज्यसभा चुनाव में वीरभद्र स्कूल ऑफ थॉट के तीन कांग्रेस विधायकों सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा व इंद्रदत्त लखनपाल का जाना होली लाज के लिए भी दीर्घकालीन सबक था। इस पृष्ठभूमि में विक्रमादित्य सिंह पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े हुए थे।
स्वयं मुख्यमंत्री सुक्खू भी भीतर चल रहे राजनीतिक ज्वालामुखी को विस्फोट से पहले भांप नहीं पाए थे। उसके बाद उप-चुनाव की अग्नि परीक्षा में जीतकर सुखविंदर सिंह सुक्खू सभी तरह के खतरों से बाहर निकलने में सफल हुए। अंतत: प्रश्न ये है कि बहुमत वाली सरकार के मुखिया पर मुकेा अग्निहोत्री व विक्रमादित्य सिंह अप्रत्यक्ष तौर पर निशाना साधकर किस तरह के हित साधना चाहता हैं।
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