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    प्रशासन व पाठयक्रम में संस्कृत को अधीमान मिलेगा

    संस्कृत भाषा के गौरवपूर्ण साहित्य तथा जीवन में उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार द्वारा संस्कृत भाषा को प्रदेश में द्वितीय राजभाषा के तौर पर स्वीकृत किया है जिससे प्रशासन और पाठ्यक्रम में संस्कृत को और अधिक अधिमान मिलेगा।

    By JagranEdited By: Updated: Fri, 14 Jun 2019 07:43 PM (IST)
    प्रशासन व पाठयक्रम में संस्कृत को अधीमान मिलेगा

    संवाद सूत्र, शिमला : संस्कृत भाषा के गौरवपूर्ण साहित्य तथा जीवन में उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने संस्कृत भाषा को प्रदेश में द्वितीय राजभाषा के तौर पर स्वीकृत किया है। इससे प्रशासन और पाठ्यक्रम में संस्कृत को और अधिक अधिमान मिलेगा। हिमाचल कला, संस्कृत भाषा अकादमी द्वारा गेयटी थियेटर में आयोजित संस्कृत सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए शिक्षा, विधि एवं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश भारद्वाज ने यह बातें कहीं।

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    उन्होंने कहा कि प्रदेश में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना सरकार का नीति दस्तावेज है, जिसे अमलीजामा पहनाने के लिए गंभीरता से विचार किया जा रहा है। संस्कृत भाषा को प्रदेश में वास्तविक रूप में द्वितीय भाषा का दर्जा प्रदान करने के लिए सरकार के साथ भाषा से जुड़ी संस्थाएं व लोगों को आगे आना होगा। शिक्षा विभाग संस्कृत भाषा के प्रति विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न माध्यमों से प्रेरित करेगा। विद्यालयों व महाविद्यालयों में संस्कृत विषय को लागू करने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। जरूरत के अनुरूप अनुवादकों व शिक्षकों की नियुक्ति पर विचार किया जा रहा है।

    पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित होकर संस्कृत को भारतीय सभ्यता, इतिहास, संस्कृति और जनजीवन का जीवंत दस्तावेज बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा के रूप में स्वीकार होनी अनिवार्य है, जिसका अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। योग की स्वीकार्यता से संस्कृत को संपूर्ण विश्व में मान्यता मिली है। संस्कृत भारती के क्षेत्रीय संगठन मंत्री जय प्रकाश गौतम ने संस्कृत को विश्व की प्राचीनतम भाषा होने के साथ व्यवहारिक, वैज्ञानिक और कंप्यूटर के लिए सबसे अधिक उपयोगी भाषा बताया। उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य में ज्ञान-विज्ञान, कर्म और उपासना आदि सभी विषयों का समावेश है। विश्व के प्रमुख देश आज संस्कृत भाषा का अध्ययन कर इसे विश्वविद्यालय व स्कूलों के पाठ्यक्रमों में शामिल कर रहे हैं, जो भारत के लिए गौरव की बात है।

    भाषा एवं संस्कृति विभाग की सचिव, डॉ. पूर्णिमा चौहान ने प्रदेश में विलुप्त हो रही बोलियों के लिए विभाग के प्रयासों का उल्लेख किया। कहा कि पारंपरिक लोक कलाओं के संरक्षण तथा कलाकृतियों के विक्रय और कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए प्रदेश के विभिन्न भागों में शिल्प व कला मेलों का आयोजन किया जा रहा है। संस्कृत का प्रचार-प्रसार होने से हिमाचल की स्थानीय बोलियों का संरक्षण हो सकेगा।

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