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    Polyandry Marriage: जहां पड़े पांडवों के कदम वहां बहुपति परंपरा, हिमाचल के पहले CM भी रहे इस प्रथा के पक्षधर, किया था शोध

    Updated: Sun, 20 Jul 2025 05:59 PM (IST)

    Polyandry Marriage Sirmaur हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में दो भाइयों ने एक लड़की से शादी करके बहुपति प्रथा की अनूठी परंपरा निभाई। प्रदीप नेगी और कपिल नेगी ने सुनीता चौहान के साथ आपसी सहमति से विवाह किया। यह प्रथा भूमि के बंटवारे को रोकने और संयुक्त परिवार को बनाए रखने के लिए प्रचलित है।

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    दो भाइयों से शादी करने वाली दुल्हन व दायें हिमाचल के पहले सीएम डा. वाईएस परमार।

    राज्य ब्यूरो, शिमला। Polyandry Marriage Sirmaur, देवभूमि के जिन स्थानों पर पांडवों के कदम पड़े, यहां के मानस के उनका अनुसरण किया। उसी का प्रमाण है प्रदेश के जिला सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के लोग सदियों पुरानी बहुपति व बहुपत्नी परंपराओं को साथ लेकर चल रहे हैं। साथ ही हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार भी बहुपति प्रथा के पक्षधर रहे हैं, उन्होंने इस परंपरा पर शोध किया था। शिलाई गांव के प्रदीप नेगी और कपिल नेगी ने पीढ़ियों से चली आ रही बहुपति विवाद की परंपरा को निभाया है। दोनों भाइयों ने शिलाई के साथ लगते कुन्हाट गांव की सुनीता चौहान से एक मंडप में विवाह किया।

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    अभी तक चोरी छिपे बहुपति विवाह होते थे, मगर प्रदीप व कपिल ने हजारों मेहमानों की मौजूदगी में धूम-धड़ाके के साथ विवाह किया। 11 जुलाई को विवाह की रस्में शुरू हुईं। तीन दिनों तक विवाह चलता रहा और 12 जुलाई को दोनों भाई रिश्ते-नातेदारों के साथ बरात लेकर कुन्हाट गांव पहुंचे और शाम को दुल्हन लेकर घर लौटे। रिश्तेदारों के जरिये सुनीता ने दोनों भाइयों से बात की।

    विवाह बंधन में बंधे बड़े भाई प्रदीप नेगी ने बताया कि हम दोनों भाइयों के साथ दुल्हन ने बिना किसी दबाव के आपसी सहमति से विवाह किया है। प्रदीप नेगी ने बताया कि मैं जल शक्ति विभाग में नौकरी करता हूं और मेरा छोटा भाई कपिल विदेश में नौकरी करता है।

    गिरीपार क्षेत्र में बहुपति प्रथा

    बहुपति प्रथा देशभर की अनेक जनजातियों जैसे किन्नौर जिला के ''किन्नौरा'' उत्तराखंड के जोंसार बावर के ''जोंसारा'' और गिरीपार क्षेत्र के ''हाटी'' जनजाति में आज भी कमोबेश देखी जा सकती है। हाटी समुदाय में आदि काल से ये प्रथा इसलिए प्रचलित हुई थी कि लोगों के पास खेती की जमीन बहुत कम होती थी और भाइयों में उस जमीन का बंटवारा होने से बच सके। दूसरा संयुक्त परिवारों के रहते कृषि कार्य, पशुपालन और सामाजिक जिम्मेदारियों को आसानी से निभाया जा सकता था।

    इन क्षेत्रों में हुआ पांडवों का अज्ञात वास

    इस प्रथा के प्रचलन में महाभारत कालीन पांडव संस्कृति को मुख्य स्रोत के रूप में माना जाता है। पांडवों का अज्ञात वास सिरमौर जिला का गिरीपार क्षेत्र, उत्तराखंड का जोंसार बावर और शिमला जिला के जुब्बल क्षेत्र में भी रहा है, जिसके अनेक प्रमाण आज भी उपलब्ध हैं। हाटी और जोंसारा जनजाति के प्रमुख आराध्य देव जोंसार बावर के हनोल में स्थित महासू देवता के मन्दिर की मूल स्थापना पांडवों द्वारा ही मानी जाती है।

    पांडव व कौरव वंशज मानते हैं लोग खुद को

    इन क्षेत्रों के मूल निवासी शाटी और पाशी अपने को कौरव और पांडव वंशज मानते हैं। बिशू मेला में दोनों खूंदों के बीच धनुष बाण से खेला जाने वाला ढोड़ा खेल व नृत्य आज भी प्रचलित है। आज बहुपति प्रथा अनिवार्य नहीं है, लेकिन पत्नी और दो भाइयों की आपसी सहमति और इच्छा पर निर्भर है।

    परमार ने बहुपति-बहुपत्नी प्रथा को बताया था संस्कृति का हिस्सा 

    हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में स्थापित डा. वाईएस परमार पीठ के अध्यक्ष रहे सेवानिवृत प्रो. ओपी शर्मा का इस विषय पर कहना है कि हिमाचल निर्माता डा. वाईएस परमार ने बहुपति व बहुपत्नी प्रथा के संबंध में पीएचडी की थी और उनका शोध इसी पर केंद्रित था। परमार द्वारा लिखी किताब पालीएंडरी (Polyandry) इन दि हिमालयाज में स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि ये व्यवस्था हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र से जुड़ी परंपरा है। ऐसा नहीं है कि केवल सिरमौर जिला से ही जुड़ी है। पूरे हिमालयी क्षेत्र में जिसमें नेपाल, कुमारचंल, केदारखंड, जालंधर खंड व कश्मीर खंड के कई हिस्सों में ये परंपरा का हिस्सा थी। इसके पीछे स्पष्ट कारण डा. परमार देते हैं कि हमारी भूमि जोत विभाजित न हो। यह भी लिखते हैं कि समय के साथ-साथ बहुपति व बहुपत्नी प्रथा समाज के अन्य वर्गों से समाप्त होते हुए खस जाति तक सिमट कर रह गई है।

    यह भी पढ़ें- एक लड़की ने दो सगे भाइयों से की शादी, हिमाचल का सिरमौर ही नहीं, ये तीन क्षेत्र भी निभा रहे सदियों पुरानी परंपरा

    सिरमौर सहित इन जिलों में भी रही है परंपरा

    सिरमौर जिला के अधिकांश हिस्से के अतिरिक्त चौपाल, रोहडू, जुब्बल और मंडी जिला के कुछ हिस्से के साथ-साथ कुल्लू के आऊट सराज यानि आनी में भी इसका प्रचलन दिखता है। एक जगह डा. परमार यह भी उल्लेख करते हैं कि बहुपति और बहुपत्नी प्रथा की आड़ में किसी भी महिला का शोषण नहीं किया जा सकता है।

    हमारे कोटी गांव में 15 से 20 परिवार इस जोड़ीदार परंपरा को निभा रहे हैं। हमें ये प्रथा विरासत में मिली है और इस परंपरा से परिवार में एकता बनी रहती है, जो खेतीबाड़ी करता है, पत्नी उसके साथ रहती थी। पशुपालन करने वाले के साथ नहीं। लेकिन भाइयों में हमेशा प्यार बना रहता था और आज भी है।

    -कृष्ण सिंह सिंगटा, छात्र, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय विधि विभाग।

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