हिमाचल में बरसात के माैसम में पतीड़ हर रसोई की स्पेशल डिश, पढ़ें क्या हैं इसके फायदे
बरसात में अरबी के पत्ते से बना पतीड़ हिमाचल की रसोई का खास व्यंजन है। इसे धीधड़े भी कहते हैं और दही या घी के साथ परोसा जाता है। डगैली-डगांस पर्व पर इसकी विशेष परंपरा है। पहले अनाज की कमी में लोग इसे खाते थे। आयुर्वेद में अरबी के पत्ते गुणों की खान हैं जिनमें विटामिन और आयरन भरपूर होते हैं।

संवाद सूत्र, जुन्गा। अरबी के पत्ते से बने पतीड़ बरसात में हर रसोई की स्पेशल डिश होती है जिसे लोग बड़े स्वाद से खाते हैं। सर्दियों में जहां अरबी की सब्जी और मक्की की रोटी का उपयोग किया जाता है।
वहीं पर बरसात में अरबी के पत्ते से बनाए जाने वाले पतीड़ व पकौड़े बहुत की स्वादिष्ट और लजीज बनते हैं जिसे देखकर हर व्यक्ति के मुंह में पानी आ जाता है। विशेषकर बरसात के दिनों में शिमला जिला के क्योंथल क्षेत्र में अरबी के पत्तों का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है।
स्थानीय भाषा में इसे धीधड़े कहते हैं। जिसे विशेषकर देसी घी या दही से खाना पसंद करते हैं। डगैली-डगांस के पर्व पर क्योंथल़ क्षेत्र के अलावा सीमा पर लगते जिला सिरमौर व सोलन क्षेत्र में पतीड़ बनाने की विशेष परंपरा है जिसे रात्रि को मकान की दहलीज पर पतीड़ रखकर धारदार औजार से काटकर डायनों को अर्पित किया जाता है।
जुन्गा क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक दयाराम वर्मा, बालक राम निर्मोही, योगमाया शर्मा ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में पतीड़ बनाने की परंपरा कालांतर से चली आ रही है।
अरबी के पत्तों पर परोसा जाता है खाना
अतीत में बुआरा अथवा किसी सामूहिक कार्य के दौरान लोगों को अरबी के पत्तों पर भोजन परोसा जाता था। क्योंकि अरबी के पत्ते साईज में काफी बड़े होते हैं। इसके अतिरिक्त अतीत में अनाज का जब काफी अभाव को जाता था तो लोग पतीड़ बनाकर ही गुजारा करते थे।
आयुर्वेद में अरबी के पत्ते को गुणों की खान माना जाता है। आयुर्वेद विशेषज्ञ डाॅ. विश्वबंधु जोशी ने बताया कि अरबी के पत्तों को स्थानीय भाषा में लांबू कहा जाता है, जोकि हार्ट के आकार के होते हैं। अरबी के पत्तोें में विटामीन-ए, विटामीन-सी, आयरन और फोलेट जैसे अनेक तत्व पाए जाते हैं। पतीड़ भी हमारी संस्कृति से जुड़ा एक आहार है जिसका अपना ही महत्व है।
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