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    अब दिखाइए न प्रकृति को अपना प्रभाव, पहाड़ नाराज नहीं निढाल हैं...

    कितना बड़ा विरोधाभास है कि जब ये पंक्तियां लिखी जा रही हैं शिमला में शहरी विकास निदेशालय के भवन को खाली करवाया जा रहा है....क्योंकि भूस्खलन की आशंका है...भय है। हिमाचल प्रदेश को आपदा के दूसरे चरण ने खून के आंसू रुलाए हैं। कितने जीवन समाप्त हो गए...कितने ही भवन धराशायी हो गए...कितने ही लोग लापता हैं कितने बेघर हैं....यह गणित हिला कर रखने के लिए पर्याप्त है।

    By Jagran NewsEdited By: Nidhi VinodiyaUpdated: Thu, 17 Aug 2023 10:20 AM (IST)
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    हिमाचल में हुए भूस्खलन और भारी से बारिश से आई आपदा, इसका जिम्मेदार कौन है।

    ‘मैं आपको डराना नहीं चाहता पर एक बात बताइए....शिमला के समरहिल क्षेत्र में शिव मंदिर पर हुए भूस्खलन में जितने लोग दबे हैं, क्‍या आप उन सबको तीसरे दिन भी निकाल पाए हैं? नहीं निकाल पाए... क्योंकि वहां एक्सकेवेटर या अन्‍य औजार आसानी से पहुंच ही नहीं पाए। अब सोचिए....ईश्वर न करे, कभी शिमला में भूकंप आ जाए तो क्या होगा?’ केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष अंबरीश कुमार महाजन तो यह कह कर चुप हो जाते हैं पर यह प्रश्न कोलाहल उत्पन्न कर जाता है।

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    Himachal Disaster

    स्लाटर हाउस का क्षेत्र भूस्खलन से प्रभावित

    कितना बड़ा विरोधाभास है कि जब ये पंक्तियां लिखी जा रही हैं, शिमला में 'शहरी विकास निदेशालय' के भवन को खाली करवाया जा रहा है....क्योंकि भूस्खलन की आशंका है...भय है। हिमाचल प्रदेश को आपदा के दूसरे चरण ने खून के आंसू रुलाए हैं। कितने जीवन समाप्त हो गए...कितने ही भवन धराशायी हो गए...कितने ही लोग लापता हैं, कितने बेघर हैं....यह गणित हिला कर रखने के लिए पर्याप्त है। शिमला के समरहिल में शिव मंदिर परिसर से अब तक 13 शव ही मिले हैं जबकि माना यह जा रहा है कि वहां 25 से 30 लोग थे। नाभा और कृष्णा नगर में स्लाटर हाउस वाला क्षेत्र भूस्खलन से बुरी तरह प्रभावित है।

    Himachal Landslide Photos

    अब चुकाएंगे अंधाधुंध निर्माण की कीमत

    क्या इसे आपदा कहें? इसलिए कहें, क्योंकि वर्षा सामान्‍य से कहीं अधिक हुई है। पर जो घर और अन्य भवन गिरे, क्या वे इसलिए गिरे कि वर्षा अधिक हुई? या इसलिए गिरे क्योंकि ठीक स्थानों पर नहीं बने थे। शिव मंदिर वाला क्षेत्र ड्रेनेज जोन था। वहां और क्या अपेक्षा थी। अंधाधुंध निर्माण की कीमत कभी तो चुकानी ही थी। न्यायपालिका के हर आदेश को काटने के लिए… अपनी गलतियों और नियमों को तोड़ने के लिए कोई बेशक रिटेंशन पॉलिसी को आगे कर दे, देवदार के गिरते हुए पेड़ को कौन से कागज दिखाएंगे?

    नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शिमला पर अत्यधिक बोझ होने की बात कही थी, किसी ने सुनी? 25 हजार लोगों के लिए बने शिमला पर अब तीन लाख से अधिक का बोझ है। बढ़ा होगा शिमला का आकार...पर पहाड़ काट कर या नालों से पिलर उठा कर निर्माण करने के लिए। शिमला में करीब पांच सौ पेड़ गिरे हैं।

    फोटो खिंचवाने के लिए होता रहा कागजी पौधारोपण

    वर्षा सामान्य से कहीं अधिक हुई, इसमें कोई संदेह नहीं। पर संदेह इसमें भी नहीं कि हमने मैदानों वाली वे सुविधाएं यहां भी चाहीं, जो पहाड़ पर संभव नहीं। अवैज्ञानिक खनन, अतिक्रमण, अवैज्ञानिक कटान और बदले में केवल चित्र खिंचवाओ अभियान के तहत कागजी पौधारोपण....!

    जैसे बेसहारा पशुओं की बढ़ती संख्या के पीछे एक कारण कृत्रिम गर्भाधान करने वाले अकुशल हाथ हैं, वैसे ही प्रकृति के प्रकोप के पीछे धनपशुओं का लोभ है। अपनी जड़ों से अलग होने वाले, हर पत्थर, रेत के हर कण में मुनाफा खोजने वाले लोग....!

    रो रहें हैं पहाड़ 

    वास्तव में, पहाड़ नाराज नहीं है, निढाल हो रहा है, जैसे गश खाकर जो गिरता है, उसे पता नहीं होता कि वह कहां और किस पर गिर रहा है। ‘पर्वत वो सबसे ऊंचा हमसाया आसमां का, वो संतरी हमारा, वो पासबां हमारा’, हमारी करतूत के कारण शिथिल हो गया है।

    विकास आवश्यकता नहीं, अनिवार्यता है

    नब्बे डिग्री के कोण पर पहाड़ काटे गए हैं। मलबे को कहां गिरना है, इसमें कोई रहस्य है? सड़कों को जब डंपिंग साइट बनाया जाएगा, उनसे किस दया की अपेक्षा की जानी चाहिए। विकास आवश्यकता नहीं, अनिवार्यता है किंतु विकास कहते किसे हैं? पहाड़ की अवैज्ञानिक कटाई करके सड़क बनाना विकास कब से हो गया? राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के पास विश्‍व स्‍तरीय अभियंता होते हैं, उनमें से एक भी यह नहीं सोच सका कि पहाड़ को काटना कैसे है ?

    क्‍या पहाड़ी क्षेत्र में निर्माण की विशेषज्ञता रखने वाले अभियंताओं की सेवाएं नहीं ली जा सकती? लैपटॉप पर थ्रीडी इमेज बनाना सरल है और मौके पर जाकर मोड़ देखना अलग बात। हिमाचल पाषाण युग में नहीं लौटना चाहता पर, बेहद चौड़ी सड़क के लिए हिमाचल का नामोनिशान ही मिट जाए ऐसा विकास किसे चाहिए।

    हिमाचल को उदार स्पर्श की अत्‍यंत आवश्‍यकता है

    नदी के रास्ते का अतिक्रमण करके भवन बनाना वस्‍तुत: आपदा का वातावरण तैयार करना है। नदी की गोद में 'रिवर' के नाम पर अपने घरों और होटलों का नामकरण कर इतराने वाले लोग जिनके वोट होते हैं, क्‍या वे नदी की धारा को रोक सके या आगे भी रोक सकेंगे?

    ये राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं 

    इसके बावजूद हिमाचल प्रदेश में जो कुछ इस बरसात में हुआ है, राज्‍य सरकार या केंद्र सरकार इसे राष्ट्रीय आपदा माने या न माने, यह राष्ट्रीय आपदा से कम नहीं है। क्योंकि रणनीतिक रूप से हिमाचल बहुत चर्चित राज्य नहीं है, केंद्र में संख्या बल के हिसाब से बहुत प्रभावी राज्‍य नहीं है, पर इसे उदार स्पर्श की अत्‍यंत आवश्‍यकता है।

    राज्य सरकार और सभी राजनीतिक दलों के लिए यह सोचने का समय है कि हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व को बनाए रखना बहुत आवश्यक है, जिसके लिए कुछ कड़े कदम लेने ही होंगे। पेड़, पहाड़, पानी या पूरी प्रकृति ही यह सोच कर कुपित नहीं होती कि अमुक को हानि पहुचानी है और अमुक को नहीं, इसलिए मैदानों वाले काम पहाड़ को नहीं चाहिए।

    (लेखक नवनीत शर्मा दैनिक जागरण में हिमाचल प्रदेश के राज्य संपादक हैं।)