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    हिमाचल के पर्यटन स्थल कुफरी में पर्यावरणीय नुकसान पर NGT की सख्ती, तय की घोड़े और पर्यटकों की सीमा

    By Jagran News Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Wed, 29 Oct 2025 01:59 PM (IST)

    राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने हिमाचल के पर्यटन स्थल कुफरी में पर्यावरणीय नुकसान को लेकर सख्ती दिखाई है। कुफरी में घोड़ों की संख्या 900 और पर्यटकों की संख्या 2000 प्रतिदिन तय की गई है। एनजीटी ने सरकार को पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं, जिसका उद्देश्य प्रदूषण कम करना और प्राकृतिक सुंदरता को बनाए रखना है।

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    शिमला जिले के पर्यटन स्थल कुफरी में घोड़े पर सवार होकर जाते पर्यटक। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, शिमला। हिमाचल प्रदेश में रोहतांग दर्रे के बाद दूसरे बड़े पर्यटन स्थल पर एनजीटी ने सख्ती बरती है। शिमला के कुफरी क्षेत्र में अनियंत्रित रूप से चल रहे घोड़ों और अवैज्ञानिक पर्यटन प्रबंधन से पर्यावरण को हो रहे नुकसान पर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाया है।

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    एनजीटी ने हिमाचल सरकार को तीन माह के भीतर वैज्ञानिक दिशानिर्देश लागू करने के आदेश दिए हैं। साथ ही यह भी निर्देश दिया है कि घोड़ा मालिक से परामर्श लेकर कार्रवाई रिपोर्ट judicial-ngt@gov.in पर ईमेल के माध्यम से भेजी जाए।

    एक हजार से ज्यादा घोड़े

    एनजीटी में दाखिल याचिका में कहा गया था कि लगभग 700 से 800 घोड़े 8-10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बिना किसी वैज्ञानिक प्रबंधन के चलाए जा रहे हैं। इससे स्थानीय पारिस्थितिकी, वनस्पति और जल स्रोतों को भारी क्षति पहुंच रही है। समिति की जांच में पाया गया कि घोड़ों की वास्तविक संख्या 1029 तक पहुंच गई है, जबकि क्षेत्र की वैज्ञानिक वहन क्षमता मात्र 293 घोड़ों की है। 

    घोड़ा यातायात से पेड़ों की जड़ें और वनस्पति प्रभावित

    लगातार घोड़ा यातायात से पगडंडियां, पेड़ों की जड़ें और वनस्पति बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। एनजीटी ने स्पष्ट किया है कि पर्यावरण संरक्षण के साथ पर्यटन गतिविधियों का संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है। 

    293 घोड़ों का ही होगा संचालन

    कुफरी क्षेत्र में अब केवल 293 घोड़ों और 2232 पर्यटकों की सीमा लागू रहेगी, जबकि गोबर प्रबंधन के लिए वर्मी कम्पोस्टिंग को ही सर्वोत्तम विकल्प माना गया है।

    400 टन से ज्यादा गोबर होता है उत्पन्न

    रिपोर्ट के अनुसार, घोड़ों से हर वर्ष लगभग 400 से 500 टन गोबर उत्पन्न होता है। इसके पर्यावरण अनुकूल निपटान के लिए वर्मी कम्पोस्टिंग प्रणाली को सबसे प्रभावी माना गया है। यह प्रक्रिया दो चरणों में पूरी होती है। पहले सुखाने व अपघटन का चरण (1.5-दो माह) और फिर वर्मी-कम्पोस्टिंग (2.5-तीन माह) है। इस पर लगभग 79,000 वार्षिक लागत आने का अनुमान है। ड्रायर या ब्रिकेटिंग जैसी वैकल्पिक विधियां महंगी और प्रदूषणकारी पाई गईं। 

    2232 पर्यटकों को अनुमति देने की सिफारिश

    महासू पीक क्षेत्र में प्रतिदिन केवल 2232 पर्यटकों को अनुमति देने की सिफारिश की गई है, ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे। एनजीटी ने 14 अक्टूबर 2025 को दी गई अपनी अंतिम सुनवाई में समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए हिमाचल सरकार को आदेश दिया कि घोड़ा संचालन और पर्यटक संख्या के वैज्ञानिक नियंत्रण के लिए दिशा-निर्देश तीन माह में जारी किए जाएं। सभी लंबित अंतरिम आवेदन भी निपटाए गए।