पागल कुत्ते के काटने का इलाज सिर्फ 350 रुपये में
चित्र सहित -पागल कुत्ते या बंदर काटने पर मांसपेशियों में टीका लगाने की जरूरत नहीं -शिमला क ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, शिमला : एक हिमाचली चिकित्सक की 17 साल की मेहनत को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता दे दी है। मेहनत का फल देशभर के ऐसे लोगों पर दिखेगा जिन्हें पागल कुत्ते, बंदर या किसी अन्य जानवर के काटे जाने पर जान का खतरा हो जाता था। अब यह होगा कि 35000 रुपये में होता आ रहा उपचार केवल 350 रुपये में संभव होगा। करना केवल यह है कि दवा केवल उसी हिस्से पर लगाई जाएगी, जहां पागल कुत्ते ने काटा है। विश्वभर में रैबीज इम्यूनोग्लोबिन की कीमत आम आदमी की पहुंच से बाहर है। ऐसे में दवा का कम उपयोग करके मरीज की जान बचाना संभव हो गया है। दवा वही रहेगी, लेकिन अब उसके प्रयोग का तरीका बदला गया है।
शिमला के दीनदयाल उपाध्याय (डीडीयू) अस्पताल के डॉ. उमेश कुमार भारती के शोध के मुताबिक पागल कुत्ते के काटने पर अब मरीज की मांसपेशियों में टीका लगाने की जरूरत नहीं है। केवल जानवर के काटने से बने घाव पर ही टीका लगाना होगा। अस्पताल में आने वाले मरीजों का इसी विधि से इलाज हो रहा है। शोध के नतीजों के अनुसार घाव के अलावा शरीर के अन्य हिस्सों में टीका लगाना लाभदायक नहीं है। पागल कुत्तों व दूसरे जानवरों के काटने पर मरीज के लिए महंगे टीके खरीदना मुश्किल होता था। सस्ता इलाज खोजने का काम 2000 में शुरू हो गया था, जिसमें 17 साल के बाद सफलता मिली है। सिरम बनाने के लिए घोड़े व इन्सान के खून का इस्तेमाल होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की यह स्वीकृति जेनेवा में अक्टूबर 2017 में विशेषज्ञों के रणनीतिक सलाहकार समूह की सिफारिशों पर दी है जिसमें डॉ. उमेश भारती, स्वर्गीय डॉ. एसएन मधुसूदन और डॉ. हेनरी वाइल्ड के संयुक्त शोधपत्र का जिक्र था।
डब्ल्यूएचओ ने दी मान्यता
घाव पर टीका लगाने की पद्धति को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मान्यता मिल गई है। डब्ल्यूएचओ ने सभी देशों को इलाज की यह पद्धति अपनाने के लिए लिखा है। बेंगलुरु के निमहांस से तकनीकी स्वीकृति मिलने के बाद इस पद्धति का इस्तेमाल देश के सभी राज्यों में पागल कुत्तों, बंदरों व अन्य जानवरों के काटने पर इलाज के लिए होगा। हिमाचल में इस पद्धति का उपयोग 2014 से हो रहा है।
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2008 में बदला तरीका
2008 से पहले तक टीकाकरण पेट के चारों ओर किया जाता था। बाद में मांसपेशी में टीका लगाना शुरू किया गया। ऐसा करने से टीके का मूल्य पांच गुणा कम हुआ। तब तक बाजार में सिरम आता था, लेकिन अचानक सिरम आना बंद हो गया। इस बीच सिरम की कमी को देखते हुए टीका त्वचा में लगाना बंद कर घाव में लगाने का प्रयोग सफल रहा।
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50 मरीजों की जान बचाई
पागल कुत्ते के काटने पर मरीज का इलाज मांसपेशी में टीका लगाने से किया जाता था। सिरम की कमी का संकट पैदा होने के बाद मरीज के घाव पर टीका लगाया गया जो सफल रहा। यह टीका बेहद सस्ता है। इस विधि से रैबीज होने की संभावना न के बराबर रह जाती है। अस्पताल में 40 से 50 मरीजों की घाव पर टीका लगाने से जान बचाई जा चुकी है। अहम बात यह है कि टीके की डोज मरीज के वजन के आधार पर तय की जाती है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसे मंजूरी दी है।
-डॉ. उमेश कुमार भारती, प्रोग्राम ऑफिसर, दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल शिमला।

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