शिमला के नागेश्वर महाराज मंदिर में 54 साल बाद क्यों हो रहा शांत महायज्ञ? 1971 में हुआ था इससे पहले आयोजन
शिमला के नागेश्वर महाराज मंदिर में 54 वर्षों के बाद शांत महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। मंदिर समिति के अनुसार, इस यज्ञ का उद्देश्य क्षेत्र में सुख-शांति और समृद्धि लाना है। इससे पहले यह आयोजन 1971 में हुआ था। इस यज्ञ को लेकर श्रद्धालुओं में भारी उत्साह है और दूर-दूर से लोग इसमें भाग लेने आ रहे हैं।

जुब्बल के झड़ग गांव में देवता साहिब नागेश्वर महाराज का मंदिर। जागरण
संवाद सूत्र, जुब्बल (शिमला)। हिमाचल प्रदेश में जिला शिमला के जुब्बल के झड़ग गांव में 4 दिसंबर से देवता साहिब नागेश्वर महाराज का शांत महायज्ञ होने जा रहा है। 6 दिसंबर तक चलने वाले इस महायज्ञ में भारी जनसैलाब देव दरबार में उमड़ेगा। यह महायज्ञ 54 वर्षां के बाद हो रहा है। इससे पहले यह महायज्ञ 1971 में हुआ था।
झड़ग के स्थानीय निवासी कैलाश शर्मा ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि शांत महायज्ञ देवता की सशक्ति को और ज्यादा सशक्त करने के लिए किया जाता है।
हर गांव हर क्षेत्र के देवी-देवता अपनी अपनी प्रजा की रक्षा के लिए, शांति बनाए रखने के लिए, प्रजा को एकसूत्र में बांधे रखने के लिए अपनी शक्ति को दर्शाने एवं अत्याधिक शक्ति प्राप्त करने के लिए जाप, तप, यज्ञ एवं महायज्ञ का आयोजन करते हैं।
कैलाश शर्मा राजकीय प्राथमिक पाठशाला बड़श कुफ्टाधार में बतौर मुख्य अध्यापक तैनात हैं। वह बताते हैं कि हिमालय पर्वत की पहाड़ियों में बसा हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से जाना जाता है। हिमालय पर्वत श्रृंखला में जहां भगवान शिव का वास है, वहीं उन्हीं के अनुरूप विभिन्न भेष में अनेकों देवताओं का भी वास है।
प्रत्येक देवी देवताओं की अपनी अपनी प्रजा है। उसी प्रकार इसी महत्वता को देखते हुए 4 से 6 दिसंबर तक देवता नागेश्वर महाराज झड़ग में शांत महायज्ञ का आयोजन होने जा रहा है। इससे पूर्व यह आयोजन सन 1971 में हुआ था। झड़ग गांव प्राचीन समय में बुशहर रियासत का एक ऐतिहासिक गांव था। इसे राजा बुशहर का खूंद माना जाता था। वर्तमान में यह तहसील जुब्बल, जिला शिमला में स्थित है।
यहां हुई थी देवता की उत्पति
कैलाश शर्मा ने कहा कि देवता नागेश्वर महाराज की उत्पति बराल में धराट नामक स्थान पर हुई। इसके पश्चात झड़ग कटेड़ा में मंदिर निर्माण कर मूर्ति को स्थापित कर दिया गया। कुछ वर्षों के बाद किसी अनहोनी के कारण मंदिर में आग लग गई और मंदिर जलकर नष्ट हो गया। इसके बाद देवता साहब के मंदिर का निर्माण वहां पर हुआ जहां पर उनके पुजारियों का गांव है।
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यह है देवता की प्रजा
देवता नागेश्वर की प्रजा शीली और तावली के नाम से जानी जाती है। इसमें बराल झडंग एवं मंढोल गांव आते हैं। यदि नागेश्वर महाराज की शक्ति की बात की जाए, तो उन्हें आक्रामकता की बजाय शांति प्रिय शक्ति के रूप में जाना जाता है। उनकी पालकी में शीर्ष पर काली मां की मूर्ति स्थापित है। महाराज को कालीपुत्र के नाम से जाना जाता है। पालकी में अंग रक्षक के रूप में भौड़ बराल, ब्रह्म, असुर आदि के रूप में विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है।

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