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    हिमाचल में लंबी उम्र जी रहे बंदर

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    Updated: Fri, 21 Sep 2018 01:56 PM (IST)

    हर बंदर समूह का सबसे लीडर सबसे ताकतवर होता है, जिसे अल्फा कहा जाता है। यही खासकर महिलाओं और बच्चों पर हमला करते हैं।

    हिमाचल में लंबी उम्र जी रहे बंदर

    राज्य ब्यूरो, शिमला। देश के दूसरे राज्यों की अपेक्षा हिमाचल के बंदरों की औसत उम्र पांच से दस साल अधिक है। बंदर पिज्जा, पेस्ट्री जैसे जंक फूड खाने के आदी हो गए हैं। ये इंसान की तर्ज पर ही खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं और जंगलों पर इनकी निर्भरता कम हो गई है। ये तथ्य बंदरों के व्यवहार पर शिमला पर वन्य प्राणी विंग के माध्यम से किए विशेष शोध से सामने आए हैं। राज्य में वैज्ञानिक आधार पर यह शोध पहली बार किया है। इसमें जीपीएस की भी मदद ली गई है। अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी सर्वे होगा। ज्यादा कैलोरी बढ़ने की वजह से बंदरों का वजन भी बढ़ रहा है।

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    शोध के लिए वन विभाग ने चार टीमों का गठन किया। इसमें वन रक्षक तथा ईको टास्क फोर्स के कर्मचारी शामिल रहे। शिमला शहर के 31 वार्डों में शोध करने में ढाई माह का समय लगा। अध्ययन में पाया गया कि शिमला में 1700 से अधिक संख्या में लगभग 49 बंदरों के समूह हैं। इनमें सबसे बड़े समूह में लगभग 73 और सबसे छोटे समूह में 15 बंदर हैं।

    यहां है सबसे बड़ा समूह
    बंदरों का सबसे बड़ा समूह खलीनी से कन्या नेहरू अस्पताल तक विचरण करता है। क्षेत्रफल के आधार पर सबसे छोटा क्षेत्र ढाडा का समूह पाया गया। यह वहीं पर स्थित कूड़े के ढेर के आसपास रहता है। यह भी पाया गया कि बंदरों के समूह अपने निर्धारित राह पर ही दिनभर विचरण कर रात को अपने वासस्थल पर चले जाते हैं।

    कूड़ेदान पर रहती है नजर
    शहर में लगभग 83 कूड़ादान मौजूद हैं। इनमें से 45 पर बंदर हर समय मौजूद रहते हैं। इसके अलावा शहर में लगभग 30 खुले स्थानों पर कूड़ा फेंका जाता है।

    अल्फा सबसे ताकतवर
    हर बंदर समूह का सबसे लीडर सबसे ताकतवर होता है, जिसे अल्फा कहा जाता है। यही खासकर महिलाओं और बच्चों पर हमला करते हैं। इससे कम ताकतवर को बीटा व सबसे कमजोर को गामा कहा जाता है। अल्फा वानर सबसे पहले भोजन ग्रहण करते हैं।

    जानें, किसने क्या कहा
    राज्य में पहली बार वैज्ञानिक शोध हुआ है। बंदरों की खाने-पीने की आदतों में बदलाव हुआ है। यही वजह है कि राज्य में बंदरों की औसत उम्र दूसरे राज्यों से अधिक है।
    -डॉ. संदीप कुमार, पशुपालन विशेषज्ञ एवं सहायक निदेशक, वन विभाग।
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    विभाग पहली बार समस्या की जड़ तक पहुंचा है। अब शोध से निकले परिणामों के आधार पर बंदरों की समस्या से निदान की रणनीति तैयार की जाएगी। वर्मिन घोषित करने के बावजूद लोग इन बंदरों को नहीं मार रहे हैं।
    -डॉ. आरसी कंग, पीसीसीएफ, वन्य प्राणी विंग।