हिमाचल में छाया बंदरों का आतंक, हमले में पांच साल में 50 की मौत; 3000 से ज्यादा घायल
शिमला में बंदरों का आतंक लगातार जारी है जिससे लोगों की जान पर बन आई है। रामपुर में एक सेवानिवृत्त शिक्षक की बंदरों से बचने के प्रयास में छत से गिरकर मौत हो गई। पिछले पांच वर्षों में बंदरों के हमलों में 50 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और हजारों घायल हुए हैं।

अतुल कश्यप, शिमला। बंदरों का उत्पात हिमाचल प्रदेश के हर चुनाव में मुद्दा तो बनता आ रहा है किंतु उनके आतंक से मुक्ति अब भी दूर की कौड़ी है। हिमाचल प्रदेश के शहरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में फसलें उजाड़ने व सामान छीनने की घटनाओं के बीच बंदरों का उत्पात अब जान पर भारी पड़ने लगा है।
बुधवार को रामपुर उपमंडल से सटे कुल्लू की ब्रौ पंचायत में 65 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक देश लाल गौतम की बंदरों के झुंड से बचते समय चौथी मंजिल की छत से गिरकर मौत हो गई। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पांच वर्ष में 50 से अधिक लोगों की मौत बंदरों के हमले में हो चुकी है जबकि 3000 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
बंदर के हमले में मौत होने पर वन विभाग के पास एक लाख रुपये के मुआवजे का प्रविधान है। बंदरों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नसबंदी योजना चल रही है लेकिन विशेष राहत नहीं मिली है। नीति नियंताओं की लापरवाही से बंदरों की समस्या से निजात नहीं मिल पा रही है।
सेवानिवृत्त शिक्षक रोजाना की तरह सुबह लगभग छह बजे घर की छत पर पक्षियों को दाना डालने गए थे। दाना डालने के तुरंत बाद बंदरों के झुंड ने उन पर हमला कर दिया। बंदरों से बचने कोशिश में उनका संतुलन बिगड़ा और छत से नीचे गिर गए। रामपुर के खनेरी अस्पताल में उन्हें मृत घोषित कर दिया।
डीएसपी आनी चंद्रशेखर कायथ बताते हैं कि मामले की जांच जारी है। आनी वन मंडल का अतिरिक्त कार्यभार देख रहे डीएफओ रामपुर गुरहर्ष सिंह ने बताया कि आनी क्षेत्र के ब्रौ सहित अन्य स्थानों पर बंदरों को पकड़ने के लिए मंकी कैचर बुलाए हैं। सबसे विकट स्थिति राजधानी शिमला में है, जहां बंदर लोगों से सामान छीनते हैं और हमला भी कर देते हैं।
पिछले दिनों महिलाओं के पर्स छीनने के मामले सामने आए। एक मामले में बंदर ने पर्स में रखे 11 हजार 500 रुपये में से तीन हजार से ज्यादा के नोट फाड़ दिए थे। दूसरे मामले में दस्तावेज फाड़ दिए थे। अन्य जिलों में भी स्थिति सुखद नहीं है।
हाई कोर्ट ने भी लिया था संज्ञान
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने सितंबर, 2023 में पशु कल्याण बोर्ड, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय (पशुपालन और डेरी विभाग) के सचिव के माध्यम से शिमला शहर में बंदरों के खतरे से निपटने के लिए सुझाव देने के निर्देश भी दिए थे।
सरकार को पशु कल्याण बोर्ड की सलाह लेने के साथ ही आंध्र माडल का अध्ययन करने को भी कहा था कि किस तरह तिरुपति मंदिर परिसर से बंदरों की दहशत को खत्म किया गया। सरकार ने आश्वस्त किया था कि सरकार और नगर निगम शिमला मिलकर चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की पशु चिकित्सा शाखा से भी इस बारे में परामर्श करेंगे। पालमपुर यूनिवर्सिटी से इनपुट साझा कर राज्य में बंदरों के उत्पात के साथ ही कुत्तों के आतंक को दूर करने के प्रयास किए जाएंगे किंतु हुआ कुछ नहीं।
बंदरों से जुड़े कुछ तथ्य
- डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में हर साल बंदर व अन्य वन्य जीव 500 करोड़ रुपये की फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। l
- 2006 में हिमाचल बंदरों की नसबंदी करने वाला पहला राज्य बना। वर्ष 2021 तक 1,70,169 बंदरों की नसबंदी की गई, कुल संख्या का 51.4 प्रतिशत है। l
- 2016 से समय-समय पर उन्हें दरिंदा (वर्मिन) घोषित कर इन्हें मारने की अनुमति मिली लेकिन सरकारी आंकड़ों में एक भी बंदर लोगों ने नहीं मारा।
- हिमाचल में वर्ष 2004 से 2020 के बीच बंदरों की संख्या में 57 प्रतिशत की गिरावट आई। अभी उनकी संख्या 1,36,443 हैl प्रदेश के कई क्षेत्रों में बंदर खुद को विकसित करते हुए निपुण हो गए हैं कि वे पैकेज्ड खाना व पानी की बोतल खोलना तक सीख गए हैं।
- शहरी क्षेत्रों में बंदर लोगों से मिलने वाले खाने, कूड़े पर फेंके गए भोजन और घरों पर धावा बोलकर लूटे हुए खाने पर निर्भर हैं।
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