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    आखिर किसकी हत्या हुई कसौली में

    By BabitaEdited By:
    Updated: Thu, 03 May 2018 04:31 PM (IST)

    शैल बाला सहायक नगर नियोजन अधिकारी थीं जिन पर होटल मालिक ने गोलियां दाग दीं और देश की शीर्ष अदालत के हुक्म की तामील करते हुए कर्तव्य की वेदी पर चढ़ गईं

    आखिर किसकी हत्या हुई कसौली में

    शिमला, नवनीत शर्मा। अवैध कब्जों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करवाने पहुंचीं महिला अधिकारी की हत्या दरअसल अधिकारियों के मनोबल की हत्या है। इसी घटना में घायल बेलदार गुलाब सिंह का जख्मी होना, ऐन वक्त पर प्रशासनिक सूझबूझ और कर्तव्यनिष्ठा का चोटिल हो जाना है। हिमाचल का सोलन जिला और शहर कसौली। 

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    खुशवंत सिंह का शहर... महान लेखक रस्किन बांड की जन्मस्थली... जहां जाने माने कूटनीतिज्ञ बीके नेहरू, महान एथलीट मिल्खा सिंह व उनके अंतरराष्ट्रीय गोल्फर बेटे जीव मिल्खा सिंह समेत कई महत्वपूर्ण लोगों के घर हैं। हिमाचल की जमीन पर कंकरीट का इतना घना जंगल उग आया कि यहां बात संवाद से बहुत आगे जाती हुई सीधे गोली मारने पर आ गई। शैल बाला सहायक नगर नियोजन अधिकारी थीं जिन पर होटल मालिक ने गोलियां दाग दीं और देश की शीर्ष अदालत के हुक्म की तामील करते हुए कर्तव्य की वेदी पर चढ़ गईं। 

    .....लेकिन यह सब हुआ हिमाचल पुलिस के सामने। व्यवस्था की आंखों के ठीक सामने। हत्या के बाद पुलिस के सामने ही आरोपित भाग गया और लाचार पुलिस उसके रिवॉल्वर से डरती रही। जिस व्यक्ति या संस्था की साख गिर चुकी हो उसका हर कदम उसी साख की बहाली में उठता है। यहां कुछ उलट हुआ। कोटखाई के गुड़िया दुष्कर्म एवं हत्या मामले और उसके बाद एक आरोपित की लॉकअप में हत्या के बाद दागदार हुई हिमाचल पुलिस की वर्दी फिर कलंकित हुई। एक बार फिर सामने  आया कि आपराधिक कृत्य करने वालों के हौसले बुलंद होने के पीछे आखिर कारण क्या है।

    इस गोली की गूंज वास्तव में कार्यपालिका को भयभीत और आतंकित करने के लिए थी। एक संदेश है कि शीर्ष अदालत के आदेश के पालन में ही अधिकारी को शीर्ष सुरक्षा नहीं दी गई। यह प्रशासन के स्तर पर और पुलिस प्रशासन के स्तर पर आपराधिक और अक्षम्य चूक है....पुलिस की लचर हो चुकी कार्यप्रणाली की मिसाल है, जहां हर बात ‘चलता है’ के रंग में रंगी है।

    सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और प्रशासनिक अमले की मौजूदगी में हुई हत्या का स्वत: संज्ञान लेते हुए क्या गलत कहा कि अगर यही रवैया रहा तो हम आदेश देना बंद कर देंगे? अदालत की यह टिप्पणी वस्तुत: हिमाचल सरकार पर है। अदालत ने यह भी प्रश्न किया है कि जब अधिकारी मौके पर थी तो पुलिस वाले क्या कर रहे थे।

    सच यह है कि इतनी बड़ी कार्रवाई के दौरान पुलिस सुरक्षा का नियत प्रोटोकॉल निभाया ही नहीं गया, कोई होमवर्क किया ही नहीं गया। इस घटना से अफसरों पर छाए डर का असर क्या अगली बार ऐसे ही आदेशों के पालन में नहीं दिखेगा? कैसे हिम्मत करेंगे अधिकारी कि कर उगाह सकें? क्यों कोई अतिक्रमणकारियों को हटाने चला जाएगा? किसके सहारे? एक लचर पुलिस व्यवस्था के सहारे अदालती आदेश के पालन होते हैं? सड़क किनारे नाका लगा कर वाहनों की जांच करते ट्रैफिक मजिस्ट्रेट क्या सुरक्षित हैं?

    पुलिस के अपने आचरण के कारण गिरते हुए मनोबल के लिए जो भी संभव हो हिमाचल प्रदेश सरकार को क्यों नहीं करना चाहिए? लोग कम हैं तो भर्ती कीजिए न! अधिक हैं तो कम करने से कौन रोक रहा है? उनसे काम लेने से कौन मना कर रहा है? उन्हें इस योग्य बनाएं कि वह औरों को सुरक्षा दे सकें। जिन्हें स्वयं सुरक्षा की जरूरत है, कोई भी उनसे सुरक्षा की गारंटी कैसे ले सकता है? हिमाचल प्रदेश को अपराध के मामले में अब किसी अन्य राज्य का उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं रही। त्रासद यह है कि यह राज्य अब अपनी मिसाल आप बन गया है। क्या यह कभी अच्छा मुकाम या मंजिल होनी चाहिए थी? कभी नहीं!!!