हिमाचल के सबसे बड़े अस्पताल में कमीशन रैकेट, निजी लैब के एजेंट एक कॉल पर पहुंचते हैं सैंपल लेने; ...स्टाफ की बड़ी मिलीभगत
Himachal Pradesh News, शिमला के आईजीएमसी अस्पताल में निजी लैब एजेंटों का रैकेट उजागर हुआ है। एजेंट, अस्पताल के अंदर से कॉल आने पर मरीजों के ब्लड सैंपल ...और पढ़ें

इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल (आइजीएमसी) शिमला का परिसर। जागरण आर्काइव
जागरण संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल (आइजीएमसी) में निजी लैब के एजेंट सक्रिय थे, जो एक कॉल पर तुरंत ब्लड सैंपल लेने अंदर पहुंच जाते थे। जांच में यहां ऐसा संगठित रैकेट सामने आया है, जिसने पूरे स्वास्थ्य तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पुलिस जांच में पता चला है कि निजी लैब से जुड़े एजेंट अस्पताल के भीतर से आने वाली फोन काल का इंतजार करते थे और फोन आते ही चंद मिनट में अस्पताल पहुंचकर मरीजों के ब्लड सैंपल ले जाते थे। यह पूरा खेल अस्पताल में मौजूद बिना किसी प्रभावशाली नेटवर्क की मदद के संभव ही नहीं था।
कमीशन के चक्कर में अस्पताल स्टाफ की मिलीभगत
कमीशन के चक्कर में कुछ डाक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों पर भी इस गिरोह से मिलीभगत का संदेह गहराता जा रहा है। पुलिस ने संकेत दिए हैं कि इस पूरे नेटवर्क में शामिल स्टाफ की संख्या और उनके नाम बहुत जल्द सार्वजनिक हो सकते हैं।
मरीजों को रहता था इलाज में कोताही का डर
मरीजों को डर रहता था कि अगर वे विरोध करेंगे तो इलाज में कोताही हो सकती है। इसका लाभ उठाकर एजेंट उन्हें निजी लैब में टेस्ट करवाने के लिए मजबूर करते थे। कई मरीजों ने बताया कि अस्पताल के भीतर ही उन्हें इशारा कर दिया जाता था कि यहां टेस्ट नहीं होगा, जबकि बाद में पता चला कि टेस्ट सुविधा उपलब्ध होने के बावजूद उन्हें जानबूझकर बाहर भेजा जा रहा था।
कमीशन आधारित रैकेट
शिमला पुलिस इस मामले में जांच कर रही है। एक निजी लैब के संचालक और उससे जुड़े सात एजेंटों को पूछताछ के लिए बुलाया है। पूछताछ में कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं। इससे स्पष्ट हो रहा है कि यह साधारण अनियमितता नहीं, बल्कि सेट किया हुआ कमीशन आधारित रैकेट है।
प्रतिदिन मिलती थी मरीजों के बारे में जानकारी
पुलिस सूत्रों के अनुसार, एजेंटों को आइजीएमसी के अंदर से प्रतिदिन मरीजों के बारे में जानकारी मिलती थी कि किसका कौन-सा टेस्ट होना है। कई मामलों में डाक्टरों ने खुद मरीजों को परोक्ष रूप से निजी लैब जाने को कहा। एजेंट हर सफल टेस्ट पर तय कमीशन सीधे अस्पताल के भीतर मौजूद अपने संपर्कों को देते थे।
कॉल से लगता था पता कि किस वार्ड या ओपीडी में पहुंचना
मरीजों की टेस्ट रिपोर्ट समय पर देने की जगह उन्हें पहले लैब प्रचार और पैकेज बेचने पर जोर दिया जाता था। पूछताछ में एजेंटों ने माना है कि आइजीएमसी से आने वाली काल ही सबसे बड़ा सिग्नल होता था कि अब उन्हें किस वार्ड या ओपीडी में पहुंचना है। इससे स्पष्ट है कि अस्पताल के भीतर इस नेटवर्क की जड़ें कितनी गहरी थीं। आइजीएमसी प्रबंधन की तरफ से जांच के लिए पुलिस को लिखा गया है तभी यह जांच शुरू हुई है।
जल्द बड़े नाम आ सकते हैं सामने
इस मामले में जल्द बड़े नाम सामने आ सकते हैं। अब पुलिस की जांच का ध्यान इस बात पर है कि किन डाक्टरों ने निजी लैब को लाभ पहुंचाया। कौन पैरामेडिकल कर्मचारी एजेंटों से संपर्क में थे और किसे कितना कमीशन मिलता था। सूत्रों के मुताबिक, पुलिस कुछ डाक्टरों और स्टाफ की काल डिटेल, सीसीटीवी कैमरों की फुटेज और वित्तीय लेनदेन की भी जांच कर रही है। जल्द ही इस संगठित गिरोह में शामिल लोगों की संख्या और पहचान स्पष्ट हो जाएगी।
बड़ा सवाल- क्या भरोसे योग्य हैं सरकारी अस्पताल?
यह मामला सिर्फ एक लैब रैकेट नहीं, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य तंत्र पर लगने वाला सबसे बड़ा सवाल है। जब प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल ही कमीशनखोरी से अछूता नहीं तो फिर मरीज भरोसा किस पर करें, यह बड़ा सवाल है। सरकार को इस मामले में कठोर कदम उठाने होंगे।
यह है मामला
आइजीएमसी में मरीजों की सेहत और सरकारी सिस्टम को धत्ता बताकर ब्लड टेस्ट रैकेट चलने का पिछले दिनों पता चला था। इस मामले में अस्पताल परिसर में रंगे हाथ एक एजेंट युवती पकड़ी थी। पुलिस जांच में इसमें अहम सुराग मिले हैं। इस मामले में पुलिस ने पांच युवतियों और दो युवकों की पहचान कर ली है, जो अलग-अलग निजी लैब के लिए एजेंट का काम कर रहे थे।

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