हिमाचल: धामी में एक-दूसरे पर पत्थर बरसा निभाई अनोखी परंपरा, इन्सानी खून से किया मां भद्रकाली का तिलक; पहले होती थी नरबलि
हिमाचल के धामी में एक अनोखी परंपरा निभाई गई, जिसमें मां भद्रकाली को खुश करने के लिए लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। घायल लोगों के खून से मां का तिलक किया जाता है। पहले यहां नरबलि होती थी, जिसे अब बंद कर दिया गया है। इस परंपरा को देखने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।

जिला शिमला के धामी में एक दूसरे पर पत्थर बरसाते लोग। जागरण
जागरण संवाददाता, शिमला। हिमाचल प्रदेश के जिला शिमला में दीवाली के बाद मंगलवार को अनोखी परंपरा निभाई गई। जिला शिमला के धामी में अनोखी परंपरा वाला पत्थर मेला मनाया गया। शिमला से करीब 30 किलोमीटर दूर हलोग में पत्थरों की खूनी परंपरा का खेल खेला गया।
नरबलि से शुरू हुई परंपरा पशु बलि के बाद पत्थरों के खूनी खेल तक सिमटी है। इस खेल को देखने के लिए हलोग में हजारों लोग एकत्रित हुए।
राज परिवार सहित दो गुटों के लोग थे शामिल
राज परिवार के साथ कटैड़ू, तुनड़ु, दगोई, जठोटी खुंद के लोग शामिल थे, जबकि दूसरी टोली में जमोगी खुंद के लोग शामिल थे। आसपास के स्थानीय लोग मां सती के स्मारक के पास एकत्रित हुए। दोनों टोलियों ने पूजा-अर्चना के बाद खेल शुरू किया।
खून निकलने तक चलता रहा पत्थर मारने का दौर
ये खेल उस समय तक चलता है जब तक कोई व्यक्ति का सिर लहूलुहान नहीं हो जाता है। करीब 45 मिनट तक पत्थर मारते रहे। कटेडू खानदान के सुभाष के हाथ से खून निकलने के बाद पत्थरों की बरसात बंद की गई।
सुभाष के खून से मां भद्रकाली को तिलक लगाया गया। इसके बाद मेला कमेटी के आयोजकों के साथ राजवंश के सदस्यों ने मेला स्थल के नजदीक बने मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की।
दी जाती थी मानव बलि, प्रथा रोकने के लिए रानी हो गईं थी सती
मान्यता है कि धामी रियासत में मां भीमा काली के मंदिर में हर वर्ष इसी दिन परंपरा के अनुसार मानव बलि दी जाती थी। यहां पर राज करने वाले राणा परिवार की रानी इस बलि प्रथा को रोकना चाहती थी। इसके लिए रानी यहां के चौराहे में सती हो गई और नई परंपरा शुरू की गई।
इस स्थान का नाम खेल का चौराहा रखा गया है और यहां पर ही पत्थर का मेला मनाया जाता है। धामी रियासत के राज परिवार की अगुवाई में सदियों से यह परंपरा निभाई जा रही है।
बुजुर्ग बोले, श्रद्धा व निष्ठा से निभाते हैं परंपरा
स्थानीय बुजुर्ग मान सिंह ने बताया कि लोग श्रद्धा और निष्ठा से इस इस परंपरा को निभाते हैं। इस पर्व में धामी, सुन्नी, कालीहट्टी, अर्की, दाड़लाघाट, चनावग, पनोही व शिमला के आसपास के क्षेत्र के लोग भाग लेते हैं।
पत्थर से लगी चोट से निकले खून से होता मां भद्रकाली का तिलक
धामी रियासत के राजा जगदीप शाही अंदाज के साथ मेले में पहुंचे। नर बलि की प्रथा बंद होने के बाद यहां पशु बलि शुरू हुई। कई साल पहले इसे भी बंद कर दिया गया। इसके बाद पत्थर का मेला शुरू किया गया। मेले में पत्थर से लगी चोट के बाद जब किसी व्यक्ति का खून निकलता है तो उसका तिलक मां भद्रकाली के चबूतरे में लगाया जाता है।
राजपरिवार व इन खानदानों के बीच होती है पत्थर की जंग
यहां एक राज परिवार की तरफ से तुनड़ू, जठौती और कटेड़ू परिवार की टोली और दूसरी तरफ से जमोगी खानदान की टोली के सदस्य ही पत्थर बरसाने मेले में भाग लेते हैं। अन्य लोग पत्थर मेले को देख सकते हैं, लेकिन वे पत्थर नहीं मार सकते।
सती स्मारक के आमने सामने से होता है पथराव
खेल में चौराज गांव में बने सती स्मारक के एक तरफ से जमोगी तथा दूसरी तरफ से कटेड़ू समुदाय पथराव करता है। मेले की शुरुआत राजपरिवार के नरसिंह के पूजन के साथ होती है।
इस पत्थरबाजी में दोनों समुदायों में से किसी एक व्यक्ति को पत्थर लगने से खून निकलने पर उस खून से माता को तिलक लगाया जाता है। मंगलवार को पत्थर मारने के दौरान कटेडू खानदान के सुभाष का खून निकलने के बाद उससे तिलक किया गया।
धामी का पत्थर मेला... एक दूसरे पर पत्थर बरसाते लोग... pic.twitter.com/Q5ovhFAw6v
— Rajesh Sharma (@sharmanews778) October 21, 2025
शिमला के धामी में पत्थर बरसाने से खून निकलने के बाद मां भद्रकाली का तिलक कर झूमते लोग pic.twitter.com/LpWJu6hUwy
— Rajesh Sharma (@sharmanews778) October 21, 2025
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