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Editorial

वाकयुद्ध... शीतयुद्ध और बिगड़ती भाषा, हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक दिन-रात

हिमाचल सरकार (Himachal News) के भीतर चला शीतयुद्ध अब बयानों के जरिए सभी के सामने आ रहा है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू एक तरफ कांग्रेस का हाथ छोड़ने वालों के विरुद्ध बोल रहे हैं तो दूसरी और कमल को हाथ में लेने वाले भी सुक्खू की आलोचना करने से पीछे नहीं हैं। बात लीगल नोटिस और न्यायालय तक पहुंच गई है।

By Navneet1 Sharma Edited By: Gurpreet Cheema Published: Thu, 11 Apr 2024 12:52 PM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2024 12:52 PM (IST)
वाकयुद्ध... शीतयुद्ध और बिगड़ती भाषा, हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक दिन-रात

नवनीत शर्मा। मौसम की तरह निरंतर अप्रत्याशित होती जा रही हिमाचल प्रदेश की राजनीति में कई दृश्य देखने में आ रहे हैं। लंबे समय तक सरकार के भीतर चला शीतयुद्ध अब खुल कर परस्पर विरोधी बयानों में झलक कर संकेत दे रहा है कि राजनीति में नाम बेशक विचारधारा का हो, मूल उत्प्रेरक अपने ही घाव होते हैं। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू खुल कर उन नेताओं के विरुद्ध बोल रहे हैं जिन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ कमल को हाथ में ले लिया।

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मुख्यमंत्री के बयानों से पीड़ित-प्रभावित भी लीगल नोटिस, न्यायालय, थाने आदि की भाषा बोल रहे हैं। एक बेहद महीन रेखा रह गई है अब। पता नहीं कब ये आरोप-प्रत्यारोप और निजी हो जाएंगे। कलह का भी अपना सौंदर्य या कोई विशेषता होती है किंतु जब मित्र ही शत्रु हो जाएं तो कलह विकृत हो जाती है। विशेषरूप से वह कलह बेहद घातक होती है जहां अर्धसत्य का सहारा लिया जाए, क्योंकि अर्धसत्य, असत्य से अधिक खतरनाक होता है।

इस सबके बीच, एक वाकयुद्ध मंडी संसदीय क्षेत्र में जारी है। यहां पहले प्रतिभा सिंह तैयार थी कंगना को चुनौती देने के लिए पर अब विक्रमादित्य सिंह हैं। तय हैं, घोषणा शेष है। विक्रमादित्य सिंह स्वयं को श्रीरामभक्त बताते हुए लगातार कंगना को गोमांस और अन्य बातों के लिए घेर रहे हैं। प्रतिभा सिंह शायद इसीलिए कह रही थीं कि युवा के सामने युवा ही हो तो बेहतर।

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कंगना, अपना पक्ष स्पष्ट कर चुकी हैं। किंतु राजनीति तो यही है कि विरोधी के कमजोर बोलों पर खेला जाए। बीच में ऐसी बातें भी उठीं कि कंगना जो कहेंगी, आलाकमान की स्वीकृति के बाद कहेंगी, अन्यथा कुछ नहीं कहेंगी। दूसरे का बोल उठाने और उसे उड़ाने से उपजने वाली स्थिति का शिकार मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू भी हुए।

उन्होंने कुटलैहड़ की एक जनसभा में कहा कि आपने देवेंद्र भुट्टो को कांग्रेस का विधायक बनाया पर वह भाजपा में गए, इसलिए इस बार उन्हें कूटो। कूटना पहाड़ी बोलियों में पीटना या पीसना है। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कूटने का अर्थ है वोट मत डालो। पर तब तक अश्वत्थामा हतो हत: ....वाली बात हो चुकी थी। बेशक बहुत पुरानी पार्टी है किंतु हिमाचल प्रदेश में यह बात कांग्रेस को भाजपा से सीखने में अभी समय लगेगा।

प्रत्याशियों पर मंथन

भाजपा अपने सारे प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। संसदीय हलकों में कांग्रेस ने मंडी में विक्रमादित्य सिंह, हमीरपुर से सतपाल रायजादा, शिमला में छह बार के सांसद केडी सुल्तानपुरी के पुत्र विधायक विनोद सुल्तानपुरी को तय किया है, घोषणा नहीं की है। कांगड़ा में बात आशा कुमारी, डॉ राजेश शर्मा और आरएस बाली के बीच झूल रही है। कांगड़ा में भाजपा के प्रत्याशी राजीव भारद्वाज हैं। कांग्रेस के सामने यहां प्रश्न उपयुक्त प्रत्याशी को चुनने का है। और यह "उपयुक्तता" धन, जाति, क्षेत्र और प्रादेशिक नेतृत्व के संदर्भ में होती है। कोई नहीं चाहता कि जीतने की अवस्था में दिल्ली में सत्ता का समानांतर केंद्र स्थापित हो।

गौरतलब यह है कि कांग्रेस ने अचानक अपने आत्म विश्वास का सूचकांक बढ़ाते हुए कुछ विधायकों को उतारने का निर्णय कर लिया है। इसे आत्म विश्वास इसलिए कहेंगे क्योंकि विधानसभा में कांग्रेस के 34 ही सदस्य हैं। विनोद सुल्तानपुरी, विक्रमादित्य और आरएस बाली विधायक हैं। देखना यह भी है कि उपचुनाव में कांग्रेस नाराज भाजपाइयों को टिकट देती है या अपने काडर पर भरोसा करती है। यह भी परखा जाएगा कि अपने छह विधायक खोने के बाद लिए गए नैतिक स्टैंड पर कितना टिकती है।

भाजपा के अग्निशामक दस्ते

भाजपा ने उपचुनाव के लिए वे प्रत्याशी तय किए, जो कांग्रेस से भाजपा में आए। इनके आने के बाद कई भाजपा नेता बिदक गए। पहले प्रतीत हुआ कि ये स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी... कुछ दिनों में सब सामान्य हो जाएगा। हुआ भी। किंतु अब ऐसे स्वर आ रहे हैं, ‘मोदी जी का साथ तो देना ही पड़ेगा। बाकी हम कुछ नहीं कहेंगे।’ ये ‘बाकी’ क्या है, इसमें रहस्य नहीं कि ये संदर्भ उपचुनाव का है। भाजपा के अग्निशामक दस्ते में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर और प्रदेशाध्यक्ष डॉ राजीव बिंदल हैं।

एक लोकगीत है चंबा का....अज छतराड़ी हो, कल राखा मेरेआ प्यारुआ। यानी आज नायक छतराड़ी नामक स्थल पर है, कल राख नामक स्थान पर है... लगातार सफर में है। कभी कुल्लू, कभी लाहुल, कभी कहीं। यह श्रम निरंतर जारी है। इस श्रम का प्रभाव क्या होता है, यह चार जून को ही पता चलेगा।

प्रेम कुमार धूमल का सम्मान

हमीरपुर के साथ लगता एक गांव है समीरपुर। यहां प्रेम कुमार धूमल रहते हैं। वही, जिन्होंने 1998 में पंडित सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस के साथ मिल कर पहली ऐसी गैर कांग्रेसी सरकार बनाई थी जिसने पांच वर्ष पूरे किए थे। 10 अप्रैल को उनका जन्मदिन था तो खूब चहल-पहल रही किंतु वहां आशीर्वाद लेने वालों का क्रम तब से ही आरंभ हो गया था, जब कांग्रेस के छह अयोग्य घोषित विधायक और तीन निर्दलीय विधायक भाजपा में शामिल हुए थे।

इन नौ विद्रोहियों में अधिसंख्य हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से ही हैं। सुजानपुर से उन्हें हराने वाले और अब भाजपा में शामिल हुए राजेंद्र राणा भी आशीर्वाद लेने पहुंचे थे। अब कांग्रेस वाले भी प्रो. धूमल की चिंता कर रहे हैं। हमीरपुर जिला में तो यह कह कर चिंता व्यक्त की जा रही है कि हमीरपुर ने पहले भी एक मुख्यमंत्री खोया है, इस बार मत खोने देना। कौन नहीं जानता कि सुक्खू हमीरपुर से हैं।


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