हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताए आपदा के 6 कारण, नक्शे से गायब होने की टिप्पणी के बाद बढ़ी हरकत
Himachal Pradesh Disaster हिमाचल प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए विस्तृत रोडमैप तैयार किया जाएगा। सरकार ने मौसम में परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को आपदाओं का कारण बताते हुए कमियां दूर करने की बात कही है। विशेषज्ञ समूह का गठन किया जाएगा जिसमें भूविज्ञानी जलविज्ञानी जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ शामिल होंगे। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
जागरण संवाददाता, शिमला। Himachal Pradesh Disaster, हिमाचल प्रदेश सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए विस्तृत रोडमैप तैयार करेगी। मुख्य सचिव की ओर से दायर शपथपत्र में कहा गया है कि जलविद्युत परियोजनाएं या फोरलेन निर्माण, बहुमंजिला भवन निर्माण और पेड़ कटान ही आपदाओं का कारण नहीं है। मौसम में परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को कारण बताते हुए स्वीकार किया है कि कमियां दूर करेंगे।
विशेषज्ञ समूह बताएगा उचित समाधान
राज्य सरकार ने विशेषज्ञ समूह बनाने और उसकी सिफारिशें लेने के लिए छह माह का समय देने की प्रार्थना की है। अदालत अब इस विषय में न्यायमित्र भी नियुक्त करेगी। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ के समक्ष हिमाचल सरकार ने कहा कि विशेषज्ञ समूह में भूविज्ञानी, जलविज्ञानी, जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ और सामाजिक प्रतिनिधि भी शामिल किए जाएंगे। यह समूह कमियों की पहचान करेगा और उचित समाधान बताएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ऐसे तो नक्शे से गायब हो जाएगा हिमाचल
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की खंडपीठ ने पहली अगस्त को एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा था कि हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिक संतुलन गड़बड़ा चुका है और अनियंत्रित विकास के कारण आपदाएं आ रही हैं। ये प्राकृतिक नहीं हैं। ऐसे तो हिमाचल प्रदेश नक्शे से गायब हो जाएगा।
प्रदेश की स्थिति पर जताई थी चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश की स्थिति पर गहरी चिंता तब जताई थी जब हिमाचल प्रदेश सरकार के विरुद्ध प्रिस्टीन होटल याचिका लेकर गया कि उसे होटल निर्माण की स्वीकृति नहीं मिल रही। जहां होटल निर्माण की मांग की जा रही थी, उस क्षेत्र को सरकार ने संरक्षित अधिसूचित किया था। अदालत ने याचिका रद करते हुए सरकार के कदम को प्रशंसनीय बताया किंतु यह भी कहा कि ऐसे कदम उठाने में प्रदेश विलंब कर चुका है। प्रकरण का स्वत: संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा था। अब इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
कोर्ट के प्रमुख बिंदुओं पर सरकार का जवाब
- जलविद्युत प्रोजेक्ट : जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण भौगोलिक, पारिस्थितिक, पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन के बाद होता है। हाल ही में जलविद्युत परियोजनाओं से दूर क्षेत्रों में अचानक बाढ़ और बादल फटने की घटनाएं हुई हैं।
- फोरलेन निर्माण : राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं विभागों के साथ उचित योजना, समन्वय और परामर्श के बाद शुरू की जाती हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग की एलाइनमेंट को राज्य प्रशासन, लोक निर्माण विभाग, जल शक्ति विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, वन एवं पर्यावरण विभाग आदि से इनपुट और सुझाव लेने के बाद अंतिम रूप दिया जाता है।
- पौधारोपण : वन विभाग के माध्यम से हरित क्षेत्रों और बेदखल किए गए अतिक्रमण क्षेत्रों पर भी पौधारोपण जारी है। राज्य सरकार ने पांच वर्ष (2025-2030) में 100 करोड़ रुपये की "राजीव गांधी वन संवर्धन योजना' अधिसूचित की है, इसका उद्देश्य बंजर और बंजर वन भूमि पर फलदार वृक्ष लगाकर हरित आवरण बढ़ाना है। शिमला शहर में 2024 में सरकार ने आठ नई हरित पट्टियों को अधिसूचित किया। इनकी संख्या अब 25 हो गई हैं।
पैसा ही सब कुछ नहीं पर प्रदेश का पक्ष
- कुल भौगोलिक क्षेत्र का 68 प्रतिशत से अधिक वन भूमि वर्गीकरण में शामिल
- ऊंचाई, खड़ी ढलानों, ग्लेशियरों के बावजूद 28 प्रतिशत वन क्षेत्र बनाए रखा
- पांच राष्ट्रीय उद्यान, 26 वन्यजीव अभयारण्य और पांच संरक्षण रिजर्व। भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 15 प्रतिशत। राष्ट्रीय औसत पांच प्रतिशत।
- 25 से 32 प्रतिशत भूमि ही खेती या गैर-वन विकास के लिए उपलब्ध है। राष्ट्रीय औसत से यह काफी कम है।
- पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान को जल विनियमन, कार्बन पृथक्करण और जैव विविधता संरक्षण जैसी सेवाओं का प्रमुख प्रदाता होने के नाते प्रदेश मुआवजे की मांग कर रहा है।
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