CAG रिपोर्ट में खुलासा- हिमाचल पर लगातार बढ़ रहा कर्ज, लचर वित्त प्रबंधन ने बिगाड़ी राज्य की आर्थिक स्थिति
हिमाचल प्रदेश पर लगातार कर्ज बढ़ता जा रहा है. लचर वित्त प्रबंधन ने राज्य की आर्थिक स्थिति पूरी तरह से बिगाड़ी दी है। कैग रिपोर्ट में ऐसे कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। सरकार को 10 साल में 61 हजार करोड़ का कर्ज चुकाना है।

राज्य ब्यूरो, शिमला। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने हिमाचल सरकार के वित्तीय प्रबंधन की पोल खोल कर रख दी है। लचर वित्त प्रबंधन से हिमाचल प्रदेश पर कर्ज का पहाड़ है। एक वर्ष नहीं, कई वर्षों से सरकार तय बजट से अधिक खर्च करती जा रही है। मूल बजट को लेकर सरकारों में गंभीरता नहीं रही है। विधानसभा से मंजूर हुए बजट से अधिक खर्च करने का मामला सामने आया है।
आय के साधन जुटाने के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए। सरकार कर्मचारियों व पेंशनरों के वित्तीय प्रबंधन से बाहर नहीं निकल पा रही है। इसका परिणाम यह है कि ऋण का मूलधन और मूलधन का ब्याज चुकाने के लिए लगभग एक लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बुधवार को पेश कैग की वित्तीय वर्ष 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार 11 अनुदानों के तहत 13 मामलों में 647.13 करोड़ रुपये का प्रविधान अनावश्यक साबित हुआ। जाहिर है सरकार ने अनुपूरक बजट में इस राशि का प्रविधान किया मगर वास्तविक खर्च मूल बजट तक भी नहीं पहुंचा।
बजट से अधिक किया खर्च
सरकार ने बीते वर्षों में विधायिका से मंजूर बजट राशि से अधिक पैसा खर्च किया। सरकार ने 13 अनुदानों व दो विनियोजनों में विधानसभा से मंजूर बजट राशि से 1782.17 करोड़ की अधिक राशि खर्च की। वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2020-21 तक विधानसभा की मंजूरी लिए बिना 8818.47 करोड़ रुपये खर्च कर दिए जबकि इसका विधायिका से विनियमन करवाना अपेक्षित था। कई मामलों में सरकार मूल बजट को भी खर्च नहीं कर सकी।
राज्य पर कितना है कर्ज?
अनुपूरक बजट में अनुदानों के लिए अतिरिक्त धन का प्रविधान किया गया। सरकार को आगामी 10 साल में 61 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज चुकाना है। आय के साधन न बढ़ने की स्थिति में हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था ऋण में घिरती चली जाएगी। सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों की हालत चिंताजनक है। अधिकांश उपक्रम घाटे में चल रहे हैं। कुल 29 उपक्रमों में से नुकसान उठाने वाले उपक्रमों की संख्या 14 थी।
वित्त वर्ष 2021-22 के अंत में ही बजट में आवंटित राशि खर्च करने की गति बढ़ी। अंतिम तिमाही में छह अनुदानों में 50 से 71 प्रतिशत तक का खर्च हुआ। अंतिम माह मार्च में 12 से 65 प्रतिशत खर्च किया गया यानी वित्त वर्ष के अंतिम दिनों में ही अधिक खर्च क्यों हुआ। पूरा वर्ष इसी गति से बजट खर्च होना चाहिए था। सरकार ने घाटे से उबरने के उपायों व ऋण स्तर के संबंध में राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम में संशोधन नहीं किया।
कैग ने रिपोर्ट में हैरानी जताई कि 2020-21 में 97 करोड़ का राजस्व घाटा 2021-22 में 1115 करोड़ के सरप्लस में तबदील हो गया। 2020-21 में 5245 करोड़ का राजकोषीय घाटा 455 करोड़ घट गया। सरकार का प्राथमिक घाटा 2020-21 के 1228 करोड़ से कम होकर 2021-22 में 604 करोड़ रुपये रह गया।
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