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    हिमाचल में डॉक्टरों का सरकारी सेवा से हो रहा मोहभंग, अब तक 100 से ज्यादा छोड़ चुके नौकरी

    Updated: Sat, 06 Dec 2025 05:30 AM (IST)

    ताजा जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2025 तक ऐसे 25 डॉक्टर भी सामने आए जिन्होंने तैनाती आदेश मिलने के बावजूद पदभार ही नहीं संभाला। यह स्थिति बताती है कि सिस् ...और पढ़ें

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    सांकेतिक तस्वीर

    चैतन्य ठाकुर, शिमला। हिमाचल प्रदेश में सरकारी डॉक्टरों का सेवा से दूर होना अब एक गंभीर संकट बन चुका है। उपलब्ध आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2016 से 2019 के बीच 102 डॉक्टरों ने सरकारी नौकरी छोड़ी, जबकि 2020 के बाद यह समस्या और तेज हो गई है।

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    ताजा जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2025 तक ऐसे 25 डॉक्टर भी सामने आए जिन्होंने तैनाती आदेश मिलने के बावजूद पदभार ही नहीं संभाला। यह स्थिति बताती है कि सिस्टम के भीतर असंतोष बढ़ रहा है और निजी क्षेत्र की ओर आकर्षण लगातार मजबूत हो रहा है।

    इसी बीच, स्वास्थ्य विभाग ने वीरवार को आईजीएमसी शिमला और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल चमियाणा के चार डॉक्टरों की सेवाएं सीसीएस (सीसीए) नियम 1965 के नियम 19 के तहत समाप्त कर दी हैं।

    विभाग को लिखित में पहले ही सूचित कर दिया था कि वे व्यक्तिगत और पारिवारिक कारणों के चलते सेवा जारी नहीं रख सकते। उन्होंने पूर्व सूचना देकर औपचारिक अनुमति भी मांगी थी।

    हालांकि विभागीय स्तर पर उनके पत्रों पर कई महीनों तक कोई निर्णय नहीं लिया गया। न अनुमति दी गई और न ही बातचीत कर समाधान निकाला गया। परिणामस्वरूप डॉक्टरों ने दोबारा ज्वाइन नहीं किया और यह स्थिति “अनधिकृत अनुपस्थिति” में बदल गई। विभाग ने नियम 19 के तहत उनकी सेवाएं समाप्त करते हुए स्पष्ट कर दिया कि वह भविष्य में संबंधित पद पर पुनः नियुक्ति का दावा नहीं कर सकेंगे।

    डॉक्टरों के लगातार सरकारी सेवा छोड़ने के पीछे कई वजह है इनमें निजी क्षेत्र में बेहतर वेतन और सुविधाएं, सरकारी अस्पतालों में भारी कार्यभार, संसाधनों की कमी, तैनाती को लेकर असंतोष और बॉन्ड की कठोर शर्तें बताई जा रही है।

    विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि यदि सरकार ने जल्द ही वेतनमान, कार्य परिस्थितियों और पदोन्नति व्यवस्था में सुधार नहीं किया, तो आने वाले समय में सरकारी स्वास्थ्य ढांचा और कमजोर होगा।

    2016 के बाद से बढ़ती संख्या और 2025 में 25 डॉक्टरों का ज्वाइन न करना एक स्पष्ट संकेत है कि सिस्टम में भरोसे की कमी गहराती जा रही है और इसका सीधा बोझ जनता की स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ेगा।

    वहीं हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य निदेशक डा. गोपाल बेरी ने कहा कि प्रदेश में पीजी करने वालों को यहां दो साल अपनी सेवाएं देना अनिवार्य है। एमएमबीएस डाक्टरों के लिए प्रदेश सरकार की तरफ से कोई शर्त नहीं रखी है।