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    Himachal : फोरलेन शुरू होने के बाद अब ढाबा संचालकों की आजीविका पर छाया संकट, ग्राहक न होने से कारोबार प्रभावित

    By Jagran NewsEdited By: Paras Pandey
    Updated: Sat, 12 Aug 2023 04:00 AM (IST)

    स्वारघाटकीरतपुर नेरचौक फोरलेन शुरू होने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर अब सन्नाटा पसरना शुरू हो गया है। हालात यह हैं कि राष्ट्रीय राजमार्ग चंडीगढ़-मनाली मार्ग पर होटल गाड़ियों की रिपेयरिंग कर अपनी आजीविका चलाने वाले लोग अब अपनी दुकानें बंद कर दूसरा ठिकाना ढूंढने को विवश हैं। फोरलेन शुरू होने के बाद अधिकतर ट्रैफिक कैंची मोड़ टनल से होकर बिलासपुर सुंदरनगर व मंडी के लिए जा रही है।

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    नेरचौक फोरलेन शुरू होने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर अब सन्नाटा पसरना शुरू हो गया है।

    स्वारघाट, विवशरिशु प्रभाकर। स्वारघाटकीरतपुर नेरचौक फोरलेन शुरू होने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर अब सन्नाटा पसरना शुरू हो गया है। हालात यह हैं कि राष्ट्रीय राजमार्ग चंडीगढ़-मनाली मार्ग पर होटल, गाड़ियों की रिपेयरिंग कर अपनी आजीविका चलाने वाले लोग अब अपनी दुकानें बंद कर दूसरा ठिकाना ढूंढने को विवश हैं।

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    फोरलेन शुरू होने के बाद अधिकतर ट्रैफिक कैंची मोड़ टनल से होकर बिलासपुर, सुंदरनगर व मंडी के लिए जा रही है। इसके बाद बहुत कम ट्रैफिक के कारण नेशनल हाईवे चंडीगढ़-मनाली सुनसान है। हालात यह हैं कि अब कैंची मोड़ से लेकर नौणी चौक बिलासपुर तक दुकानदारों और ढाबा मालिकों व होटल कारोबारियों को रोजी रोटी के लाले पड़ गए हैं।

    दुकानदार अब दुकानें व ढाबे बंद करने को मजबूर हैं। इस नेशनल हाईवे से दिन रात हजारों के हिसाब से छोटे-बड़े वाहन और तीन बड़ी सीमेंट फैक्टरियों में काम में लगे हजारों ट्रकों का आना जाना था। यह वाहन इसी पुरानी सड़क से चंडीगढ़ बिलासपुर से होकर सुंदरनगर, मंडी, कुल्लू, मनाली व मणिकर्ण जाते थे, लेकिन जबसे नए फोरलेन कैंची मोड़ पर वाहनों के ट्रायल के चलते गाडियां दौड़ना शुरू हो गई हैं, उसके बाद से ढाबा मलिक भी अपना सामान इकट्ठा कर पलायन करने को मजबूर हैं।

    पुराने नेशनल हाईवे पर सैकड़ों दुकानदारों के साथ दूध, दही, सब्जी व अन्य समान देने वाले लोग भी इनसे जुड़े हुए थे। उन पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। इसके अलावा आरटीओ के टोल बैरियर पर भी सन्नाटा छाया हुआ है। राष्ट्रीय राजमार्ग चंडीगढ़-मनाली पर अब केवल बसें ही दौड़ती दिखाई दे रही हैं। सरकारी बसों की सवारियां पहले ही निश्चित ढाबों पर खाना खाती हैं। ऐसे में ढाबा संचालकों का किराया भी पूरा नहीं हो पा रहा है। यही हालात मोटर मैकेनिकों का है। 

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