संपादकीय: 'रहिमन पानी भेजिए जो पानी ही होय', शिमला के ठियोग में पानी का घोटाला
हिमाचल प्रदेश में पानी के संकट के बीच जल शक्ति विभाग में बड़े पैमाने पर घोटाले का खुलासा हुआ है। विभागीय जांच में पाया गया कि शिमला के ठियोग में टैंकरों में पानी ढोने के नाम पर बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई। कई जगहों पर तो मोटरसाइकिल और कार में भी पानी ढोया गया। इस मामले में बड़ी कार्रवाई की गई है।

नवनीत शर्मा, शिमला। राजस्थान की राजधानी जयपुर में अमीं चंद नाम का एक युवक टैक्सी चलाता है। पानी उतना ही पीता है, जितनी आवश्यकता हो, बाकी चार बूंदें भी बचें तो बोतल को ऐसे रखता है, जैसे कोई निर्धन जोड़ी हुई रकम को सहेजता है।
उसका घर विराटनगर के पास है, जहां भूजल 1400 फीट से नीचे चला गया है। अमीं चंद के आचरण में तो पानी के लिए आदर है पर विडंबना यह है कि उसके जैसे लोग बहुत कम हैं। अरावली से हिमालयी क्षेत्र में आएं तो शिमला के ठियोग में पानी घोटाले की चर्चा रही।
सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गई जानकारी माकपा के पूर्व विधायक राकेश सिंघा के लिए बड़ा मुद्दा बन गई, क्योंकि पाया गया कि मोटरसाइकिल और कार में भी पानी ढोया गया। कुछ स्थानों पर सड़क ही नहीं, वहां भी वाहनों से पानी पहुंचाया गया।
विषय यह भी कि फरवरी से जून के मध्य टैंकरों में पानी बांटने का ठेका दिया गया पर कई क्षेत्रों में आपूर्ति नहीं हुई, भुगतान कर दिया गया। जलशक्ति विभाग के प्रभारी मंत्री एवं उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने विभागीय जांच के बाद कड़ा रुख अपनाते हुए दो अधिशाषी, तीन सहायक और चार कनिष्ठ अभियंताओं को निलंबित कर दिया।
अमीं चंद की तरह कौन सोचेगा
एक सेवानिवृत्त कनिष्ठ अभियंता का सामना भी जांच से है। ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया गया है। मामला विजिलेंस को सौंपा गया है। मुकेश अग्निहोत्री मानते हैं कि यह इतने अफसरों के विरुद्ध हिमाचल गठन के बाद की सबसे बड़ी कार्रवाई है।
निस्संदेह, यह बड़ी कार्रवाई है किंतु यह घटनाक्रम पांच नदियों के राज्य हिमाचल प्रदेश में फरवरी 2024 से जून 2024 में पानी की उपलब्धता पर स्वयंसिद्ध टिप्पणी भी है। यहां राजस्थान वाले अमीं चंद की तरह कौन सोचेगा? हर पीड़ा अपने साथ निवारक की संभावना भी लाती है।
संभवत: इसीलिए विभाग ने अगले ही दिन स्पष्ट किया कि पानी की ढुलाई वाले वाहनों के नंबर नोट करने में गलती हुई है, मामला पैसों के हेरफेर का नहीं है। यानी वाहन का नंबर तो एचपी 09 सी 1199 दर्ज किया गया किंतु वास्तविक नंबर एचपी 09सी 1198 था।
सरकार को कैसी कार्रवाई करनी चाहिए
ऐसे ही अन्य नंबर हैं जो एक संख्या या अक्षर के बदल जाने से बदल गए। यानी ट्रक मोटरसाइकिल बन गए और कुछ कारें बन गए। जो हो, यह जांच का विषय तो है ही। सवाल यह भी है कि नंबर नोट करने का दायित्व निभा रहे लोग इतने साक्षर भी नहीं थे कि नंबर ठीक दर्ज करते?
अब दूध का दूध और पानी का पानी हो तो पता चलेगा कि इस कार्रवाई पर पानी फिरता है या दोषी पाए जाने वाले लोग शर्म से पानी-पानी होते हैं। जब सबकी आंखों का पानी सूख गया है, कोई तरलता नहीं बची है...ऐसे में यह अच्छा ही है कि इसे निशुल्क न रखा जाए।
सरकार ने कार्रवाई की, यह अच्छी बात है किंतु विभागीय संस्कृति की पूरी समीक्षा करना समय की मांग है। सरकारी कार्रवाई प्रतिक्रियावादी न होकर प्रक्रियावादी होनी चाहिए। ऐसा हो ही न, ऐसे प्रयास अनिवार्य हैं। घोटाला हो, पकड़ा जाए, कार्रवाई उचित है।
पहुंचना तो उस आदर्श तक है कि ऐसा हो ही न। वास्तविकता यह है कि कई स्थानों पर कनिष्ठ अभियंता ही वास्तव में वरिष्ठ अभियंता है। पानी का नया कनेक्शन उसकी कृपा पर निर्भर करता है। और कई स्थानों पर अदृश्य विवशताओं के कारण अधीक्षण, अधिशाषी या सहायक अभियंता तक कनिष्ठ अभियंता के आगे कनिष्ठ अभियंता के रूप में प्रस्तुत होते हैं।
संभवत: यही कनिष्ठ अभियंता की गहराई है। जो हो, उम्मीद की जानी चाहिए कि यह प्रकरण निर्णायक परिणति तक पहुंचेगा।
रिज पर कमीज उतारते पर्यटक
शिमला के विंटर कार्निवाल में एक शाम पंजाबी गायक सतिंदर सरताज के नाम थी। एक ओर वह गा रहे थे और दूसरी ओर कुछ पर्यटक हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में कमीज उतार कर नाच रहे थे। सरकार ने तो कहा ही है कि कोई पर्यटक बहक जाए तो उसे होटल पहुंचा दें, जेल नहीं।
किंतु यह कमीज उतार कर नाचने का चलन पहाड़ के लिए नितांत नया और अरुचिकर है। सौरव गांगुली ने क्रिकेट मैदान में कमीज किसी उपलब्धि के बाद उतारी थी। 'मेरा साया' फिल्म में न्यायालय का एक दृश्य है जिसमें एक तिल जांचने के लिए सुनील दत्त को कमीज उतारनी पड़ी थी। कोई प्रयोजन था।
उसके बाद जहां तक फिल्मों की बात है, कमीज पहनना या उतारना कोई बहस का विषय ही नहीं बचा। लेकिन पर्यटक जब ऐसा करें तो वह हुड़दंग की परिधि में बिन बुलाए ही आ जाता है। यह लगभग वैसा ही है जैसे जंगल में कार का स्पीकर गूंज रहा हो और कुछ कथित पर्यटक सुरापान का आनंद लेते-लेते कब चेतना खोकर कुछ कर दें, कुछ पता नहीं चलता।
अधिक झूमे हुए पर्यटक को होटल पहुंचाना अलग बात है किंतु इतनी ठंड में एक शालीन उत्सव में जहां देशभर के लोग हों, कमीज उतारने वालों के लिए कुछ 'कंबल' तो बनते हैं। हिमाचल प्रदेश के लिए अपने पर्यटन माडल पर विचार करना उतना ही आवश्यक है जितना वित्तीय संकट से उबरना अनिवार्य है।
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