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    'भारत के नक्शे से हो जाएगा गायब', हिमाचल को लेकर सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी; पर्यावरणीय विनाश पर जताई गहरी चिंता

    Updated: Fri, 01 Aug 2025 08:34 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में पर्यावरणीय विनाश और अनियंत्रित विकास पर गहरी चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा कि यदि निर्माण कार्य बिना वैज्ञानिक दृष्टिकोण के चलते रहे तो हिमाचल का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। कोर्ट ने राज्य सरकार से चार सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है जिसमें अब तक उठाए गए कदमों और भविष्य की योजनाओं का विवरण हो। अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।

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    ऐसे तो भारत के नक्शे से गायब हो जाएगा हिमाचल- सुप्रीम कोर्ट

    जागरण संवाददाता, शिमला। हिमाचल में पर्यावरणीय विनाश और अनियंत्रित विकास पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताई है। एमएस प्रिस्टीन होटल्स एंड रिजार्ट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा, यदि हिमाचल में निर्माण कार्य और विकास योजनाएं इसी तरह बिना वैज्ञानिक दृष्टिकोण के चलती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब हिमाचल देश के नक्शे से गायब हो जाएगा। कोर्ट ने कहा, भगवान करें कि ऐसा न हो।

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    कोर्ट ने कहा, निर्धारित क्षेत्रों को हरित क्षेत्र घोषित करने वाली अधिसूचनाएं जारी करना प्रशंसनीय है, लेकिन राज्य ने ऐसी अधिसूचनाएं जारी करने और स्थिति सुधारने में बहुत देर कर दी है। हिमाचल में स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। याचिकाकर्ता ने शिमला के समीप स्थित श्री तारा माता हिल को ग्रीन एरिया घोषित करने की राज्य सरकार की अधिसूचना को चुनौती दी थी। कंपनी यहां होटल निर्माण करना चाहती थी।

    सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के महाधिवक्ता ने कोर्ट में स्वीकार किया कि कोर्ट के आदेशों को सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका है। कोर्ट ने कहा, हिमाचल में भूस्खलन, बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाएं प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानवनिर्मित हैं। अवैज्ञानिक फोरलेन मार्ग, जलविद्युत परियोजनाएं, पेड़ कटान और पहाड़ों को बारूद से उड़ाना, विनाश के मुख्य कारण हैं।

    हिमाचल की सुंदरता और 66 प्रतिशत वनाच्छादित क्षेत्र को लालच और लापरवाह नीतियों ने खतरे में डाल दिया है। सरकार ने पर्यावरण संरक्षण पर अब तक ठोस कदम नहीं उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही और निर्देश के तहत, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए प्रिस्टीन होटल्स की याचिका खारिज कर दी गई।

    कोर्ट ने कहा कि देश के सभी हिमालयी राज्यों को संसाधनों और विशेषज्ञता को एकत्र करने की आवश्यकता है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि विकास योजनाएं इन चुनौतियों से अवगत हों।

    इसके बावजूद पर्यावरण और पारिस्थितिकीय मुद्दों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे जनहित याचिका माना। प्रदेश सरकार को चार सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है कि अब तक क्या कदम उठाए और भविष्य की क्या योजना है। आदेश की प्रतिलिपि हिमाचल के मुख्य सचिव और भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय को भेजी है। अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।

    कोर्ट ने कहा कि राजस्व कमाना ही सब कुछ नहीं कोर्ट ने कहा, राजस्व कमाना सब कुछ नहीं होता। यदि पर्यावरण और पारिस्थितिकी के विनाश की कीमत पर कमाई की तो हिमाचल का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। राज्य में हाइड्रो प्रोजेक्ट, फोरलेन से लेकर सड़कों का निर्माण हो रहा है। कुछ वर्षों से बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किया जा रहा है, जिसका प्रभाव पर्यावरणीय संतुलन पर पड़ रहा है।