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    Cloudburst In Himachal: पांच साल में बादल फटने की घटनाओं में चार गुणा वृद्धि, निर्माण से पहले विज्ञानिक जांच जरूरी

    Cloudburst In Himachal पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. सुरेश अत्री के अनुसार निर्माण से पहले वैज्ञानिक जांच ज़रूरी है। जल निकासी प्रणाली ठीक करके पर्यावरण से छेड़छाड़ कम करनी चाहिए। रेतीली मिट्टी या नदी-नालों के किनारे निर्माण से पहले भूगर्भित और इकोलाजिकल टेस्टिंग ज़रूरी है। ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण में बदलाव को समझना होगा। पर्वतीय वर्षा भी बादल फटने का कारण है।

    By Parkash Bhardwaj Edited By: Rajesh Kumar Sharma Updated: Sat, 05 Jul 2025 02:38 PM (IST)
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    मंडी जिला के सराज में बादल फटने के बाद राहत कार्य में जुटे सेना के जवान।

    राज्य ब्यूरो, शिमला। Cloudburst In Himachal, हिमाचल प्रदेश पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख विज्ञानिक अधिकारी डा. सुरेश अत्री का कहना है मकान या सड़कें बनाने से पहले उसकी विज्ञानिक जांच होनी चाहिए। इससे आपदा से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। जल निकासी प्रणाली यानी ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त कर पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ कम करनी होगी। जहां रेतीली मिट्टी या नदी-नालों और खड़ी घाटियों के किनारे निर्माण हो रहा हो वहां पहले जियोलाजिकल यानि भूगर्भित और इकोलाजिकल टेस्टिंग अनिवार्य होनी चाहिए।

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    डा. सुरेश अत्री का कहना है कि अब खड्डों व नालों पर मकान बनाए जा रहे हैं। पानी निकासी की समुचित व्यवस्था न होने सहित मिट्टी की मजबूत पकड़ के लिए घास-झाड़ियां और पेड़-पौधे नहीं होते। बुजुर्गों की तरह अब मकान बनाने से पहले क्षेत्र विशेष का अध्ययन नहीं होता। हमें ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण में आए बदलाव को समझते हुए चलना पड़ेगा।

    प्रदेश में कुछ वर्षों से प्राकृतिक आपदा की घटनाएं बढ़ी हैं। कभी बादल फट रहे हैं तो कहीं भूस्खलन से नुकसान हो रहा है। डा. अत्री का कहना है कि प्रदेश में लगभग 60 वर्षों के दौरान न्यूनतम तापमान में .9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। पांच साल में ही बादल फटने की घटनाओं में चार गुणा वृद्धि हुई है। पहले भी बादल फटते थे, लेकिन अब लोगों की जरूरतें बढ़ गई हैं। हर साधन संपन्न व्यक्ति चाहता है कि उसका दूर कहीं अलग घर हो। पहाड़ों पर चलने वाली हवाओं का अपना क्षेत्र या रूट होता है। 

    पर्वतीय वर्षा भी बादल फटने का कारण

    डा. अत्री का कहना है कि बादल फटने का एक और अहम कारण ओरोग्राफिक लिफ्टिंग (पर्वतीय वर्षा) है। खासकर जंजैहली, धर्मपुर, और सराज क्षेत्रों में यह असर ज्यादा देखने को मिला है। सराज में रेतीली और पहले से भीगी हुई जमीन, खराब ड्रेनेज सिस्टम और पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता ने मिलकर भारी तबाही मचाई। इस बार मानसून सीजन में हिमाचल में लगातार पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय रहा। इससे वातावरण में नमी बनी रहती है और बादल फटने की आशंका बढ़ जाती है। एल-नीनो और ला-नीना जैसी वैश्विक जलवायु घटनाएं भी स्थानीय वातावरण को प्रभावित कर रही हैं।

    ज्यादा पेड़ों के कारण भी रहती है बादल फटने की संभावना

    डा. अत्री का कहना है कि जंगल जहां पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी हैं, वहीं बिना सोचे-समझे अधिक पौधे लगाना भी नुकसानदायक हो सकता है। प्रदेश में जहां हाल के वर्षों में घास के मैदान (घासनी) हुआ करते थे, वहां अब बिना स्थानीय जरूरत को समझे पौधारोपण करके जंगल बना दिए हैं। ऐसे पौधारोपण ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बदल दिया है। इससे जमीन के तापमान, मिट्टी की नमी, जल बहाव और वर्षा की तीव्रता प्रभावित होती है। कुछ क्षेत्रों में ज्यादा पेड़ों के कारण वर्षा की तीव्रता भी बढ़ जाती है, जिससे वहां पर बादल फटने की संभावना भी बनती है।