केंद्र राशन का तीन माह का कोटा देने को तैयार, लेकिन हिमाचल सरकार ने किया इंकार; आखिर क्या है कारण?
केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत तीन महीने का गेहूं-चावल कोटा देने का प्रस्ताव दिया लेकिन प्रदेश सरकार ने भंडारण क्षमता की कमी और राशन खराब होने की आशंका के चलते इंकार कर दिया। राज्य ने एक महीने का कोटा उठाने का सुझाव दिया। प्रदेश में मासिक 26850 टन गेहूं और 15484 टन चावल की खपत होती है।

राज्य ब्यूरो, शिमला। केंद्र सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मिलने वाले गेहूं व चावल का तीन महीने का कोटा देने को तैयार है। लेकिन प्रदेश सरकार ने एक साथ तीन महीने का गेहूं-चावल का कोटा उठाने से इंकार कर दिया है। इस संबंध में भारतीय खाद्य निगम के अधिकारियों ने अतिरिक्त मुख्य सचिव आरडी नजीम से बैठक की। वर्चुअल माध्यम से आयोजित इस बैठक में भारतीय खाद्य निगम ने प्रदेश सरकार को तीन माह का राशन कोटा देने का प्रस्ताव रखा है।
सरकार ने क्यों किया इंकार?
ऐसी जानकारी है कि सरकार ने राशन खराब होने की संभावना के चलते गेहूं और चावल उठाने से इंकार कर दिया है। इसके पीछे तर्क दिया गया कि प्रदेश में राशन कार्ड उपभोक्ताओं को गेहूं पीसकर आटा दिया जाता है। जबकि प्रदेश के लोग चावल खाना अधिक पसंद नहीं करते हैं।
एक साथ गेहूं व चावल उठाकर रखने के लिए प्रदेश में भंडारण क्षमता नहीं है। इस संबंध में राज्य खाद्य एवं नागरिक उपभोक्ता मामले विभाग ने लिखित पत्र में एक साथ तीन माह का राशन उठाने में असमर्थता जताई थी। लेकिन सुझाव दिया गया था कि एक माह का गेहूं व चावल उठाया जा सकता है।
15484 टन चावल व 26850 टन गेहूं की खपत
प्रदेश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत हर महीने 26850 टन गेहूं की आवश्यकता रहती है। राशन के डिपुओं से राशनकार्ड धारक को मासिक 14 किलो आटा दिया जाता है। प्रदेश के लोग चावल अधिक पसंद नहीं करते हैं, इसलिए मासिक 15484 टन चावल की जरूरत रहती है। प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बीपीएल परिवारों व अन्नतोदय अन्न योजना के पात्र लोगों को गेहूं देने की व्यवस्था है।

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