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    बिहार चुनाव परिणाम का क्या हिमाचल की राजनीति पर भी दिखेगा प्रभाव, सत्ताधारी कांग्रेस को क्या नसीहत दे रहे नतीजे?

    By Jagran News Edited By: Rajesh Sharma
    Updated: Sat, 15 Nov 2025 02:55 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों का हिमाचल की राजनीति पर असर दिख सकता है। राजग गठबंधन की जीत के बाद, राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल में आत्ममंथन की ज़रूरत है। कांग्रेस संगठन की कमजोरी और अध्यक्ष की घोषणा में देरी से पार्टी की स्थिति प्रभावित हो रही है। सरकार को जनता के बीच पकड़ मजबूत करनी होगी।

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    हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू। जागरण आर्काइव

    राज्य ब्यूरो, शिमला। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हो चुके हैं। राजग गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला है। कांग्रेस पार्टी अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई। पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी लगातार चुनाव प्रचार में जुटे थे। हिमाचल से भी कई नेता चुनावी जिम्मेदारी निभाने के लिए बिहार गए थे।

    राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, चुनाव परिणामों पर जो भी बयानबाजी हो, ये नतीजे हिमाचल में भी आत्ममंथन का संकेत दे रहे हैं। नेताओं को जमीनी स्तर पर पकड़ को मजबूत करना होगा। परिणाम सरकार को भी अपनी रणनीति में बदलाव की नसीहत दे रहे हैं।

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    हिमाचल की राजनीति पर भी दिखेगा प्रभाव

    हिमाचल सरकार ने विपक्ष को पांच गुटों में बांटकर मनोवैज्ञानिक खेल खेला था, लेकिन अब विपक्ष के पास जवाब देने का मजबूत आधार मिल गया है। राजग की प्रचंड जीत से हिमाचल की राजनीति पर भी प्रभाव देखने को मिल सकता है। अब सरकार व संगठन को गारंटियों के साथ जनता के बीच मजबूत पकड़ स्थापित करनी होगी।

    कांग्रेस सत्ता में पर संगठन की स्थिति कमजोर

    हिमाचल में कांग्रेस सत्ता में है, लेकिन पिछले एक साल से संगठन की स्थिति कमजोर है। छह नवंबर को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रदेश कार्यकारिणी सहित जिला और ब्लाक कार्यकारिणी को भंग किया था। तब से राज्य कार्यकारिणी का गठन नहीं हुआ है। कांग्रेस मुख्यालय में कोई बड़ा कार्यक्रम आयोजित नहीं हुआ है और जिला स्तर पर संगठन की गतिविधियां भी लगभग शून्य हैं। 

    अध्यक्ष की घोषणा में देरी का पड़ रहा असर

    कांग्रेस अध्यक्ष का तीन साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन अध्यक्ष की घोषणा में देरी संगठन को कमजोर कर रही है। नए अध्यक्ष को संगठन के गठन में समय लगाना पड़ेगा, जिससे संगठन की मजबूती प्रभावित होगी।

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