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    उपेक्षित है फागली का संस्कृत कॉलेज

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    Updated: Wed, 21 Oct 2015 08:06 PM (IST)

    संवाद सहयोगी, शिमला : राजकीय संस्कृत महाविद्यालय फागली में समस्याओं का अंबार है। इस समय यह कॉलेज नगर

    संवाद सहयोगी, शिमला : राजकीय संस्कृत महाविद्यालय फागली में समस्याओं का अंबार है। इस समय यह कॉलेज नगर निगम शिमला के लेबर हॉस्टल भवन में चल रहा है। इस भवन में कक्षाओं के लिए

    जिसकी वजह से न कालेज के पास कक्षाओं के लिए पर्याप्त जगह है। जैसे-तैसे कालेज में एक कमरे में दो अलग-अलग कक्षाएं चलाई जा रही है। और वही अगर बात की जाए महाविद्यालय की स्थापना की तो सन् 1917 में ब्राह्माण सभा द्वारा शुभारंभ हुआ। सन् 1964 ई. में इस महाविद्यालय का नाम भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. पंडित च्वाहर लाल के नाम पर ब्राह्माण सभा ने नेहरू संस्कृत महाविद्यालय शिमला रखा गया। 52 वर्षो तक ब्राह्माण सभा द्वारा इसका संचालन किया गया। सन् 1969 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने इसे अपने अधीन लिया।

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    98 सालों से न मिल पाया महाविद्यालय को अपना भवन :

    98 वर्षो के अपने दीर्घ जीवनकाल में महाविद्यालय को अपना स्थायी भवन नहीं मिल पाया। इस महाविद्यालय को अनेक भवनों में चलाया गया है। कभी कैथू में, कभी कृष्णानगर की मस्जिद में, कभी गंजबाजार में, कभी लक्कड़ बाजार में अभी वर्तमान में नगर निगम के लेबर हॉस्टल में चल रहा है।

    2006 में मिली कालेज को जमीन :

    2006 में फागली में ही कालेज को अपने भवन निर्माण के लिए जमीन मिल गई पर अब तक भवन निर्माण का काम शुरू नहीं हो पाया क्योंकि पहले तो जमीन से पेड़ कटवाने के लिए वन विभाग की अनुमति के चलते देरी हो गई और वहीं बाहरी राज्यों से आए लोगों ने अपने कच्चे ढारे डाल लिए। जिसकी वजह से वह उन्हें अब तक खाली नहीं कर रहे। शिमला उपायुक्त से इस बारे में जब बात की गई तो फैसला महाविद्यालय के पक्ष में सुनाकर जमीन को खाली करवाने के आदेश दिए जा चुके हैं। पर अब तक ढारे बनाकर लोग वहां रह रहे हैं। इस वजह से भवन निर्माण का काम नहीं चल पाया।

    महाविद्यालय में अध्यापकों की कमी :

    अगर महाविद्यालय के स्टाफ की बात की जाए तो अध्यापक स्टाफ भी पूरा नहीं है। जिसकी वजह से भी दिक्कत पेश आ रही हैं क्योंकि जब से रूसा प्रणाली चली है तो विषय बढ़ गए हैं जिसकी वजह से अंग्रेजी, हिंदी, इतिहास, राजनीति शास्त्र और कंप्यूटर विषय आए हैं और वहीं महाविद्यालय के संस्कृत के अपने विषयों में से व्याकरण, दर्शन साहित्य के अध्यापक वर्तमान में नहीं हैं।

    अन्य स्टाफ की भी महाविद्यालय में कमी :

    वहीं अगर बात की जाए महाविद्यालय में अन्य स्टाफ की भी कमी है जैसे न तो महाविद्यालय में क्लर्क है और वहीं दूसरी ओर पुस्तकालय भी बिना पुस्तकालय अध्यक्ष के चल रहा है जो भी दिक्कतें बढ़ा देता है।

    महाविद्यालय के पास न सभागार न खेल का मैदान :

    महाविद्यालय के पास सभागार भी नहीं है। और न ही छात्रों के लिए खेल का मैदान है। जिसकी वजह से विद्यालय के कार्यक्रमों को जैसे तैसे कक्षाओं को खाली करवा के आयोजन करवाया जाता है।

    प्रशासन भी नहीं दे रहा ध्यान :

    वहीं हिमाचल शिक्षा विभाग शिमला शहर के इकलौते संस्कृत महाविद्यालय फागली की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा। जब से रूसा प्रणाली लागू हुई है तो विषय बढ़ने के कारण न तो पर्याप्त कक्षाओं के लिए कमरे हैं न ही अध्यापक और न ही अन्य कर्मचारी जिसकी वजह से विद्यार्थी भी कम हो गए हैं। वर्तमान में करीब 109 के लगभग विद्यार्थी महाविद्यालय के पास पर्याप्त सुविधाओं की कमी भी है। वहीं अगर बात की जाए तो संस्कृत भाषा भारत की वैदिक भाषा भी है। जिसको बचाने के लिए प्रशासन को महाविद्यालय के उत्थान के लिए आगे आना चाहिए। वहीं दूसरी ओर प्रशासन को नए महाविद्यालय खोलने के साथ-साथ पुराने महाविद्यालयों के अस्तित्व की तरफ भी ध्यान देना जरूरी है।