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    सोने से कम नहीं किन्नौर का काला जीरा

    By Edited By:
    Updated: Sun, 27 Jul 2014 01:04 AM (IST)

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    प्रबिन्द्र सिंह नेगी, किन्नौर

    जिला किन्नौर के शौंग गांव में उगाएं जाने वाला जंगली काला जीरा अब जंगली नहीं, बल्कि फसल के रूप में उगाया जाने लगा है। जंगल से जमीन क्षेत्र में यह कृषि के रूप में अत्यधिक लोकप्रिय नकदी फसल के रूप में अपनाया जा रहा है। किन्नौर का काला जीरा सोने से कम नहीं है। इसका बाजार में अच्छा खासा भाव है।

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    1971 में शौंग गांव के कैप्टन राम पाल सिंह नेगी ने सेवानिवृत्ति के बाद सर्वप्रथम इसे जंगलों से उठाकर कृषि के रूप में अपनाया। वर्तमान में शौंग गांव का हर जमींदार जीरा उत्पादन से जुड़ा है। अब यह शौंग गांव के जमीनों से बाहर निकलकर उत्तराखंड के चमोली तक पहुंच चुका है। 2013 में उत्तराखंड सरकार द्वारा जीरा के सात रुपये कंद के हिसाब से साढ़े चार लाख कंद खरीदकर चमोली क्षेत्र के किसानों में बांटा गया, लेकिन हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग का उदासीन रवैया किन्नौर और हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में इसे फैलाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। लोग अपने स्तर पर इसे बीजने का कार्य जरूर कर रहे हैं और यह ब्रुआ और पूर्बनी गांव तक फैल चुका है।

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    एक लाख प्रति क्विंटल तक रहा बिक

    शौंग गांव में काला जीरा संघ के प्रधान नरेंद्र सिंह नेगी ने बताया कि इसकी मार्केटिंग और तकनीकी ज्ञान उन्हें नहीं मिल रहा है, जिससे उन्हें प्रति वर्ष भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। शौंग गांव में हर वर्ष 90 से 100 क्विंटल जीरा का उत्पादन हो रहा है। जुलाई का महीना शुरू होते ही इसके थोक खरीददार गांव में ही पहुंचने लगते हैं। जो उन्हें 95 हजार से एक लाख रुपये प्रति क्विंटल तक दाम दे रहे हैं। नरेंद्र नेगी ने कहा कि संघ ने काला जीरा के पेटेंट के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के साथ मामले को उठाया है, लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है।

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    व्यापारी कमा रहे दोगुना मुनाफा

    उधर, शौंग गांव के भारतीय रिजर्व बैंक के जीएम पद से सेवानिवृत्त ज्ञान विद्या नेगी ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय हो सकता है, लेकिन वह जीरा में लगने वाला हरा कीड़ा और वैज्ञानिक विधि से कृषि करवाने में असफल हुए हैं, जिससे उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि ग्रामीणों को काला जीरा की वास्तविक मार्केट का पता नहीं चल पाया है। सूत्र तो यह भी बताते हैं कि व्यापारी जो दाम उन्हें यहां दे रहे हैं उससे कई गुणा अधिक दाम पर बेचकर चांदी कूट रहे हैं।

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    उपेक्षा से नाराजगी

    शौंग गांव के सेवानिवृत्त सैनिक भीषम सिंह नेगी ने इसे गांव के लिए वरदान माना है। कैप्टन राम पाल सिंह का बेटा जयंत सिंह नेगी इस काम में लगे हैं, वह प्रति वर्ष दो क्विंटल तक जीरा उत्पादन कर रहे हैं। उन्हें अपने पिता के इस शोध पर गर्व तो है, लेकिन कृषि विभाग और सरकार की उपेक्षा से नाराज भी हैं।

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    यह हैं काला जीरा के उपयोग

    -काला जीरा का उपयोग खाने और नमकीन चाय में मसाले के तौर पर किया जाता है।

    -पेट दर्द में यह अत्यधिक उपयोगी मानी गई है। चुटकी भर काला जीरा गर्म पानी के साथ लेने से पेट दर्द ठीक हो जाता है।

    - जीरा को पानी में उबाल कर सुबह खाली पेट पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

    - इसे पेट का वायु विकार और बुखार के लिए भी ग्रामीणों और तिब्बती डॉक्टरों द्वारा प्रयोग किया जाता है।

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    क्या है इसकी विशेषता :

    बाजार में मिलने वाले सफेद जीरा की तुलना में इसकी सुगंध कई गुणा अधिक होती है। इस के चार पांच दानों को हथेली पर रगड़ने से इस की सुगंध को हथेली की दूसरी ओर महसूस किया जा सकता है।