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    रफ्तार की रानी श्रेया लोहिया: हिमाचल की 17 वर्षीय बेटी ने भारत को फॉर्मूला रेसिंग में दी नई पहचान

    By HANS RAJ SAINIEdited By: Prince Sharma
    Updated: Sun, 12 Oct 2025 09:31 AM (IST)

    हिमाचल प्रदेश की 17 वर्षीय श्रेया लोहिया ने फॉर्मूला रेसिंग में भारत को नई पहचान दिलाई है। कम उम्र में रेसिंग शुरू करने वाली श्रेया ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। परिवार के सहयोग से वह भविष्य में भारत का नाम रोशन करना चाहती हैं।

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    प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित और अब भारत की पहली महिला फार्मूला 4 रेसर

    हंसराज सैनी,मंडी। शुकदेव ऋषि की तपोस्थली सुंदरनगर की वादियों में जब कभी शांत सुबह गूंजती हैं, तो शायद ही किसी को यह अंदाजा होता है कि इसी मिट्टी ने एक ऐसी बेटी को जन्म दिया है, जो अब भारत की रफ्तार की रानी बन चुकी है। हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर की रहने वाली 17 साल की श्रेया लोहिया ने भारत के मोटरस्पोटर्स इतिहास में स्वर्णिम अध्याय लिखा है। वह अब भारत की पहली महिला फार्मूला 4 रेसर हैं। यह उपलब्धि सिर्फ एक व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि उस सोच की भी जीत है जो कहती है कि बेटियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं।

    पहाड़ों से ट्रैक तक का सफर

    श्रेया लोहिया का बचपन किसी साधारण लड़की की तरह नहीं था। जहां बच्चे साइकिल चलाना सीखते हैं, वहीं श्रेया को बचपन से ही इंजन की गर्जना, पहियों की आवाज और रफ्तार का जुनून था।

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    महज नौ साल की उम्र में उन्होंने कार्टिंग रेसिंग शुरू की...और यही वह मोड़ था जहां से उनकी जिंदगी ने रफ्तार पकड़ी। उनके पिता पेशे से साफ्टवेयर इंजीनियर रितेश लोहिया ने जब पहली बार उन्हें रेसिंग कार्ट में बैठाया, तो शायद किसी को नहीं पता था कि यह छोटी सी शुरुआत एक दिन भारत को फार्मूला रेसिंग में नई पहचान दिलाएगी। धीरे-धीरे श्रेया ने देश विदेश की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया और जल्द ही 30 से अधिक पोडियम फिनिश हासिल कर लिए।

    हैदराबाद ब्लैकबडर्स टीम से ऐतिहासिक डेब्यू

    श्रेया ने 2024 में इंडियन फार्मूला 4 चैंपियनशिप में भाग लेकर इतिहास रच दिया। उन्होंने प्रतिष्ठित हैदराबाद ब्लैकबडर्स टीम से अपने रेसिंग करियर की नई शुरुआत की और अंक हासिल कर भारत की पहली महिला एफ4 रेसर बन गईं। यह उपलब्धि आसान नहीं थी। फार्मूला रेसिंग एक अत्यंत प्रतिस्पर्धी और तकनीकी खेल है, जिसमें सटीकता, साहस और फोकस की जरूरत होती है। लेकिन श्रेया ने साबित किया कि उम्र या लिंग कोई बाधा नहीं, अगर जुनून सच्चा हो।

    उनकी यह सफलता उस पूरे समाज के लिए प्रेरणा है जो अब तक मोटरस्पोर्ट्स को पुरुषों का खेल मानता था। अब यह धारणा टूट चुकी है.. क्योंकि सुंदरनगर की यह बेटी उस ट्रैक पर दौड़ रही है जहां अब तक शायद ही किसी भारतीय महिला ने कदम रखा हो।

    पुरस्कारों और उपलब्धियों की लंबी सूची

    श्रेया के प्रदर्शन को देखते हुए फेडरेशन आफ मोटर स्पोर्ट्स क्लब आफ इंडिया (एफएमएससीआइ) ने उन्हें चार बार सम्मानित किया है। उन्हें आउटस्टैंडिंग वुमन इन मोटरस्पोर्ट्स अवार्ड से सम्मानित किया गया, जो महिला रेसर्स के लिए सबसे प्रतिष्ठित सम्मान माना जाता है।

    साल 2022 में उन्हें प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार भी मिला। जो उन बच्चों को दिया जाता है जिन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल की हो। यह सम्मान श्रेया के समर्पण, अनुशासन और अदम्य साहस का प्रमाण है।

    पढ़ाई और रफ्तार का संतुलन

    अक्सर कहा जाता है कि खेल और पढ़ाई एक साथ नहीं चल सकते। लेकिन श्रेया ने इस धारणा को भी गलत साबित किया है। वह कक्षा 12वीं की विज्ञान की छात्रा हैं और होमस्कूलिंग के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी कर रही हैं।

    वह कहती हैं कि रेसिंग मेरा जुनून है, लेकिन शिक्षा मेरे लिए उतनी ही जरूरी है। दोनों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण है, पर यही मुझे मजबूत बनाता है। उनका लक्ष्य है कि एक दिन वह भारत की पहली महिला फार्मूला वन रेसर बनें और अंतरराष्ट्रीय ट्रैक पर भारत का तिरंगा लहराएं।

    रोटैक्स मैक्स कार्टिंग से लेकर फॉर्मूला रेसिंग तक

    श्रेया की रफ्तार की कहानी की शुरुआत रोटेक्स मैक्स इंडिया कार्टिंग चैंपियनशिप से हुई थी। उन्होंने बिरेल आर्ट टीम के साथ हिस्सा लिया और अपने पहले ही सीजन में माइक्रो मैक्स श्रेणी में चौथा स्थान प्राप्त किया। यह सिर्फ शुरुआत थी। इसके बाद श्रेया ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और हर बार अपने प्रदर्शन से सबको प्रभावित किया।

    बहुमुखी प्रतिभा और फिटनेस की मिसाल

    श्रेया सिर्फ रेसिंग तक सीमित नहीं हैं। उन्हें बास्केटबाल, बैडमिंटन, पिस्टल शूटिंग, साइक्लिंग और स्ट्रेंथ ट्रेनिंग का भी शौक है। बकौल श्रेया,एक रेसर के लिए शरीर और दिमाग दोनों मजबूत होने चाहिए। हर रेस में जीतने के लिए एक सेकंड का फर्क भी मायने रखता है। उनकी फिटनेस दिनचर्या और आत्मनियंत्रण ही उनकी सफलता की असली कुंजी है।

    महिला सशक्तिकरण की नई दिशा

    श्रेया लोहिया की कहानी सिर्फ मोटरस्पोर्ट्स की नहीं है...यह साहस, आत्मविश्वास और सशक्तिकरण की कहानी है। उन्होंने उस समाज को चुनौती दी है जो कहता था कि लड़कियां रफ्तार की दुनिया में नहीं टिक सकतीं। आज वह उन हजारों भारतीय लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो बड़े सपने देखने से डरती थीं। उनका संदेश साफ है ..अगर आपमें जुनून है, तो कोई ट्रैक आपको रोक नहीं सकता।

    हिमाचल की शान, भारत की पहचान

    हिमाचल प्रदेश की शांत घाटियों से निकलकर श्रेया लोहिया अब भारत की पहचान बन चुकी हैं। उनके नाम के साथ अब सिर्फ रेसिंग नहीं, बल्कि उम्मीद, संघर्ष और उपलब्धि की कहानी जुड़ी है। उनकी उपलब्धियों ने यह साबित कर दिया है कि छोटे शहरों से भी बड़े सपने उड़ान भर सकते हैं। आज जब वह रेसिंग सूट पहनकर कार के काकपिट में बैठती हैं, तो उनके साथ सिर्फ इंजन नहीं, बल्कि पूरा हिमाचल गूंजता है। यह उस बेटी की कहानी है जिसने साबित किया कि रफ्तार की भी एक रानी होती है...और उसका नाम है श्रेया लोहिया।

    माता पिता दोनों साफ्टवेयर इंजीनियर

    श्रेया लोहिया के माता पिता दोनों साफ्टवेयर इंजीनियर हैं, जिन्होंने हमेशा अपनी बेटी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए प्रेरित किया। तकनीकी दुनिया से जुड़ा उनका परिवेश श्रेया के अनुशासन और एकाग्रता की नींव बना। पिता रितेश लोहिया ने उसे दृढ़ निश्चय सिखाया तो मां वंदना लोहिया ने हर असफलता में संबल दिया। परिवार का यह सशक्त संयोजन ही श्रेया की सफलता की असली ताकत बना।